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पौष पूर्णिमा व्रत कथा

Paush Purnima Vrat Katha: पौष मास की पूर्णिमा क्यों मनाई जाती है, जानें व्रत कथा


पूर्णिमा यानी शुक्ल पक्ष का 15वां दिन। यह महीने में 1 बार आती है। इस तरह पूरे साल में कुल 12 पूर्णिमा तिथि होती है। इस साल 2025 पौष पूर्णिमा 13 जनवरी को है। पौष पूर्णिमा पर स्नान व दान करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है। पौष पूर्णिमा से प्रयागराज में कल्पवास का भी आरंभ हो जाता है। इस दिन किसी पवित्र तीर्थ स्थान पर स्नान करने से मनुष्य पापमुक्त होकर स्वर्गलोक में जाते हैं। सनातन धर्म में कोई भी व्रत व उपवास बिना व्रत कथा के अधूरा माना जाता है। इसलिए पौष पूर्णिमा का व्रत करते समय भी कथा अवश्य पढ़नी चाहिए। आइए जानते हैं पौष पूर्णिमा व्रत कथा के बारे में… 



पूर्णिमा व्रत कथा


एक समय की बात है, एक गरीब ब्राह्मण दंपत्ति एक छोटे से गांव में रहते थे। ब्राह्मण अत्यंत धर्मात्मा और श्रद्धालु थे, लेकिन उनकी आर्थिक स्थिति बहुत दयनीय थी। ब्राह्मणी भी अत्यंत धर्मपरायण और पतिव्रता थीं। वह दोनों भगवान की उपासना और पूजा-अर्चना करते थे, लेकिन उनकी गरीबी खत्म नहीं हो रही थी। एक दिन ब्राह्मण ने अपने गांव के पुजारी से अपनी समस्या बताई। पुजारी ने ब्राह्मण को पूर्णिमा व्रत करने का सुझाव दिया। उन्होंने बताया कि पूर्णिमा के दिन व्रत करने और भगवान विष्णु की पूजा करने से सभी कष्ट दूर हो सकते हैं और आर्थिक स्थिति में सुधार हो सकता है।


ब्राह्मण और उसकी पत्नी ने पूरे श्रद्धा भाव से पूर्णिमा व्रत का पालन करना शुरू किया। वो इस दिन उपवास रखते, स्नान कर भगवान विष्णु की पूजा करते और रात को चंद्रमा को अर्घ्य देकर ही व्रत खोलते थे। कुछ समय बाद, उनके जीवन में चमत्कारिक परिवर्तन आया। उनकी आर्थिक स्थिति धीरे-धीरे सुधरने लगी और वो सुखी और समृद्ध हो गए। उनके परिवार में खुशियों की बाढ़ आ गई और उनके सभी कष्ट समाप्त हो गए।


इस प्रकार, पूर्णिमा व्रत की महिमा अपार है और इसके पालन से जीवन के सभी दुखों का नाश होता है। भगवान विष्णु की कृपा से भक्तों के जीवन में सुख, शांति और समृद्धि का वास होता है। पूर्णिमा व्रत की इस कथा को सुनने और पालन करने से पुण्य की प्राप्ति होती है और भगवान की कृपा सदैव बनी रहती है। इस दिन व्रत करने से मनुष्य को मानसिक शांति, आध्यात्मिक बल और पारिवारिक सुख की प्राप्ति होती है।


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