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शिव उठत, शिव चलत, शिव शाम-भोर है। शिव बुद्धि, शिव चित्त, शिव मन विभोर है॥ ॐ ॐ ॐ...
जटा कटा हसं भ्रमभ्रमन्नि लिम्प निर्झरी, विलोलवी चिवल्लरी विराजमान मूर्धनि।
आशुतोष शशाँक शेखर, चन्द्र मौली चिदंबरा,
श्याम तेरा कीर्तन जो, मन से कराता है,
हाथ जोड़ विनती करूं सुणियों चित्त लगाय, दास आ गयो शरण में रखियो इसकी लाज,
मेलो फागण को खाटू में चालो, श्याम ने रंगस्या जी,
शिव शंकर तुम्हरी जटाओ से, गंगा की धारा बहती है,
शिव शंकर तुम कैलाशपति, है शीश पे गंग विराज रही,
शिव शंकर को जिसने पूजा, उसका ही उद्धार हुआ ।
श्याम नज़रें देख लो, अब खोल के,