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बसंत पंचमी पर 144 वर्ष बाद बन रहा है विशेष योग
बसंत पंचमी का दिन विद्या की देवी माता सरस्वती की पूजा-अर्चना के लिए समर्पित है। हर वर्ष माघ माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को बसंत पंचमी मनाई जाती है और विधि-विधान से माता सरस्वती की पूजा की जाती है।
बसंत पंचमी पर बृहस्पति से इन राशियों को फायदा
ज्योतिष शास्त्र में कुंडली का बहुत महत्व है, और ग्रहों की स्थिति हमारे जीवन के हर पहलू को प्रभावित करती है। गुरु, जिसे बृहस्पति भी कहा जाता है, को देवताओं का गुरु माना जाता है और इसका कुंडली में विशेष महत्व होता है।
बसंत पंचमी के दिन अमृत स्नान का महत्व और शुभ मुहूर्त
महाकुंभ 2025 में बसंत पंचमी का महत्व विशेष रूप से बढ़ जाता है क्योंकि इस दिन तीसरा अमृत स्नान होना तय हुआ है। यह स्नान त्रिवेणी संगम में होगा जहां देश के कोने-कोने से साधु संत और श्रद्धालु पहुंचे हुए हैं।
मौनी अमावस्या पर महाकुंभ का दूसरा अमृत स्नान होगा। इस बार अमावस्या तिथि को काफी खास माना जा रहा है। बता दें कि महाकुंभ का आयोजन प्रयागराज में 13 जनवरी से शुरू हो चुका है और रोजाना करीब लाखों की संख्या में श्रद्धालु संगम में स्नान करने के लिए पहुंच रहे हैं।
हिंदू धर्म में अमावस्या तिथि को स्नान और दान के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है। प्रत्येक माह आने वाली अमावस्या को अलग-अलग नामों से जाना जाता है। माघ मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को मौनी अमावस्या कहते हैं।
संगम तट पर लगे महाकुंभ में लाखों साधु-संत अपनी धुनी रमाए प्रभु की भक्ति में लीन हैं। इनमें नागा साधु, अघोरी, साधु, संत शामिल हैं। इन संतों में कई तरह के संन्यासी आए हुए हैं। इन्हें लेकर कई तरह के रहस्य भी लोगों के मन में हैं।
अमावस्या एक ऐसा दिन होता है जब ना तो चंद्रमा क्षय होता है ना ही उदित। दरअसल, अमावस्या सूर्य और चंद्र के मिलन का समय होता है। चंद्रमा हमारे मन मस्तिष्क पर सबसे अधिक प्रभाव डालता है।
संगम नहीं जा पाए तो ऐसे ले कुंभ का पुण्य लाभ
महाकुंभ मेले की भव्यता की बातें चारों ओर हो रही हैं। कड़ाके की ठंड होने के बावजूद लाखों की संख्या में लोग गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के संगम में स्नान कर रहे हैं। मान्यता है कि कुंभ में नदी स्नान से मनुष्यों के सारे पाप धुल जाते हैं।
13 जनवरी 2025, से शुरू हुआ महाकुंभ हिंदू धर्म में आस्था, विश्वास और श्रद्धा का अनूठा संगम है। महाकुंभ के दौरान त्रिवेणी संगम पर साधु-संत, संन्यासी, भक्त और श्रद्धालु आस्था की डुबकी लगा रहे हैं। साथ ही इस समय कई लोग कल्पवास भी करते हैं।