नवीनतम लेख

श्री कृष्ण चालीसा ( Shri Krishna Chalisa)

कृष्ण चालीसा की रचना और महत्त्व


भगवान श्रीकृष्ण को भगवान विष्णु अवतार का माना गया है क्योंकि वे एकमात्र ऐसे अवतार रहे हैं, जो 16 कलाओं में निपुण थे। मनुष्य रूप में उन्होंने गुरु सांदीपनि से इन सभी 16 कलाओं को सीखा था। भगवान श्रीकृष्ण की कृपा पाने और सुख-समृद्धि की प्राप्ति के लिए श्रीकृष्ण चालीसा का पाठ करना चाहिए। कृष्ण चालीसा का निर्माण 40 छंदों से हुआ है। इसमें भगवान श्रीकृष्ण के सुंदर रूप और लीलाओं का वर्णन किया गया है। कृष्ण चालीसा का पाठ करना दिव्य भगवान कृष्ण के गुणों को याद करने और भगवान की दिव्य बाल लीलाओं को फिर से जीने का एक तरीका है। श्रीकृष्ण की पूजा के समय श्रीकृष्ण चालीसा का पाठ नियमित रूप से करना चाहिए। इसके नियमित पाठ से यश, सुख समृद्धि, धन-वैभव, पराक्रम, सफलता, खुशी, संतान, नौकरी और प्रेम जैसे दस आशीर्वाद प्राप्त होते हैं। एकादशी और जन्माष्टमी पर कृष्ण चालीसा का पाठ करना बेहद शुभ फलदायी माना गया है। आईये जानते हैं कृष्ण चालीसा का पाठ करने से और क्या-क्या लाभ होते हैं...


१) सिद्धि-बुद्धि, धन-बल और ज्ञान-विवेक से सुख और शांति की प्राप्ति होती है।

२) कृष्ण शक्ति और ज्ञान के मालिक हैं, उनकी कृपा मात्र से ही इंसान सारी तकलीफों से दूर हो जाता है और वह तेजस्वी बनता है।

३) धन की कमी कभी नहीं आती और संतान, नौकरी, प्रेम आदि क्षेत्रों में भी आपको सफलता अर्जित होती है।



॥ ।। दोहा ।।॥


बंशी शोभित कर मधुर, नील जलद तन श्याम ।

अरुण अधर जनु बिम्बफल, नयन कमल अभिराम ॥

पूर्ण इन्द्र, अरविन्द मुख, पीताम्बर शुभ साज ।

जय मनमोहन मदन छवि, कृष्णचन्द्र महाराज ॥


॥ चौपाई ॥


जय यदुनंदन जय जगवंदन ।

जय वसुदेव देवकी नन्दन ॥


जय यशुदा सुत नन्द दुलारे ।

जय प्रभु भक्तन के दृग तारे ॥


जय नटनागर, नाग नथइया |

कृष्ण कन्हइया धेनु चरइया ॥


पुनि नख पर प्रभु गिरिवर धारो ।

आओ दीनन कष्ट निवारो ॥4॥


वंशी मधुर अधर धरि टेरौ ।

होवे पूर्ण विनय यह मेरौ ॥


आओ हरि पुनि माखन चाखो ।

आज लाज भारत की राखो ॥


गोल कपोल, चिबुक अरुणारे ।

मृदु मुस्कान मोहिनी डारे ॥


राजित राजिव नयन विशाला ।

मोर मुकुट वैजन्तीमाला ॥8॥


कुंडल श्रवण, पीत पट आछे ।

कटि किंकिणी काछनी काछे ॥


नील जलज सुन्दर तनु सोहे ।

छबि लखि, सुर नर मुनिमन मोहे ॥


मस्तक तिलक, अलक घुँघराले ।

आओ कृष्ण बांसुरी वाले ॥


करि पय पान, पूतनहि तार्यो ।

अका बका कागासुर मार्यो ॥12॥


मधुवन जलत अगिन जब ज्वाला ।

भै शीतल लखतहिं नंदलाला ॥


सुरपति जब ब्रज चढ़्यो रिसाई ।

मूसर धार वारि वर्षाई ॥


लगत लगत व्रज चहन बहायो ।

गोवर्धन नख धारि बचायो ॥


लखि यसुदा मन भ्रम अधिकाई ।

मुख मंह चौदह भुवन दिखाई ॥16॥


दुष्ट कंस अति उधम मचायो ।

कोटि कमल जब फूल मंगायो ॥


नाथि कालियहिं तब तुम लीन्हें ।

चरण चिह्न दै निर्भय कीन्हें ॥


करि गोपिन संग रास विलासा ।

सबकी पूरण करी अभिलाषा ॥


केतिक महा असुर संहार्यो ।

कंसहि केस पकड़ि दै मार्यो ॥20॥


मातपिता की बन्दि छुड़ाई ।

उग्रसेन कहँ राज दिलाई ॥


महि से मृतक छहों सुत लायो ।

मातु देवकी शोक मिटायो ॥


भौमासुर मुर दैत्य संहारी ।

लाये षट दश सहसकुमारी ॥


दै भीमहिं तृण चीर सहारा ।

जरासिंधु राक्षस कहँ मारा ॥24॥


असुर बकासुर आदिक मार्यो ।

भक्तन के तब कष्ट निवार्यो ॥


दीन सुदामा के दुःख टार्यो ।

तंदुल तीन मूंठ मुख डार्यो ॥


प्रेम के साग विदुर घर मांगे।

दुर्योधन के मेवा त्यागे ॥


लखी प्रेम की महिमा भारी।

ऐसे श्याम दीन हितकारी॥


भारत के पारथ रथ हांके।

लिये चक्र कर नहिं बल थाके॥


निज गीता के ज्ञान सुनाए।

भक्तन हृदय सुधा वर्षाए॥


मीरा थी ऐसी मतवाली।

विष पी गई बजाकर ताली ॥


राना भेजा सांप पिटारी।

शालीग्राम बने बनवारी ॥


निज माया तुम विधिहिं दिखायो।

उर ते संशय सकल मिटायो ॥ 


तब शत निन्दा करि तत्काला। 

जीवन मुक्त भयो शिशुपाला॥


जबहिं द्रौपदी टेर लगाई।

दीनानाथ लाज अब जाई ॥


।। दोहा ।।


यह चालीसा कृष्ण का, पाठ करै उर धारि

अष्ट सिद्धि नवनिधि फल, लहै पदारथ चारि।

राम नाम को रटने वाले जरा सामने आओ(Ram Naam Ko Ratne Wale Jara Samne Aao)

राम नाम को रटने वाले
जरा सामने आओ तुम,

राधा कौन से पुण्य किये तूने(Radha Kon Se Punya Kiye Tune)

राधा कौन से पुण्य किये तूने,
जो हरि रोज तेरे घर आते हैं ॥

गौरी नंदन तेरा वंदन, करता है संसार (Gauri Nandan Tera Vandan Karta Hai Sansar)

गौरी नंदन तेरा वंदन,
करता है संसार,

अब मैं सरण तिहारी जी (Ab Main Saran Tihari Ji)

अब मैं सरण तिहारी जी,
मोहि राखौ कृपा निधान ॥

यह भी जाने