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हरछठ (Har Chhath)

हरछठ पर्व: ये व्रत करने से संतान-सुख की प्राप्ति होगी, भगवान बलराम के हल से जुड़ी है त्योहार की कहानी


भारत में ऐसे बहुत से दंपत्ति है जिनको लंबे समय तक संतान प्राप्ति नहीं होती है। सालों-साल तक प्रयास करने के बाद भी कोई लाभ नहीं मिलता है। जैसा कि हम जानते हैं हिंदू धर्म में हर समस्या का समाधान होता है। वैसे ही हमारे धर्म में इस समस्या से भी निजात पाने का तरीका हरछठ व्रत है। 


हरछठ या हलछठ पर्व के दिन व्रत रखने से संतान-सुख की प्राप्ति होती है। अब आपके दिमाग में हरछठ व्रत को लेकर कई सवाल आ रहे होंगे। तो आइए आज भक्त वत्सल के इस लेख में हम आपको बताएंगे कि हरछठ पर्व क्या है और इसमें व्रत रखने से हमें क्यों संतान प्राप्ति होती है? 


बलराम से जुड़ी है हरछठ की कहानी


पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान कृष्ण के जन्म से दो दिन पहले उनके बड़े भाई बलराम का जन्म हुआ था। इसी वजह से हर साल भाद्रपद महीने के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को रांधन छठ मनाई जाती है। इसे हलछट या हरछठ भी कहा जाता है। इसके अलावा इस शुभ त्योहार को हलष्टी, चंदन छठ, तिनच्छी, तिन्नी छठ, हलाछथ, हरचछथ व्रत, लल्ही छठ, कमर छठ या खमार छठ आदि नामों से भी जाना जाता है। इस दिन को बलराम जयंती के रूप में भी मनाया जाता है। 


हलषष्ठी का व्रत संतान प्राप्ति के लिए रखा जाता है 


हरछठ त्योहार के मौके पर व्रत भी रखा जाता है। यह व्रत विशेष रूप से वे महिलाएं रखती हैं जिन्हें संतान सुख की प्राप्ति नहीं हुई है। यह व्रत महिलाएं संतान की प्राप्ति और उनकी दीर्घायु के लिए रखती हैं। इस व्रत को करने से भगवान बलराम और छठ मैया का आशीर्वाद साथ में प्राप्त होता है। 


पंचांग के अनुसार, भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि 24 अगस्त को दोपहर 12 बजकर 30 मिनट से आरंभ होगी जो 25 अगस्त को सुबह 10 बजकर 11 मिनट तक चलेगी। इस त्योहार में पूजा दोपहर के समय की जाती है। ऐसे में हलषष्ठी व्रत 24 अगस्त 2024 को रखा जा रहा है।


व्रत में महिलाएं हल से जोती गई खेत की कोई चीज नहीं खाती हैं


हरछठ त्योहार का व्रत रखने वाली महिलाएं हल से जोते गए खेत की फसल की कोई चीज नहीं खाती हैं। साथ ही जमीन में उगाई कोई चीज खाती है। ऐसा इसलिए क्योंकि हल को बलराम का शस्‍त्र माना गया है। इस दिन तालाब में उगाई गई चीजें खाकर महिलाएं व्रत रखती हैं। हरछठ व्रत की पूजा दोपहर में करने का विधान है। महिलाएं सुबह 11 बजे से दोपहर 1 बजे तक पूजा करती हैं। अपने आंगन में झरबेरी, पलाश और कांसी की टहनी लगाकर पूजा करती हैं। छठी माता का चित्र बनाकर उनको सात अनाजों को मिलाकर बनाया हुआ सतनजा और दही-तिन्नी के चावल से भोग लगाती हैं। उसके बाद हरछठ की कथा सुनती हैं।


