नवीनतम लेख

होलाष्टक से जुड़े पौराणिक कथा

Holashtak Katha: क्यों अशुभ माना जाता है होलाष्टक? पौराणिक कथा में बताई गई है वजह, यहां जानें



होलाष्टक का सबसे महत्वपूर्ण कारण हिरण्यकश्यप और प्रह्लाद की कथा से जुड़ा है। खुद को भगवान मानने वाला हिरण्यकश्यप अपने बेटे प्रह्लाद की भक्ति से नाराज था। उसने फाल्गुन शुक्ल अष्टमी से प्रह्लाद को भयंकर यातनाएं देनी शुरू कर दीं। इन आठ दिनों में प्रह्लाद को कई तरह की यातनाएं दी गईं, लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से वह बच गया। अंततः फाल्गुन पूर्णिमा के दिन होलिका का दहन हुआ और प्रह्लाद विजयी हुए। इसलिए इन आठ दिनों को कष्ट, संघर्ष और नकारात्मक ऊर्जा का समय माना जाता है और कोई भी शुभ कार्य नहीं किए जाते हैं।


ज्योतिषीय कारण:


ज्योतिषीय मान्यता के अनुसार अष्टमी से पूर्णिमा तक नौ ग्रह भी उग्र रूप धारण कर लेते हैं, इसलिए इस अवधि में किए गए शुभ कार्य अशुभ होने की संभावना रहती है। होलाष्टक में अष्टमी को चंद्रमा, नवमी को सूर्य, दशमी को शनि, एकादशी को शुक्र, द्वादशी को बृहस्पति, त्रयोदशी को बुध, चतुर्दशी को मंगल और पूर्णिमा को राहु उग्र हो जाते हैं और नकारात्मकता में वृद्धि होती है। इसका असर व्यक्ति की सोचने-समझने की क्षमता पर भी पड़ता है।


होली से जुड़े धार्मिक और तांत्रिक मान्यता:


धार्मिक दृष्टि से यह समय भक्ति, तप और संयम का माना जाता है। इस दौरान देवी-देवताओं की पूजा, मंत्र जाप और व्रत करने से विशेष लाभ मिलता है। तांत्रिक दृष्टि से यह समय सिद्धियों और साधना के लिए उपयुक्त माना जाता है, लेकिन शुभ कार्यों के लिए नहीं।


वैज्ञानिक परिप्रेक्ष्य:


होलाष्टक की परंपरा न केवल धार्मिक है, बल्कि इसका वैज्ञानिक महत्व भी है। इसके अनुसार होलाष्टक का विज्ञान प्रकृति और जलवायु में होने वाले परिवर्तनों से जुड़ा है। आजकल वातावरण में बैक्टीरिया और वायरस अधिक सक्रिय हैं। सर्दी से गर्मी में आने वाले इस मौसम में सूर्य की पराबैंगनी किरणें शरीर पर प्रतिकूल प्रभाव डालती हैं। होलिका दहन के दौरान निकलने वाली अग्नि शरीर के आसपास के बैक्टीरिया और नकारात्मक ऊर्जा को भी नष्ट कर देती है। क्योंकि होलिका दहन के दौरान गाय के गोबर के उपले, पीपल, पलाश, नीम और अन्य पेड़ों से निकलने वाला धुआं स्वास्थ्य के लिए अच्छा होता है। इसलिए होलाष्टक के दिनों में उचित खानपान की सलाह दी जाती है।

भगवान कार्तिकेय की पूजा किस विधि से करें?

हिंदू धर्म में भगवान कार्तिकेय शिव-शक्ति के ज्येष्ठ पुत्र हैं। उन्हें युद्ध और बुद्धि का देवता कहा जाता है। इतना ही नहीं, भगवान कार्तिकेय को शक्ति और पराक्रम का स्वामी के रूप में भी जाना जाता है।

शिव शंकर भोलेनाथ, तेरा डमरू बाजे पर्वत पे (Shiv Shankar Bholenath Tera Damru Baje Parvat Pe)

शिव शंकर भोलेनाथ,
तेरा डमरू बाजे पर्वत पे,

जब जब हम दादी का, मंगल पाठ करते हैं(Jab Jab Hum Dadiji Ka Mangalpath Karte Hai)

जब जब हम दादी का,
मंगल पाठ करते हैं,

हे सरस्वती माँ ज्ञान की देवी किरपा करो(Hey Saraswati Maa Gyan Ki Devi Kirpa Karo)

हे सरस्वती माँ ज्ञान की देवी किरपा करो
देकर वरदान हे मात मेरा अज्ञान हरो