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छत्तीसगढ़ प्रदेश की राजधानी रायपुर में कई ऐतिहासिक स्थल हैं, जिसका सम्बन्ध इतिहास और मान्यताओं से जुड़ा हुआ है। दूधाधारी मठ छत्तीसगढ़ रायपुर के प्रसिद्ध हिंदू धार्मिक स्थलों में से एक है। इस मठ की स्थापना 1554 में हुई थी। राजा रघुराव भोसले ने महंत बलभद्र दासजी के लिए मठ का निर्माण कराया था। दूधाधारी मठ लगभग साढ़े पांच सौ वर्ष पुराना है। यहां पहले घनघोर जंगल हुआ करता था। जंगल में स्वामी बलभद्र दास जी महाराज कुटी बनाकर आश्रम में तपस्या कर रहे थे। तपस्या करते-करते इस स्थान को विकसित किया। बता दें कि मठ के महंत बलभद्र दास हनुमानजी के परम भक्त थे। स्वामी बलभद्र दास के बारे में यह भी कहा जाता है कि उन्होंने जीवन भर दूध का आहार लिया था। दूध का आहार लेने के कारण इस स्थान का नाम दूधाहारी पड़ा, फिर दूधाहारी बोलचाल की भाषा में दूधाधारी हो गया।
पिछले 550 सालों से एक दक्षिणमुखी शंख कैद है। सिर्फ साल में एक बार, दिवाली की रात को ही इसे बाहर निकाला जाता है। इसके दर्शन के लिए दूर-दराज से लोग पहुंचे है। मान्यता है कि इस शंख में मां लक्ष्मी का वास है। कहते हैं कि इस शंख को दूधाधारी लेकर आए थे। तभी से दिवाली की रात पूजा के बाद आम लोगों को इसके इसके दर्शन कराए जाते हैं। इसके बाद पूरे साल इसे सुरक्षित एक कमरे में बंद कर दिया जाता है। ऐसी मान्यता है कि शंख के दर्शन से पुण्य मिलता है। ये जगह मठ की सबसे सुरक्षित जगह है। सिर्फ महंत को ही यहां प्रवेश की इजाजत है।
दूधाधारी मठ के प्रांगण में तीन मुख्य मंदिर हैं। मंदिर का आकर्षण यहां विराजमान श्री राम पंचायतन है, जिसमें भगवान श्रीराम, माता सीता और उनके तीनों भाई लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न की मनमोहक प्रतिमाएं हैं। यह छत्तीसगढ़ में एकमात्र ऐसा मंदिर है जहां रामायण काल के दिव्य पत्थर भी प्रदर्शित किए गए हैं, जिन्हें रामसेतु निर्माण में उपयोग किया गया था। इस पत्थर को देखने दूर-दराज से लोग मठ पहुंचते हैं। खासकर राम नवमी के दिन मठ में भगवान राम और इस पत्थर के दर्शन के लिए लोगों का भारी जमावड़ा लगा रहता है
बता दें कि मंदिर का निर्माण घने जंगलों के बीच हुआ था, लेकिन अब यह रायपुर के मुख्य क्षेत्र में स्थित है।
दूधाधारी मठ, रायपुर, छत्तीसगढ़ में स्थित है। यह स्थान सड़क, रेलवे और वायु मार्ग द्वारा अन्य शहरों से बहुत अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है।
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