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एक पौराणिक कथा है जिसके अनुसार जब प्रह्लाद भगवान विष्णु की स्तुति गाने के लिए अपने पिता हिरण्यकश्यप के सामने अड़ गए, तो हिरण्यकश्यप ने भगवान हरि के भक्त प्रह्लाद को आठ दिनों तक यातनाएं दीं। फिर भी प्रह्लाद अपनी भक्ति के मार्ग से विचलित नहीं हुए। हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका को प्रह्लाद को मारने का आदेश दिया। इसके चलते होलिका अपने भतीजे प्रह्लाद को गोद में लेकर अग्नि की चिता पर बैठ गई। दरअसल, होलिका को वरदान मिला था कि अग्नि उसे नहीं जला पाएगी। लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से होलिका उस अग्नि में जलकर भस्म हो गई। आठ दिनों तक प्रह्लाद पर हुए अत्याचारों को देखकर सभी ग्रह, नक्षत्र, देवी-देवता क्रोधित हो गए। यही कारण है कि आज भी होलाष्टक के दौरान कोई भी शुभ कार्य करना वर्जित है।


होलाष्टक से जुड़ी एक और कहानी:



एक अन्य कहानी में माना जाता है कि होलाष्टक के दिन महादेव ने कामदेव को अपनी तीसरी आंख से भस्म कर दिया था। कामदेव की मृत्यु की खबर से पूरा देवलोक शोक में डूब गया था। उसके बाद कामदेव की पत्नी रति ने भगवान शिव से प्रार्थना की और उनसे कामदेव को जीवित करने का अनुरोध किया। इसके बाद भोलेनाथ ने दया दिखाई और कामदेव को पुनः जीवित कर दिया।


होलाष्टक की धार्मिक मान्यता:


धार्मिक दृष्टि से यह समय भक्ति, तप और संयम का माना जाता है। इस दौरान देवी-देवताओं की पूजा, मंत्र जाप और व्रत करने से विशेष लाभ मिलता है। तांत्रिक दृष्टि से यह समय सिद्धियों और साधना के लिए उपयुक्त माना जाता है, लेकिन शुभ कार्यों के लिए नहीं।


होलाष्टक के दौरान शुभ कार्य करने का प्रभाव:


ऐसा माना जाता है कि होलाष्टक के दौरान शुभ कार्य करने वाले व्यक्ति को जीवन में कई प्रतिकूल घटनाओं का सामना करना पड़ता है। ऐसे व्यक्ति के परिवार में प्रतिकूल परिस्थितियां विकसित होने लगती हैं और असमय मृत्यु का खतरा मंडराने लगता है। इतना ही नहीं, परिवार में कलह और संघर्ष का माहौल भी विकसित होता है।

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