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कार्तिगाई दीपम उत्सव क्या है

कार्तिगाई दीपम उत्सव पर क्यों जलाया जाता है 365 बातियों वाला दीया, इम मंदिर का है प्रमुख त्योहार 


कार्तिगाई दीपम उत्सव दक्षिण भारत के सबसे प्राचीन और महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है, जो भगवान कार्तिकेय को समर्पित है। यह उत्सव तमिल माह कार्तिगाई की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है, जो इस साल 13 दिसंबर को पड़ रहा है। इस दिन लोग मिट्टी के दीये जलाकर भगवान कार्तिकेय के प्रति अपना आभार व्यक्त करते हैं और अपने परिवार की सुख-समृद्धि के लिए प्रार्थना करते हैं।

तिरुवन्नामलाई अरुणाचलेश्वर स्वामी मन्दिर में आयोजित कार्तिगाई दीपम् उत्सव अत्यन्त प्रसिद्ध है, जो 10 दिनों तक चलता है। इस दिन  365 बातियों वाला दीया जलाने की भी परंपरा है। ऐसे में आइए जानते हैं कि इस उत्सव का महत्व क्या है और इस दिन 365 बातियों वाला दीया क्यों जलाया जाता है। 

कार्तिगाई दीपम उत्सव का महत्व 


कार्तिगाई दीपम उत्सव एक महत्वपूर्ण त्योहार है, जो तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में भव्यता के साथ मनाया जाता है। यह त्योहार भगवान कार्तिकेय को समर्पित है और इसे प्रकाश का त्योहार कहा जाता है। इस दिन लोग अपने घरों को दीयों से सजाते हैं और भगवान कार्तिकेय का आशीर्वाद मांगते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन भक्त गंगा नदी में पवित्र डुबकी भी लगाते हैं।

कार्तिगाई दीपम उत्सव के दिन क्यों जलाते हैं 365 बातियों वाला दीया 


आंध्र प्रदेश में कार्तिगाई दीपम उत्सव  के दिन लोग भगवान के सामने दीपक जलाए जाते हैं। उपवास रखते हैं और शाम को अपना उपवास तोड़ते हैं। लोग अपने घर को मिट्टी के दीयों से रोशन करते हैं। मान्यताओं के अनुसार, पूर्णिमा या कार्तिक पूर्णिमा के दिन बुरी शक्तियों को दूर करने के लिए 365 बत्तियों वाला एक बड़ा दीया जलाया जाता है और लोग इस शुभ त्योहार को मनाने के लिए कार्तिक पुराण पढ़ते हैं। यह त्योहार तमिलनाडु के तिरुवन्ना मलाई पहाड़ियों के शिव मंदिरों में बहुत धूमधाम से मनाया जाता है। 

कार्तिगाई दीपम् और भरणी दीपम् में अंतर 

 
कार्तिगाई दीपम् और भरणी दीपम् दो अलग-अलग अनुष्ठान हैं, जिन्हें अक्सर एक समान समझा जाता है। लेकिन वास्तव में ये दोनों अलग-अलग महत्व और उद्देश्यों के साथ मनाए जाते हैं।

भरणी दीपम् कार्तिगाई दीपम् का उद्घाटन अनुष्ठान है, जिसे सूर्योदय से पूर्व प्रातः 4 बजे किया जाता है। यह अनुष्ठान कार्तिगाई दीपम् से एक दिवस पूर्व या उसी दिन पड़ता है, जब भरणी नक्षत्र प्रबल होता है।

कार्तिगाई दीपम् सन्ध्याकाल में सूर्यास्त के उपरान्त लगभग 6 बजे भरणी दीपम् से ली गयी अग्नि से प्रज्वलित किया जाता है। इस ज्योति को पहाड़ी के शीर्ष पर कार्तिगाई महा दीपम् को प्रज्वलित करने हेतु ले जाया जाता है।

इस प्रकार, कार्तिगाई दीपम् और भरणी दीपम् दोनों अलग-अलग अनुष्ठान हैं, जिन्हें अलग-अलग समय और उद्देश्यों के साथ मनाया जाता है।

 

कैसे करें भगवान दत्तात्रेय की पूजा?

भगवान दत्तात्रेय को ब्रह्मा, विष्णु और महेश का ही अंश माना जाता है। माता अनुसूया की कठिन साधना के फलस्वरूप ये तीनों देव ही भगवान दत्तात्रेय के रूप में अवतरित हुए थे।

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