नवीनतम लेख

वृश्चिक संक्रांति की पूजा विधि

Vrischika Sankranti Puja Vidhi 2024: वृश्चिक संक्रांति की पूजा विधि


संक्रांति मतलब सूर्य का एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करना और इसका वृश्चिक राशि में प्रवेश वृश्चिक संक्रांति कहलाता है। यह दिन सूर्य देव की विशेष पूजा और दान करने के लिए शुभ है और व्यक्ति के भाग्योदय में होता है। इस दिन भगवान सूर्य की आराधना और जल चढ़ाना बेहद शुभ माना जाता है। धार्मिक मान्यता है कि इस दिन सूर्य देव की पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है। साथ ही जीवन में हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त होती है। लेकिन पूजन की सही विधि के बारे में जानकारी होना भी जरूरी है। तो भक्त वत्सल पर जानते हैं वृश्चिक संक्रांति की पूजा विधि।


वृश्चिक संक्रांति की पूजा विधि


  • वृश्चिक संक्रांति के दिन सुबह उठकर स्नान आदि करने के बाद सूर्य देव की पूजा करें।
  • तांबे के लोटे में पानी डालकर उसमें लाल चंदन, रोली, हल्दी और सिंदूर मिलाकर भगवान सूर्य को अर्पित करें।
  • उसके बाद धूप-दीप से सूर्य देव की आरती करें।
  • सूर्य देव के मंत्रों का जाप करें। संभव हो तो सूर्य चालीसा का पाठ करें।
  • घी और लाल चंदन का लेप लगाकर भगवान के सामने दीपक जलाएं।
  • सूर्य देव को लाल फूल अर्पित करें और अंत में गुड़ से बने हलवा का भोग सूर्य देव को लगाएं।


वृश्चिक संक्रांति कब है? 


वैदिक पंचांग के अनुसार, सूर्य कार्तिक माह में कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि यानी 16 नवंबर को सुबह 7 बजकर 41 मिनट पर तुला राशि से निकलकर वृश्चिक राशि में प्रवेश करेंगे। इस राशि में सूर्य देव 14 दिसंबर तक रहेंगे। इसके अगले दिन 15 दिसंबर को सूर्य देव राशि परिवर्तन करेंगे। इसलिए वृश्चिक संक्रांति 16 नवंबर को मान्य होगी।


वृश्चिक संक्रांति शुभ मुहूर्त


  • वृश्चिक संक्रांति तिथि पर पुण्य काल सुबह 6 बजकर 45 मिनट से लेकर 7 बजकर 41 मिनट तक रहेगा।
  • वहीं वृश्चिक संक्रान्ति महा पुण्य काल सुबह 6 बजकर 45 मिनट से लेकर 7 बजकर 41 मिनट तक रहेगा। इस दौरान भक्त पवित्र नदियों में स्नान और पूजा पाठ करने के बाद दान पुण्य करने से बहुत लाभ मिलता है।


वृश्चिक संक्रांति महत्व


हिंदू धर्म में सभी संक्रांति की तरह वृश्चिक संक्रांति का सूर्य देव की पूजा हेतु बहुत अधिक महत्व है। इस दिन  पवित्र नदियों में स्नान कर पूजा पाठ और दान पुण्य करना बहुत लाभकारी माना गया हैं। वृश्चिक संक्रांति  अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिए भी कई तरह के अनुष्ठान करने का दिन हैं। मान्यता है कि इस दिन सूर्यदेव की पूजा और मंत्र जाप करने से पुण्य फल प्राप्त होता हैं और जीवन सुखमय हो जाता है।


पापमोचनी एकादशी कब है?

पापमोचनी एकादशी व्रत का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है। यह एकादशी फाल्गुन और चैत्र मास के संधिकाल में आती है और इसे साल की अंतिम एकादशी भी माना जाता है।

म्हारी झुँझन वाली माँ, पधारो कीर्तन में(Mhari Jhunjhan Wali Maa Padharo Kirtan Me)

म्हारी झुँझन वाली माँ,
पधारो कीर्तन में,

वैष्णव जन तो तेने कहिये, जे (Vaishnav Jan To Tene Kahiye Je)

वैष्णव जन तो तेने कहिये,
जे पीड परायी जाणे रे ।

सत्संगति से प्यार करना सीखोजी(Sat Sangati Se Pyar Karana Sikho Ji)

सत्संगति से प्यार करना सीखोजी
जीवन का उद्धार करना सीखोजी