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महाभारत के भीषण युद्ध में कई महान योद्धाओं ने अपने प्राण गवाए, लेकिन एक ऐसा योद्धा था जिसे आज भी जीवित माना जाता है। वह गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा है। ऐसा कहा जाता है कि भगवान शंकर के आशीर्वाद से अश्वत्थामा को अमरता का वरदान प्राप्त था। इतना ही नहीं, जन्म से ही उनके माथे पर एक अद्भुत मणि विद्यमान थी जो उन्हें सभी तरह के कष्टों और बीमारियों से बचाती थी। यह मणि उन्हें बुढ़ापे, भूख, प्यास और थकान से भी मुक्त रखती थी। महाभारत के युद्ध के बाद अश्वत्थामा का क्या हुआ, इस बारे में कई रहस्यमयी कहानियाँ प्रचलित हैं।
कुछ लोग मानते हैं कि वह हिमालय की गुफाओं में या देश के घने जंगलों में छिपकर रह रहा है। हिंदू पौराणिक कथाओं में अश्वत्थामा को उन आठ चिरंजीवियों में गिना जाता है जो आज भी जीवित हैं। यह मान्यता सदियों से लोगों के मन में बनी हुई है और अश्वत्थामा को एक रहस्यमयी और अलौकिक व्यक्ति के रूप में देखा जाता है। आइए इस लेख में विस्तार से जानते हैं।
अश्वत्थामा का जन्म द्रोणाचार्य और उनकी पत्नी कृपी के तपस्या के फलस्वरूप हुआ था। जन्म से ही उन्हें भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त था और उनके मस्तक पर एक मणि थी जो उन्हें अनेक संकटों से बचाती थी। हाभारत युद्ध में अश्वत्थामा ने अपने पिता द्रोणाचार्य के साथ कौरवों का साथ दिया था। युद्ध के अंत में उन्होंने पांडवों के पुत्रों की हत्या कर दी थी, जिसके लिए उन्हें श्रीकृष्ण द्वारा एक श्राप दिया गया।
श्रीकृष्ण ने अश्वत्थामा को एक ऐसा श्राप दिया जिसके कारण वह हमेशा दुख और पीड़ा में रहता। शाप के अनुसार, अश्वत्थामा को भोजन और पानी नहीं मिलेगा और वह हमेशा घूमता रहेगा। कुछ मान्यताओं के अनुसार, अश्वत्थामा अमर हैं और आज भी पृथ्वी पर कहीं विचरण करते हैं।
ऐसा कहा जाता है कि आज भी, खोदरा महादेव के शांत वातावरण में, अश्वत्थामा की तपस्या का अद्भुत प्रकाश फैलता है। न केवल मध्य प्रदेश, बल्कि ओडिशा और उत्तरांचल में भी अश्वत्थामा को देखे जाने की अनेक कहानियां प्रचलित हैं। यह एक रहस्य बना हुआ है कि क्या अश्वत्थामा वाकई आज भी इस संसार में विचरण करते हैं, या फिर उनकी आत्मा इन पवित्र स्थलों में निवास करती है।
कथा के अनुसार, जब महान धनुर्धर द्रोणाचार्य के घर एक बालक का जन्म हुआ, तो उसने अश्व यानी घोड़े की तरह ही हिनहिनाया। यह सुनकर सभी चकित रह गए। आकाशवाणी हुई, "इस बालक का नाम अश्वत्थामा होगा।" इस अद्भुत घटना के कारण ही इस बालक का नाम अश्वत्थामा पड़ा।
अश्वत्थामा के मस्तक पर जन्म से ही एक चमकदार मणि जड़ित थी। कहा जाता है कि यह मणि उसे अमरत्व प्रदान करती थी। वह किसी भी शस्त्र से घायल नहीं हो सकता था और न ही कोई रोग उसे छू सकता था।
महाभारत युद्ध के दौरान, जब द्रोणाचार्य का निधन हो गया, तो अश्वत्थामा ने क्रोध में आकर पांडवों के शिविर में ब्राह्मणों को मार डाला। इस क्रूरता के लिए द्रौपदी ने अर्जुन से प्रार्थना की कि वह अश्वत्थामा को मार दे। लेकिन अर्जुन ने द्रौपदी की बात मानते हुए अश्वत्थामा को प्राण दान दे दिया, लेकिन सजा के तौर पर उससे मणि छीन ली।
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