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तिरुमला को क्यों कहा जाता है धरती का बैकुंठ

तिरुमला वैकुंठ द्वार को क्यों माना जाता है धरती का बैकुंठ, यहां जानिए इस स्थान का विशेष महत्व 


आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले में त‍िरुमाला की सातवीं पहाड़ी पर स्थित तिरुपति मंदिर विश्व का सबसे प्रसिद्ध है। यहां आने के बाद बैकुंठ जैसी अनुभूति होती है। मंदिर में स्थापित वेंकटेश्‍वर स्‍वामी को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है। मंदिर में स्थापित प्रतिमा और आसपास होने वाली अद्भुत घटनाओं के चलते इस स्थान को धरती का बैकुंठ भी कहा जाता है।



तिरुमला वैकुंठ द्वार की विशेषता 



समुद्र तल से 865 मीटर की ऊंचाई पर स्थित इस मंदिर में स्थापित भगवान श्री वेंकटेश्वर की मूर्ति स्वयंभू है। यही वजह है कि यह मंदिर भगवान विष्णु के 8 स्‍वयंभू मंदिरों में से एक माना जाता है। कहते हैं मंद‍िर में अर्पित क‍िए जाने वाली संपूर्ण सामग्री यानी कि फूल-मालाएं, दूध, मक्खन, पवित्र पत्ते, फल इत्‍याद‍ि सब एक गुप्त गांव से आता है। 


इतना ही नहीं मंदिर में स्थापित मूर्ति से कान लगाकर सुनने पर समुद्र की आवाज साफ सुनाई देती है। साथ ही मंदिर की मूर्ति भी हमेशा नम रहती है। बता दें कि तिरुपति मंदिर में एक ऐसा दीपक है जो बरसों से बिना घी-तेल के जलता है। इसके पीछे का कारण जानने के लिए कई प्रयास किए गए लेकिन आज तक बिना घी-तेल के जलने वाले इस दीपक का रहस्‍य सामने नहीं आ सका। वैकुंठ एकादशी के अवसर पर भगवान वेंकटेश्वर के वैकुंठ द्वार दर्शन करने के लिए तिरुमला के पवित्र मंदिर में बड़ी संख्या में भक्त उमड़ते हैं।


माँ अंजनी के लाला मेरा, एक काम कर दे(Maa Anjani Ke Lala Mera Ek Kaam Kar De)

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ओढ़ो जी ओढ़ो दादी, म्हारी भी चुनरिया (Odhoji Odho Dadi Mhari Bhi Chunariya)

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बरसाने की लट्ठमार होली

बरसाने में हर साल लट्ठमार होली फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि पर मनाई जाती है। इस साल 2025 में यह त्योहार 8 मार्च को मनाया जाएगा। पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार भगवान श्रीकृष्ण अपने मित्रों के साथ राधारानी से भेंट करने के लिए बरसाना गए, और वहां जाकर राधारानी और उनकी सखियों को छेड़ने लगे।