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हिंदू धर्म की धार्मिक परंपराओं में प्रयागराज का खास स्थान है। यहां का त्रिवेणी संगम बेहद पवित्र माना जाता है। इस जगह पर गंगा, यमुना और सरस्वती नदी का मिलन होता है। कहा जाता है कि जो प्रयाग के त्रिवेणी संगम पर करता है, उसे मोक्ष मिलता है और सारे पापों से मुक्ति भी मिलती है। आमतौर पर स्नान करने से पहले गंगा मैया या भगवान गणेश की पूजा की जाती है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि प्रयाग के त्रिवेणी संगम पर स्नान करने से पहले वरुण देव की पूजा की जाती है। दरअसल वरुण देवता को जल और समुद्र का देवता माना जाता है। जिसके कारण उनकी पूजा के बिना जल में स्नान का पूरा महत्व प्राप्त नहीं होता। चलिए इस विषय पर आर्टिकल के जरिए आपको और विस्तार से बताते हैं।
भगवान वरुण की पूजा का धार्मिक महत्व है। दरअसल ऋग्वेद में वरुण देव को जल के देवता और समस्त सृष्टि के रक्षक के रूप में पूजा जाता है। मान्यता के मुताबिक वरुण देवता की पूजा करने से जल की शुद्धता और पवित्रता सुनिश्चित होती है। इसके अलावा जल से संबंधित सभी समस्याओं का समाधान होता है और वर्षा होती है।वेदों और पुराणों में भी उनकी महिमा का वर्णन किया गया है।इसी कारण से संगम पर स्नान करने वाले श्रद्धालु सबसे पहले वरुण देव की आराधना करते हैं। और फिर उनके आशीर्वाद से जल में प्रवेश करते हैं।
1.स्थान चयन
सुबह ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करने से पहले पूजा के लिए संगम के पास का एक पवित्र स्थान चुने।
2.संकल्प
पूजा की शुरुआत के साथ श्रद्धालु संकल्प ले और अपनी इच्छा और उद्देश्य को देवता के सामने प्रस्तुत करे।
3.धूप और दीप
अगले चरण में धूप और दीप जलाकर वरुण देवता का आह्वान करें और फिर जल को अंजलि में लेकर वरुण देव को अर्पित करें।
4.मंत्रोच्चारण
अंत में "ॐ वरुणाय नमः" मंत्र का जाप करते हुए पूजा संपन्न करें।
वरुण देव की पूजा हिंदू धर्म में उनके धार्मिक के साथ सांस्कृतिक महत्व को दर्शाती है। साथ ही हमें जल संरक्षण और उसके प्रति कृतज्ञता का भाव सिखाती है। बता दें कि सनातन परंपरा में प्रकृति के तत्वों के देवताओं को पूजने की परंपरा रही है।और वरुण देवता की पूजा इसका एक उत्कृष्ट उदाहरण है।
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