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नाग स्तोत्रम् (Nag Stotram)

ब्रह्म लोके च ये सर्पाःशेषनागाः पुरोगमाः।

नमोऽस्तु तेभ्यः सुप्रीताःप्रसन्नाः सन्तु मे सदा॥1॥


विष्णु लोके च ये सर्पाःवासुकि प्रमुखाश्चये।

नमोऽस्तु तेभ्यः सुप्रीताःप्रसन्नाः सन्तु मे सदा॥2॥


रुद्र लोके च ये सर्पाःतक्षकः प्रमुखास्तथा।

नमोऽस्तु तेभ्यः सुप्रीताःप्रसन्नाः सन्तु मे सदा॥3॥


खाण्डवस्य तथा दाहेस्वर्गन्च ये च समाश्रिताः।

नमोऽस्तु तेभ्यः सुप्रीताःप्रसन्नाः सन्तु मे सदा॥4॥


सर्प सत्रे च ये सर्पाःअस्थिकेनाभि रक्षिताः।

नमोऽस्तु तेभ्यः सुप्रीताःप्रसन्नाः सन्तु मे सदा॥5॥


प्रलये चैव ये सर्पाःकार्कोट प्रमुखाश्चये।

नमोऽस्तु तेभ्यः सुप्रीताःप्रसन्नाः सन्तु मे सदा॥6॥


धर्म लोके च ये सर्पाःवैतरण्यां समाश्रिताः।

नमोऽस्तु तेभ्यः सुप्रीताःप्रसन्नाः सन्तु मे सदा॥7॥


ये सर्पाः पर्वत येषुधारि सन्धिषु संस्थिताः।

नमोऽस्तु तेभ्यः सुप्रीताःप्रसन्नाः सन्तु मे सदा॥8॥


ग्रामे वा यदि वारण्येये सर्पाः प्रचरन्ति च।

नमोऽस्तु तेभ्यः सुप्रीताःप्रसन्नाः सन्तु मे सदा॥9॥


पृथिव्याम् चैव ये सर्पाःये सर्पाः बिल संस्थिताः।

नमोऽस्तु तेभ्यः सुप्रीताःप्रसन्नाः सन्तु मे सदा॥10॥


रसातले च ये सर्पाःअनन्तादि महाबलाः।

नमोऽस्तु तेभ्यः सुप्रीताःप्रसन्नाः सन्तु मे सदा॥11॥


॥ इति नाग स्तोत्रम् संपूर्णं ॥


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