नवीनतम लेख

ब्रह्मा जी की पूजा विधि

कैसे की जाती है भगवान ब्रह्मा की पूजा, जानिए किन कारणों से उन्हें नहीं पूजा जाता 


ब्रह्मा जी, जिन्हें सृष्टि के रचयिता के रूप में जाना जाता है, के कई मंदिर होने के बावजूद उनका सबसे प्रसिद्ध मंदिर राजस्थान के पुष्कर में स्थित है। ब्रह्मा जी की पूजा और उपासना के लिए एक विशिष्ट परंपरा "वैखानस संप्रदाय" में देखी जाती है। यह परंपरा वैदिक और धार्मिक रीतियों पर आधारित है। माध्व संप्रदाय के आदि आचार्य के रूप में ब्रह्मा जी को पूजा जाता है, विशेषकर उडुपी और अन्य मध्वपीठों में। हालांकि, प्रचलित समाज में उनकी पूजा बहुत कम होती है। उनके नाम से न तो कोई व्रत रखा जाता है और न ही कोई पर्व मनाया जाता है। इसका कारण उनके जीवन से जुड़ी कुछ घटनाएं और उनसे जुड़ी कथाएं हैं।


ब्रह्मा जी की पूजा ना होने के प्रमुख कारण


>> पहला कारण: सावित्री का क्रोध और शाप

पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार ब्रह्मा जी को पुष्कर में एक यज्ञ करना था। इस यज्ञ में उनकी पत्नी सावित्री को उनके साथ होना था। लेकिन सावित्री यज्ञ स्थल पर समय पर नहीं पहुँच पाईं। यज्ञ का शुभ समय निकल रहा था, और उसे बचाने के लिए ब्रह्मा जी ने स्थानीय ग्वालिन गायत्री से विवाह कर लिया। गायत्री देवी वेदों में पारंगत थीं और पुष्कर की निवासी थीं। जब सावित्री वहां पहुंचीं और यज्ञ में गायत्री को उनकी जगह बैठा देखा, तो वह क्रोध से पागल हो गईं। क्रोधित सावित्री ने ब्रह्मा जी को शाप दिया, "पृथ्वी पर तुम्हारी पूजा नहीं होगी।" सभी देवताओं ने सावित्री से विनती की कि वे अपने शाप को वापस लें। गुस्सा ठंडा होने पर सावित्री ने कहा कि केवल पुष्कर में ब्रह्मा जी की पूजा होगी। यदि पृथ्वी पर कहीं और उनके मंदिर बनाए गए, तो उनका विनाश हो जाएगा। यही कारण है कि ब्रह्मा जी के मंदिर केवल पुष्कर में स्थित हैं।


पुष्कर झील का निर्माण


किंवदंती है कि ब्रह्मा जी ने पुष्कर में एक महत्वपूर्ण यज्ञ किया था। यह यज्ञ कार्तिक शुक्ल एकादशी से पूर्णिमा तक हुआ। यहीं पर उनके हाथ से गिरा हुआ कमल पुष्प झील का कारण बना। इसे ही आज पुष्कर झील के रूप में पूजा जाता है। झील के निकट ब्रह्मा जी का एकमात्र प्राचीन मंदिर है, जबकि पहाड़ की चोटी पर उनकी पहली पत्नी सावित्री का मंदिर है। यह मंदिर समुद्र तल से 2,369 फुट की ऊंचाई पर स्थित है।


>> दूसरा कारण: शिव को असत्य वचन कहना

दूसरी कथा के अनुसार, ब्रह्मा जी और भगवान विष्णु ने ब्रह्मांड की थाह लेने के लिए भगवान शिव की आज्ञा का पालन किया। ब्रह्मा जी ने असत्य वचन कहकर अपनी यात्रा का विवरण भगवान शिव को सुनाया। इस असत्य वचन के कारण भगवान शिव ने उन्हें यह शाप दिया कि उनकी पूजा पृथ्वी पर नहीं होगी।


क्या है पूजा विधि? 


सबसे पहले पूजन का संकल्प कर एक चौकी पर साफ सफेद रंग का कपड़ा बिछाकर उस पर हल्दी या केसर से रंगे अक्षत से अष्टदल कमल बनाकर उस पर ब्रह्माजी की सुवर्णमूर्ति स्थापित करें। इसके बाद गणेशाम्बिका की पूजा करें और फिर इस मंत्र का जाप करें।

।। “ऊं ब्रह्मणे नमः” ।। 


पद्मपुराण में मिलता है उल्लेख


पद्मपुराण में पुष्कर के महत्व का विस्तृत वर्णन मिलता है। इसमें ब्रह्मा जी के यज्ञ और पुष्कर झील के उद्भव का उल्लेख है। हर साल कार्तिक पूर्णिमा पर पुष्कर में एक भव्य मेला आयोजित होता है। यह मेला यज्ञ की स्मृति में मनाया जाता है। दुनिया भर के श्रद्धालु ब्रह्मा जी के दर्शन और पूजा के लिए पुष्कर आते हैं।


राजस्थान के अजमेर से दूरी


पुष्कर, राजस्थान के अजमेर शहर से मात्र 14 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह स्थान धार्मिक और पर्यटन दृष्टि से अत्यधिक महत्वपूर्ण है। पुष्कर में ब्रह्मा जी की पूजा करना अद्वितीय आध्यात्मिक अनुभव प्रदान करता है। यह स्थान भक्ति, शांति और धर्म का प्रतीक है।


मोहे मुरली बना लेना(Mohe Murli Bana Lena)

कान्हा मेरी सांसो पे,
नाम अपना लिखा लेना,

गजानन आये मेरे द्वार(Gajanan Aaye Mere Dwar )

गजानन आए मेरे द्वार॥
श्लोक – वक्रतुंड महाकाय,

बृन्दावन का कृष्ण कन्हैया (Brindavan Ka Krishan Kanhaiya Sabki Aankhon Ka Tara)

बृन्दावन का कृष्ण कन्हैया
सब की आँखों का तारा

करती हूँ तुम्हारा व्रत मैं - माँ संतोषी (Karti Hu Tumhara Vrat Main)

करती हूँ तुम्हारा व्रत मैं,
स्वीकार करो माँ,

यह भी जाने