नवीनतम लेख

रवि प्रदोष व्रत विशेष योग

रवि प्रदोष व्रत पर बन रहा है यह विशेष योग, जानें क्या है इसका महत्त्व 


देवाधिदेव महादेव के लिए ही प्रदोष व्रत किया जाता है। धार्मिक मान्यता है कि प्रदोष व्रत के दिन महादेव का पूजन किया जाए तो प्रभु प्रसन्न होकर भक्तों पर अपनी कृपा बरसाते हैं। साथ ही उनके सभी कष्टों का भी निवारण कर देते हैं। पंचांग के अनुसार, हर महीने के शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि पर प्रदोष व्रत रखा जाता है। प्रदोष व्रत रखने पर दीर्घायु और आरोग्यता का वरदान भी मिलता है। तो आइए, इस आर्टिकल में जानते हैं कि इस दिन कौनसा शुभ योग बन रहा है और इस योग का क्या महत्त्व है।

 


रवि प्रदोष व्रत की तिथि और मुहूर्त 


फरवरी माघ का महीना है। इस माह शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि 9 फरवरी, रविवार की रात 7:25 बजे शुरू हो रही है और इस तिथि का समापन अगले दिन 10 फरवरी 6:57 बजे हो जाएगा। ऐसे में 9 फरवरी के दिन ही प्रदोष व्रत रखा जाएगा। रविवार के दिन पड़ने के चलते इसे रवि प्रदोष व्रत कहा जाता है। बता दें कि, प्रदोष काल की पूजा रात्रि में प्रदोष काल के दौरान होती है।



रवि प्रदोष व्रत शुभ योग 


फरवरी का पहला प्रदोष व्रत माघ माह के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी ति​थि को रखा जाएगा। यह प्रदोष व्रत रविवार के दिन है। इस वजह से यह रवि प्रदोष व्रत होगा। प्रदोष व्रत के दिन त्रिपुष्कर योग बन रहा है। रवि प्रदोष व्रत की पूजा के लिए आपको केवल सवा घंटे का शुभ मुहूर्त प्राप्त होगा। उस दिन प्रीति योग और पनुर्वस नक्षत्र का शुभ संयोग बनेगा। 



त्रिपुष्कर समेत 2 शुभ योग में करें प्रदोष व्रत


रवि प्रदोष व्रत के दिन त्रिपुष्कर समेत 2 शुभ योग बन रहे हैं। प्रदोष के दिन त्रिपुष्कर योग का निर्माण हो रहा है, जो शाम को 05 बजकर 53 मिनट से शाम 07 बजकर 25 पी एम तक रहेगा। वहीं, उस दिन प्रीति योग दोपहर में 12 बजकर 7 मिनट से बनेगा, जो पूर्ण रात्रि तक है। उससे पहले विष्कम्भ योग होगा। प्रदोष व्रत के दिन आर्द्रा नक्षत्र प्रात:काल से लेकर शाम 05:53 बजे तक है। जबकि, इसके बाद से पुनर्वसु नक्षत्र आरंभ हो जाएगा। 



जानिए रवि प्रदोष व्रत का महत्व

जो व्यक्ति विधि विधान से रवि प्रदोष व्रत रखता है, उसके आयु में वृद्धि होती है और सुख-शांति में बढ़ोत्तरी होती है। शिव पूजा करने से आपकी कुंडली का सूर्य और चंद्र दोष दूर होगा। आपके कष्ट, रोग और दोष मिटेंगे। शिव कृपा से व्यक्ति की मनोकामनाएं पूरी होती हैं।



नारायणी शरणम्(Narayani Sharanam)

नारायणी शरणम
दोहा – माँ से भक्ति है,

क्या है वैदिक मंत्र?

दिक मंत्र सदियों से सनातन संस्कृति और हिंदू धर्म का अभिन्न हिस्सा रहा हैं। ये मंत्र प्राचीन वैदिक साहित्य से उत्पन्न हुए हैं और इनका उल्लेख वेदों, उपनिषदों और अन्य धर्मग्रंथों में भी मिलता है।

मेरे गणनायक तुम आ जाओ (Mere Gannayak Tum Aa Jao)

मेरे गणनायक तुम आ जाओ,
मैं तो कबसे बाट निहार रही,

मेरी झोली छोटी पड़ गयी रे(Meri Jholi Chhoti Padgayi Re Itna Diya Meri Mata)

मेरी झोली छोटी पड़ गयी रे,
इतना दिया मेरी माता।