हरछठ व्रत की कथा: ग्वालिन अपने नवजात बच्चे को छोड़कर दूध बेचने गई


हरछठ व्रत कथा के अनुसार,  प्राचीन काल में एक ग्वालिन रहती थी जो गर्भवती थी। एक तरफ वह प्रसव संबंधित परेशानियों से व्याकुल थी तो वहीं दूसरी तरफ उसका मन दूध-दही बेचने में लगा हुआ था। उसने सोचा कि यदि उसे प्रसव हो गया तो उसका दूध-दही यूं ही पड़ा रह जाएगा। यही सोचकर उसने दूध-दही के घड़े को अपने सिर पर रखा और उसे बेचने के लिए निकल पड़ी। लेकिन कुछ ही दूर पहुंचने पर उसे प्रसव पीड़ा शुरू हो गई। उसके बाद वह एक झरबेरी की ओट में चली गई और वहां उसने एक बच्चे को जन्म दिया। लेकिन वह अपने बच्चे को वहीं छोड़कर पास के गांवों में दूध-दही बेचने के लिए निकल गई। उस दिन हरछठ थी। 


ग्वालिन ने चालाकी दिखाते हुए गाय-भैंस के मिश्रित दूध को सिर्फ भैंस का दूध बताकर गांव वालों को बेच दिया। जिस झरबेरी के नीचे ग्वालिन ने अपने बच्चे को छोड़ा था, उसी के पास के खेत में एक किसान हल जोत रहा था। अचानक किसान के बैल भड़क उठे जिससे हल ग्वालिन के बच्चे शरीर में घुस गया और बच्चे की मृत्यु हो गई।


किसान को इस घटना से बहुत दुख हुआ। उसने बच्चे के चिरे हुए पेट में टांके लगाए और उसे वहीं छोड़कर चला गया। कुछ देर बाद ग्वालिन अपने बच्चे के पास पहुंची। बच्चे को ऐसी हालत में देखकर उसे समझने में देर नहीं लगी कि यह सब उसके पाप की ही सजा है। वह मन ही मन सोचने लगी कि यदि उसने झूठ बोलकर गांव वालों को गाय का दूध न बेचा होता तो उसके बच्चे की ऐसा हालत कभी न होती। इसके बाद उसने प्रायश्चित करने की सोची। ग्वालिन ने गांव में लौटकर सब बातें गांव वालों को बता दी।


वह पूरे गांव घूमकर अपनी करतूत और उससे मिले दंड के बारे में सभी को बताने लगी। इसके बाद गांव की स्त्रियों ने उसे क्षमा कर दिया और आशीर्वाद दिया। गांव की स्त्रियों से आशीर्वाद लेकर जब वह फिर से झरबेरी के नीचे पहुंची तो वह आश्चर्यचकित रह गई, क्योंकि वहां उसका पुत्र जीवित था। तभी उसने स्वार्थ के लिए झूठ बोलने को ब्रह्म हत्या के समान समझा और कभी झूठ न बोलने का प्रण भी लिया।


हरछठ व्रत पूजा में एक बात का खास ध्यान रखना है


सूर्योदय से पहले एक साफ दीवार में भैंस का गोबर लेकर लेप लें। वहां पर छठी माता का चित्र बना लें या बाजार से चित्र लेकर आ जाए। फिर एक चौकी में एक कलश रख लें और भगवान गणेश के साथ माता पार्वती की तस्वीर स्थापित करके विधिवत पूजा करें। इसके बाद एक मिट्टी के कुल्हड़ में ज्वार की धानी और महुआ भर लें। इसके बाद छठ माता की विधिवत पूजा करें। फूल, माला, सिंदूर, हल्दी से रंगा हुआ वस्त्र और आभूषण चढ़ाए। इसके बाद सात प्रकार का अनाज गेहूं, मक्का, जो, अरहर, मूंग और धान चढ़ाएं। फिर घी का दीपक और धूप जलाकर छठ माता की कथा और मां पार्वती की आरती कर लें। अंत में भूल-चूक के लिए माफी मांग लें। फिर पूजा स्थान में बैठकर महुआ के पत्ते में महुआ और भैंस के दूध से बने दही को मिलाकर खाएं। बता दें कि इस दिन ऐसी चीजों का सेवन किया जाता है, जिसका अनाज बिना हल के जूते खेत से निकला हो।

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