नवीनतम लेख

शुक्रवार व्रत कथा और महत्व

मां संतोषी को समर्पित होता है शुक्रवार का दिन, जानिए शुक्रवार व्रत कथा और महत्व


धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, सप्ताह के सातों दिनों में से शुक्रवार का दिन माता संतोषी को समर्पित माना जाता है। शुक्रवार के दिन मां संतोषी का व्रत उनकी व्रत कथा के बिना अधूरा माना जाता है। कहा जाता है कि संतोषी माता का व्रत गृहस्थ जीवन को धन-धान्य, पुत्र, अन्न और वस्त्र से परिपूर्ण बनाता है। ऐसा माना जाता है कि शुक्रवार के दिन पूजन करने से मां संतोषी अपने भक्तों को हर कष्ट से उबारती हैं। तो आइए, इस लेख में मां संतोषी की व्रत कथा और इसके महत्त्व को विस्तार से जानते हैं।

शुक्रवार व्रत कथा


बहुत समय पहले की बात है। एक बुढ़िया के सात पुत्र थे। उनमें से छह बेटे कमाते थे, जबकि सातवां बेटा बेरोजगार था। बुढ़िया अपने छह बेटों को प्रेम से खाना खिलाती और सातवें बेटे को उनकी थाली में बची हुई जूठन खिला देती। सातवें बेटे की पत्नी इस अन्याय से दुखी थी, परंतु उसका भोला-भाला पति इस पर ध्यान नहीं देता था।

एक दिन बहू ने यह बात अपने पति से कही। पति ने सच्चाई जानने के लिए सिरदर्द का बहाना बनाया और रसोई में जाकर छुपकर देखा। जब उसे सच्चाई का पता चला, तो उसने अपने घर से दूर किसी और राज्य में जाकर काम करने का निश्चय किया। घर छोड़ते समय उसने अपनी पत्नी को एक अंगूठी दी और विदा हो गया।

दूसरे राज्य में उसे एक सेठ की दुकान पर काम मिल गया। अपनी मेहनत के बल पर उसने सेठ के व्यापार में जल्दी ही अपनी जगह बना ली। उधर, बेटे के घर से चले जाने के बाद सास-ससुर ने बहू पर और अधिक अत्याचार करना शुरू कर दिया। बहू से घर का सारा काम करवाया जाता और उसे भूसे की रोटी और नारियल के खोल में पानी दिया जाता।

एक दिन लकड़ी बीनने जाते समय बहू ने कुछ महिलाओं को संतोषी माता की पूजा करते देखा। उनसे पूजा विधि जानकर उसने कुछ लकड़ियां बेच दीं और सवा रुपए का गुड़-चना खरीदकर संतोषी माता का व्रत रखने का संकल्प लिया। दो शुक्रवार बीतते ही बहू को उसके पति द्वारा भेजे गए पैसे मिल गए।


मां संतोषी का आशीर्वाद


बहू ने संतोषी माता के मंदिर में जाकर प्रार्थना की कि उसका पति वापस लौट आए। माता ने स्वप्न में उसके पति को दर्शन दिए और बहू के कष्टों के बारे में बताया। माता की कृपा से अगले ही दिन पति का सारा लेन-देन निपट गया, और वह गहने और कपड़े लेकर घर लौट आया।

उधर, बहू ने रोज लकड़ियां बीनते हुए संतोषी माता के मंदिर में दर्शन किए और अपनी समस्याओं को माता के साथ साझा किया। एक दिन माता ने स्वप्न में उसे बताया कि उसका पति जल्द ही लौट आएगा।

जब पति घर आया, तो उसने अपनी पत्नी की हालत देखी और अपनी मां से प्रश्न किया। बहू ने घर के बाहर से आवाज लगाई और भूसे की रोटी और नारियल के खोल में पानी मांगा। यह सुनकर सास ने झूठ बोलकर बहू पर आरोप लगाए, लेकिन बेटा सच समझ गया और अपनी पत्नी को अलग ले जाकर सुख से रहने लगा।


व्रत की परीक्षा और सफलता


कुछ समय बाद बहू ने शुक्रवार व्रत के उद्यापन (पूजा समापन) की इच्छा जताई। पति की अनुमति लेकर उसने अपने जेठ के बच्चों को निमंत्रण दिया। लेकिन जेठानी ने बच्चों को सिखा दिया कि खटाई मांगना। व्रत में खटाई खाना मना था, परंतु बच्चों ने जिद पकड़ ली और इमली खा ली। इस वजह से संतोषी माता नाराज हो गईं और बहू के पति को राजा के सैनिक पकड़कर ले गए।

बहू ने माता से क्षमा मांगी और दोबारा व्रत करने का संकल्प लिया। माता के आशीर्वाद से उसका पति रिहा हो गया। अगले शुक्रवार को बहू ने ब्राह्मण के बच्चों को भोजन कराया और दक्षिणा में पैसे देने की बजाय फल दिए। इस पर संतोषी माता प्रसन्न हुईं और बहू को सुंदर पुत्र का आशीर्वाद दिया।

इस घटना के बाद पूरे परिवार ने संतोषी माता की विधिवत पूजा शुरू कर दी और सुख-समृद्धि के साथ अपना जीवन व्यतीत किया।

तोरा मन दर्पण कहलाए - भजन (Tora Man Darpan Kahlaye)

तोरा मन दर्पण कहलाए,
भले, बुरे, सारे कर्मों को,

खाटुश्याम चालीसा (Khatushyam Chalisa )

श्री गुरु चरणन ध्यान धर, सुमीर सच्चिदानंद ।

भोले ऐसी भांग पिला दे, जो तन मन में रम जाए (Bhole Aisi Bhang Pila De Jo Tan Man Me Ram Jaye)

शिव समान दाता नहीं,
है ये देवों के है देव,

भवसागर तारण कारण हे (Bhava Sagara Tarana Karana He)

भवसागर तारण कारण हे ।
रविनन्दन बन्धन खण्डन हे ॥