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आंवला नवमी व्रत कथा (Amla Navami Vrat Katha)

Amla Navami 2024: अक्षय नवमी पर आंवले के पेड़ की पूजा से मिलता है विष्णु जी का आशीर्वाद, जानिए क्या है व्रत कथा और नियम


आंवला नवमी व्रत आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को रखा जाता है। आंवला नवमी के दिन ही भगवान विष्णु ने कुष्माण्डक नामक दैत्य को मारा था और साथ ही आंवला नवमी पर ही भगवान श्रीकृष्ण ने कंस का वध करने से पहले तीन वनों की परिक्रमा भी की थी। इस दिन सभी महिलाएं अपने परिवार की सुख-समृद्धि के लिए उपवास रखती है। इस साल यानी 2024 में आंवला नवमी का व्रत 10 नवंबर को रखा जाएगा। इस दिन आंवले के पेड़ के नीचे भोजन बनाने और उसे ग्रहण करने का विशेष महत्त्व है। इससे उत्तम स्वास्थ मिलता है और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। चलिए जानते हैं आंवला नवमी के व्रत से जुड़ी महत्वपूर्ण बातें, व्रत के नियम और आंवला नवमी व्रत कथा। 


आंवला नवमी व्रत के नियम 


1. व्रत के दिन सुबह स्नान करें और साफ कपड़े पहनें।

2. आंवले के पेड़ के नीचे पूजा करें।

3. आंवले के पेड़ पर जल और पुष्प चढ़ाएं।

4. आंवले के पेड़ की परिक्रमा करें।

5. भगवान विष्णु की पूजा करें।

6. व्रत के दिन केवल फल और जल ग्रहण करें।

7. रात में आंवले के पेड़ के नीचे बैठकर ध्यान करें।

8. व्रत के अगले दिन सुबह आंवले के पेड़ के नीचे भोजन करें।


आंवला नवमी व्रत के लाभ 


1. स्वास्थ्य और दीर्घायु होने का वरदान। 

2. पापों से क्षमा।

3. भगवान विष्णु की कृपा।

4. घर में सुख और समृद्धि।

5. व्रत से आत्मशुद्धि और मानसिक शांति। 


आंवला नवमी व्रत की कथा 


आंवला नवमी व्रत की कथा के अनुसार भगवान विष्णु द्वारा आंवले के पेड़ को बहुत पवित्र माना गया है। इस पेड़ की पूजा से भगवान विष्णु की कृपा मिलती है और स्वास्थ्य और दीर्घायु की प्राप्ति होती है। आंवला नवमी व्रत कथा कुछ इस प्रकार है। 


भगवान विश्वनाथ की नगरी काशी में एक निसंतान व्यक्ति रहता था। वह संतान प्राप्ति के लिए कई मिन्नतें कर चुका था। लेकिन, उसके घर में किलकारी नहीं गूंजी। एक दिन उसकी पत्नी को पड़ोसी महिला ने एक उपाय बताया कि एक बालक की भैरव को बली चढ़ा दो, इससे तुम्हें संतान की प्राप्ति होगी। जब इस बात को उसने अपने पति से बताया तो उसके पति ने इससे साफ इंकार कर दिया। इसके बाद भी उस महिला ने भैरव को एक बच्चे की बली देने का निर्णय लिया। एक दिन मौका पाकर उस महिला ने एक कन्या को कुए में धकेल दिया और भैरव के नाम पर बली दे दी। जिससे उसपर पर हत्या का पाप चढ़ गया और उसके पूरे बदन में कोढ़ हो गया। यह बात जब उसके पति को पता चली, तो उसने अपनी पत्नी से कहा कि गौवध, ब्राह्मण वध और बाल वध करना अधर्म है। इसलिए, तुम्हारे शरीर में कोढ़ हो गया है। तुम्हें इस समस्या से छुटकारा पाने के लिए माता गंगा की शरण में जाना होगा। अपने पति के कहने पर वह महिला मां गंगा की शरण में गई। इसके बाद गंगा मईया ने उसे कहा कि तुम कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी को आंवले के पेड़ का पूजन और आंवले का सेवन करना। इसके बाद महिला ने माँ गंगा के कहे अनुसार ही सबकुछ किया, जिसके परिणाम स्वरूप वह कोढ़ से मुक्त हो गई। साथ ही ये व्रत करने से कुछ दिनों बाद ही उसे संतान प्राप्ति भी हुई। तभी से लेकर लोग इस उपवास को परंपरा अनुसार करते आ रहे हैं। जिसे आँवला नवमी के नाम से भी जाना जाता है।


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