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सनातन धर्म में पितृपक्ष में श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान करने का बहुत महत्व बताया गया है। मान्यता है कि पितृ पक्ष में पितरों के नियमित श्राद्ध करने से जातक को पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है। इसीलिए हर साल पितृ पक्ष में पितरों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध कर्म किए जाते हैं। यह परंपरा पुराणों और धार्मिक ग्रंथों में वर्णित है। गरुड़ पुराण में कहा गया है कि पितृपक्ष में श्राद्ध और तर्पण करने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है। लेकिन क्या आप ये जानते हैं कि भारत में कुछ धार्मिक स्थल ऐसे हैं जहां श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान करने से आपके पूर्वजों की आत्मा को शांति मिलती है और उनकी कृपा से आपके जीवन में सुख-समृद्धि आती है। भक्तवत्सल के इस लेख में आज हम आपको उन सभी धार्मिक स्थलों के बारे में बताएंगे, जहां श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान करने से पूर्वज प्रसन्न होते हैं, और आप पर कृपा करते हैं...
देशभर में श्राद्ध कर्म और पिंडदान के लिए कई धार्मिक स्थलों को महत्वपूर्ण माना गया है, जिसमें बिहार के गया का स्थान है। गया में श्राद्ध कर्म, तर्पण विधि और पिंडदान करने के से व्यक्ति पितृऋण से मुक्त हो जाता है। वायु पुराण, गरुड़ पुराण और विष्णु पुराण में भी गया शहर का महत्व बताया गया है। इस तीर्थ पर पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है इसलिए गया को मोक्ष की भूमि अर्थात मोक्ष स्थली कहा जाता है। गया शहर में हर साल पितृपक्ष के दौरान एक मेला लगता है, जिसे पितृपक्ष का मेला भी कहा जाता है। धर्मशास्त्र के अनुसार गया की 54 वेदियों में विष्णु पद प्रथम है। इसके दर्शन मात्र से पितृ नारायण रूप हो जाते हैं। गया की फल्गु नदी में स्नान और तर्पण करने से पितरों को देव योनि प्राप्त होती है। हिंदू समाज का दृढ़ विश्वास है कि गया में श्राद्ध पिंडदान करने से उनकी सात पीढ़ियों के पितरों को मुक्ति मिल जाती है।
उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में त्रिवेणी संगम पर श्राद्ध करना बहुत शुभ माना जाता है, और यहां के पवित्र स्थलों में पिंडदान करने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है। पौराणिक मान्यता है कि पितृपक्ष में पितरो की आत्मा धरती पर भूख प्यास में भटकती रहती है और अपनी संतानों द्वारा प्राप्त पिंडदान से तृप्त होती है। इस दौरान श्राद्ध कर्म कर पिंडदान और तर्पण करने से पूर्वजों की 16 पीढ़ियाों की आत्मा को शान्ति और मुक्ति मिल जाती है। संगम पर पिंडदान करने से भगवान विष्णु के साथ ही तीर्थराज प्रयाग में वास करने वाले 33 करोड़ देवी-देवता भी पितरों को मोक्ष प्रदान करते हैं।
उत्तराखंड राज्य में स्थित हरिद्वार शहर हिंदू धर्म के पवित्र तीर्थ स्थलों में से एक है। गंगा नदी के तट पर स्थित इस शहर का धार्मिक महत्व बहुत ही ज्यादा है। हरिद्वार में गंगा स्नान करने से जहां सभी पापों से मुक्ति मिलती है, वहीं दूसरी तरफ मृत्यु के पश्चात पितृपक्ष के दौरान हरिद्वार में किया गया श्राद्ध विशेष फल देता है। गया में किया गया तर्पण पितरों को मोक्ष दिलाता है, परंतु ऐसी धार्मिक मान्यता है कि हरिद्वार में हर की पौड़ी, सावंत घाट नारायणी शिला और कनखल में पिंडदान करने का महत्व और भी अधिक है। यहां स्थित नारायणी शिला मंदिर में पितरों का श्राद्ध करने से उन्हें मोक्ष मिलने के साथ ही व्यक्ति को सुख संपत्ति की भी प्राप्ति होती है। ऐसे ही कुशावर्त घाट की अपनी ही प्राचीन मान्यता है। इस घाट पर श्राद्ध तर्पण और कर्मकांड करने का विशेष महत्व बताया गया है। इस घाट का वर्णन भी धार्मिक ग्रंथों में किया गया है। इस स्थान का वर्णन विष्णु पुराण, शिव पुराण और स्कंद पुराण के केदारखंड में किया गया है।
