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कौन हैं ललिता देवी

Lalita Devi Katha: कौन हैं ललिता देवी, जानें इनसे जुड़ी सभी दिलचस्प बातें 


माता ललिता को समर्पित यह ललिता जयंती हर साल माघ मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है। दस महाविद्याओं में से एक है माता ललिता। इन्हें राज राजेश्वरी और ‍त्रिपुर सुंदरी भी कहा जाता है। माँ के अंदर 16 कलाएं विद्यमान हैं, जिसके कारण इन्हें षोडशी के नाम से भी जाना जाता है। इन्हें मुक्ति की देवी भी कहा जाता है। इसके अलावा इनके ललिता, राज-राजेश्वरी, महात्रिपुरसुन्दरी, बालापञ्चदशी, त्रिपुर सुंदरी जैसे अन्य भी कई नाम हैं। इनकी आराधना करने से भौतिक संपन्नता और रूप-यौवन की प्राप्ति होती है। बता दें कि माँ षोडशी को ही ललिता देवी कहा गया है, जो स्वयं पार्वती हैं। 


ललिता देवी की कथा


पौराणिक कथा के अनुसार, नैमिषारण्य में एक बार यज्ञ हो रहा था वहां दक्ष प्रजापति के आने पर सभी देवता गण उनका स्वागत करने के लिए उठे। लेकिन भगवान शंकर वहां होने के बावजूद भी नहीं उठे इसी अपमान का बदला लेने के लिए दक्ष ने अपने यज्ञ में शिवजी को आमंत्रित नही किया।

जिसका पता मां सती को चला तो वो बिना भगवान शंकर से अनुमति लिए अपने पिता राजा दक्ष के घर पहुंच गई। उस यज्ञ में अपने पिता के द्वारा भगवान शंकर की निंदा सुनकर और खुद को अपमानित होते देखकर उन्होने उसी अग्नि कुंड में कूदकर अपने प्राणों को त्याग दिया।  भगवान शिव को इस बात की जानकारी हुई तो वह मां सती के प्रेम में व्याकुल हो गए और उन्होने मां सती के शव को कंधे में रखकर इधर उधर उन्मत भाव से घूमना शुरू कर दिया। 

भगवान शंकर की इस स्थिति से विश्व की संपूर्ण व्यवस्था छिन्न भिन्न हो गई। ऐसे में विवश होकर भगवान विष्णु अपने सुदर्शन चक्र से माता सती के शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर दिए। जिसके बाद मां सती के शरीर के अंग कटकर गिर गए। उन अंगों से शक्ति की विभिन्न प्रकार की आकृतियां उन स्थानों पर विराजमान हुई और वह शक्तिपीठ स्थल बन गए।

बता दें कि महादेव भी उन स्थानों पर भैरव के विभिन्न रूपों में स्थित है। नैमिषारण्य में मां सती का ह्रदय गिरा था। नैमिष एक लिंगधारिणी शक्तिपीठ स्थल है। जहां लिंग स्वरूप में भगवान शिव की पूजा की जाती है और यही मां ललिता देवी का मंदिर भी है। जहां दरवाजे पर ही पंचप्रयाग तीर्थ विद्यमान है। भगवान शंकर को हृदय में धारण करने पर सती नैमिष में लिंगधारिणीनाम से विख्यात हुईं इन्हें ललिता देवी के नाम से पुकारा जाने लगा। 

ललिता जयंती का महत्व


शारदीय नवरात्रि के पांचवे दिन स्कंद माता के साथ मां सती स्वरूपा ललिता देवी की पूजा-अर्चना का विशेष महत्व है। इस दिन व्रत एवं पूजा करने से वैवाहिक जीवन में आ रही दिक्कतें अथवा रुकावट दूर होती हैं। तमाम रोग और कष्टों से मुक्ति मिलती है, जातक की उम्र लंबी होती है, संतान-सुख की प्राप्ति होती है। जातक जीवन के सारे सुख भोगकर अंत में मोक्ष प्राप्त करता है।

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शनिवार शनिदेव की पूजा-अर्चना के लिए सबसे महत्वपूर्ण माना गया है। शनिदेव को न्याय के देवता और कर्मफल दाता के रूप में जाना जाता है।

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