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कौन होते हैं प्रयाग के नागा साधु

गंगा के किनारे, सूरज की पहली किरणों के साथ, धुंधली सुबह में एक दृश्य उभरता है। यह किसी भी सामान्य दिन से बिल्कुल अलग प्रतीत होता है। राख में लिपटे नग्न शरीर, जटाजूट और आंखों में एक अनोखी चमक। यह दृश्य महाकुंभ मेले की भव्यता को दर्शाता है। नागा साधुओं के चार प्रकारों में से ही एक प्रयाग के नागा साधु होते हैं।

बुध गोचर 2025 का इन राशियों पर होगा प्रभाव

नव वर्ष यानी साल 2025 कई राशियों के जातकों के लिए बेहद शुभ होने वाला है। न्याय के देवता शनिदेव और देवगुरु बृहस्पति के राशि परिवर्तन से जहां कई राशि के जातकों को लाभ होगा।

नागा साधु के नाम कैसे रखे जाते हैं

नागा साधु भारत की प्राचीन साधु परंपरा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा माने जाते हैं। इनका जीवन तपस्या, साधना और आत्मज्ञान की खोज में समर्पित रहता है। नागा साधुओं को मुख्य रूप से महाकुंभ के चार स्थानों के अनुसार ही चार प्रकार में बांटा गया है। बता दें कि महाकुंभ भारत के चार शहरों, हरिद्वार, उज्जैन, नासिक और इलाहाबाद में लगता है।

2025 में ग्रह गोचर इन राशियों के लिए शुभ

2024 के खत्म होने में अब बस कुछ ही दिन शेष बचे हैं। नववर्ष 2025 में ज्योतिषीय गणनाओं के अनुसार कई प्रमुख ग्रहों की चाल में होने वाला है। इनमें गुरु, शनि और राहु-केतु हैं। ये अपनी-अपनी राशि बदलने वाले हैं।

नागा निर्वस्त्र क्यों रहते हैं

सनातन धर्म में साधू-संतों का काफी महत्व है। साधु-संत भौतिक सुखों को त्यागकर सत्य व धर्म के मार्ग पर चलते हैं। इसके साथ ही उनकी वेशभूषा और खान-पान आम लोगों से बिल्कुल भिन्न होती है। उनको ईश्वर की प्राप्ति का माध्यम माना जाता है। साधू-संत आमतौर पर पीला, केसरिया अथवा लाल रंगों के वस्त्र धारण करते हैं।

प्रदोष व्रत 2025 में कब-कब पड़ रहे?

क्या आप जानते हैं कि भगवान शिव की कृपा प्राप्त करने का एक शक्तिशाली उपाय है? जी हां, हम बात कर रहे हैं प्रदोष व्रत की। यह व्रत हर महीने की त्रयोदशी तिथि को मनाया जाता है और इसका महत्व हिंदू धर्म में बहुत अधिक है।

साल 2025 में अन्नप्राशन संस्कार के शुभ मुहूर्त (Annaprashan Muhurat 2025)

हिंदू धर्म की समृद्ध परंपरा में "सोलह संस्कार" का महत्वपूर्ण स्थान है, जो जीवन के हर महत्वपूर्ण पड़ाव को दिशा देते हैं। इन संस्कारों में से एक है अन्नप्राशन, जब बच्चा पहली बार ठोस आहार का स्वाद लेता है।

कर्णवेध संस्कार 2025 के शुभ मुहूर्त

हिंदू धर्म में 16 संस्कारों का विशेष महत्व है, और उनमें नौवां संस्कार है कर्णवेध। यह संस्कार बच्चे के कान छिदवाने का समय होता है, जो सामान्यतः 1 से 5 वर्ष की उम्र में किया जाता है।

विद्यारंभ संस्कार 2025 के शुभ मुहूर्त

एक बच्चे की शिक्षा यात्रा की शुरुआत एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर होता है जो उसके भविष्य को आकार देता है। यह संस्कार भारतीय परंपरा में विशेष महत्व रखता है, जहां ज्योतिष के अनुसार ग्रह-नक्षत्रों की स्थिति और शुभ योगों का ध्यान रखा जाता है ताकि बच्चे की शिक्षा और जीवन में सफलता के लिए सकारात्मक ऊर्जा का संचार हो।