भगवान शिव की नगरी काशी जिसे अब हम वाराणसी के नाम से भी जानते हैं, यहां पितरों का श्राद्ध करना परम पुण्यदायी माना गया है। वाराणसी भारत की सबसे पवित्र नदियों के तट पर स्थित है। गंगा और इस शहर को भारत के शीर्ष तीर्थ स्थानों में प्रमुख माना गया है। कहते हैं कि काशी में प्राण त्यागने वाले को यमलोक नहीं जाना पड़ता है। वैसे ही यहां पर श्राद्ध कर्म करने से पूर्वजों की आत्मा को परम शांति की प्राप्ति होती है। काशी के मणिकर्णिका घाट पर गंगा नदी के तट पर कर्मकांड होते हैं।
मध्यप्रदेश का उज्जैन, जिसे अवंतिका के नाम से भी जाना जाता है, हिंदू धर्म में एक पवित्र शहर माना जाता है। यह शहर पितृपक्ष के दौरान श्राद्ध करने के लिए एक महत्वपूर्ण स्थल है। यहां की पवित्र नदी शिप्रा में स्नान करने और तर्पण करने से अतृप्त पितरों की आत्मा को शांति मिलती है। शिप्रा नदी के किनारे रामघाट और सिद्धवट पर पिंडदान और तर्पण करने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है, संतान को लंबी आयु और सुख-समृद्धि प्राप्त होती है, साथ ही पितृ दोष से भी मुक्ति मिलती है।
भव्य मंदिरों से सुशोभित, उत्तरप्रदेश के मथुरा शहर को भारत और उसके बाहर एक पवित्र स्थान का दर्जा प्राप्त है। यह भगवान कृष्ण की जन्मभूमि है, जो पितृपक्ष के दौरान पिंडदान करने के लिए एक महत्वपूर्ण स्थल माना जाता है। यहां की पवित्र नदी यमुना में स्नान करने और तर्पण करने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है। सात पिंड या चावल में मिक्स गेहूं के आटे से बने गोले, शहद और दूध के साथ मृतक और पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए प्रसाद के रूप में तैयार किए जाते हैं और इन्हें मंत्रों के जाप के दौरान चढ़ाया जाता है। मथुरा में तर्पण कर लोग अपने पूर्वजों को प्रसन्न करते हैं। साथ ही यहां पूर्वजों का श्राद्ध करने से पितृदोष से मुक्ति मिलती है।
पितृपक्ष के दौरान, हिंदू धर्म में पिंडदान करना एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान माना जाता है। उड़ीसा राज्य में समुद्र तट पर स्थित पुरी जगन्नाथ मंदिर, जो कि भगवान जगन्नाथ की जन्मभूमि है, पितृपक्ष के दौरान पिंडदान करने के लिए एक महत्वपूर्ण स्थल है। पुरी महानदी और भार्गवी नदी के तट पर स्थित है और इसलिए, संगम को पवित्र और पिंड दान समारोह का आदर्श स्थान माना जाता है। यहां पिंडदान करने से पूर्वजों की आत्मा को शांति मिलती है। साथ ही पितृदोष से भी मुक्ति मिलती है।
बदरीनाथ धाम में स्थित ब्रह्मकपाल में पितृ तर्पण का विशेष महातम्य है। मान्यता है कि यहां पिंडदान करने से अन्य तीर्थों के मुकाबले आठ गुना अधिक पुण्य मिलता है। यहां पर भगवान शिव को ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति मिली थी। बद्रीनाथ, जो कि भगवान विष्णु के पवित्र धामों में से एक है, पितृपक्ष के दौरान पिंडदान करने के लिए एक महत्वपूर्ण स्थल है। यहां के पवित्र स्थलों में पिंडदान करने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है और संतान को लंबी आयु और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है, और पूर्वज संतुष्ट होते हैं।
राजस्थान का धार्मिक स्थल पुष्कर भी श्राद्ध कर्म के लिए जाना जाता है। यहां पर ब्रह्माजी का विश्व प्रसिद्ध मंदिर है। यहां की पवित्र झील के बारे में यह पौराणिक मान्यता है कि इसकी उत्पत्ति भगवान विष्णु की नाभि से हुई है। यहां पर 52 घाट हैं जहां पर हर साल पिंडदान करने लोग दूर-दूर से आते हैं। कहा जाता है कि अजमेर के पुष्कर में 7 कुलों और 5 पीढ़ियों तक के पूर्वजों की आत्मा की शांति और मुक्ति के लिए श्राद्ध किए जाते हैं।
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