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अथ वेदोक्तं रात्रिसूक्तम् (Ath Vedokta Ratri Suktam)

वेदोक्तम् रात्रि सूक्तम् यानी वेद में वर्णन आने वाले इस रात्रि सूक्त का पाठ कवच, अर्गला और कीलक के बाद किया जाता है। इसके बाद तन्त्रोक्त रात्रि सूक्त और देव्यथर्वशीर्षम् स्तोत्रम् का पाठ किया जाता है। नवरात्र में शक्ति साधना व कृपा प्राप्ति का सरल उपाय देवी-सूक्‍त का पाठ है। देवी सूक्तम् ऋग्वेद का एक मंत्र है जिसे अम्भ्राणी सूक्तम् भी कहते हैं। इसमें 8 श्लोक हैं। यह वाक् (वाणी) को समर्पित है। ऐसा माना जाता है कि नवरात्र में जो साधक दुर्गा सप्तशती का पाठ न कर सके वह केवल देवी-सूक्‍त के पाठ करने से ही पूर्ण दुर्गा सप्तशती के पाठ का फल प्राप्‍त कर लेता है। देवी-सूक्‍त से माँ दुर्गा बहुत प्रसन्न होती हैं। रात्रि सूक्तम के साथ-साथ यदि देवी सूक्तम और दस-महाविधा की पूजा और पाठ किया जाए तो, रात्रि सूक्तम का बहुत लाभ मिलता है, मनोवांछित कामना पूर्ण होती है, यह सूक्तम शीघ्र ही फल देने लग जाता है, यदि साधक मंगलदोष को दूर करना चाहता है तो मंगलवार व्रत करना चाहिए|


वेदोक्त रात्रिसूक्त का पाठ शुभ दिन और शुभ समय में करें 


राहुकाल में स्तोत्र का पाठ नहीं करना चाहिए। इसके अलावा आप इन शुभ मुहूर्त में पाठ कर सकते हैं। 


  1. नवरात्रि के दौरान सुबह 4:00 से 6:00 बजे तक
  2. दोपहर 12:00 से 2:00 बजे तक (मध्याह्न)
  3. रात 9:00 से 11:00 बजे तक (रात्रि)



वेदोक्त रात्रिसूक्त का पाठ करने से होते हैं ये लाभ 


  1. इसके पाठ से भक्तों के जीवन से अंधकार दूर होता है। 
  2. इसके पाठ से जीवन में ज्ञान की ज्योति आती है। 
  3. इस स्तोत्र का पाठ करने से घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है। 
  4. इस पवित्र स्तोत्र का पाठ करने से शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है। 
  5. जीवन ने दुख और दरिद्रता समाप्त होती है। 
  6. सभी कष्टों का नाश होता है।  
  7. मानसिक संताप दूर करता है
  8. धन, ऐश्वर्य और वैभव देकर आनंद और शांति देता है।


स्तोत्र


ॐ रात्रीत्याद्यष्टर्चस्य सूक्तस्यकुशिकः सौभरो रात्रिर्वा भारद्वाजो ऋषिः, रात्रिर्देवता,गायत्री छन्दः, देवीमाहात्म्यपाठे विनियोगः।


ॐ रात्री व्यख्यदायती पुरुत्रा देव्यक्षभिः। विश्वा अधि श्रियोऽधित॥1॥

ओर्वप्रा अमर्त्यानिवतो देव्युद्वतः। ज्योतिषा बाधते तमः॥2॥

निरु स्वसारमस्कृतोषसं देव्यायती। अपेदु हासते तमः॥3॥

सा नो अद्य यस्या वयं नि ते यामन्नविक्ष्महि। वृक्षे न वसतिं वयः॥4॥

नि ग्रामासो अविक्षत नि पद्वन्तो नि पक्षिणः। नि श्येनासश्चिदर्थिनः॥5॥

यावया वृक्यं वृकं यवय स्तेनमूर्म्ये। अथा नः सुतरा भव॥6॥

उप मा पेपिशत्तमः कृष्णं व्यक्तमस्थित। उष ऋणेव यातय॥7॥

उप ते गा इवाकरं वृणीष्व दुहितर्दिवः। रात्रि स्तोमं न जिग्युषे॥8॥


॥ इति ऋग्वेदोक्तं रात्रिसूक्तं समाप्तं ॥


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