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शिव शंकर तुम कैलाशपति (Shiv Shankar Tum Kailashpati)

शिव शंकर तुम कैलाशपति,

है शीश पे गंग विराज रही,

शिव शंकर तुम कैलाश-पति,

है शीश पे गंग विराज रही ॥


माथे पर चंद्र का मुकुट सजा,

और गल सर्पो की माला है,

माँ पारवती भगवती गौरा,

तेरे वाम अंग में साज रही,

शिव शंकर तुम कैलाश-पति,

है शीश पे गंग विराज रही ॥


शिव शंकर तुम कैलाश-पति,

है शीश पे गंग विराज रही ॥


ब्रम्हा को वेद दिए तुमने,

रावण को लंका दे डाली,

औघड़दानी शिव भोले की,

श्रष्टि जयकार बुलाय रही,

शिव शंकर तुम कैलाश-पति,

है शीश पे गंग विराज रही ॥


शिव शंकर तुम कैलाश-पति,

है शीश पे गंग विराज रही ॥


सोना चांदी हिरे मोती,

तुमको कुछ भी ना सुहाता है,

शिव लिंग पे जा सारी दुनिया,

एक लोटा जल तो चढ़ाय रही,

शिव शंकर तुम कैलाश-पति,

है शीश पे गंग विराज रही ॥


शिव शंकर तुम कैलाश-पति,

है शीश पे गंग विराज रही ॥


जीवन की एक तमन्ना है,

जीवन में एक ही आशा है,

तेरे चरणों में बीते जीवन,

यही आशा मन में समाय रही,

शिव शंकर तुम कैलाश-पति,

है शीश पे गंग विराज रही ॥


शिव शंकर तुम कैलाशपति,

है शीश पे गंग विराज रही,

शिव शंकर तुम कैलाश-पति,

है शीश पे गंग विराज रही ॥

हे आनंदघन मंगलभवन, नाथ अमंगलहारी (Hey Anand Ghan Mangal Bhawa)

हे आनंदघन मंगलभवन,
नाथ अमंगलहारी,

मेरे घनश्याम से तुम मिला दो (Mere Ghanshyam Se Tum Mila Do)

मेरे घनश्याम से तुम मिला दो,
मैं हूँ उनका यार पुराना,

काल भैरव के 108 मंत्र

मार्गशीर्ष माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को कालभैरव जयंती मनाई जाती है, जिसे कालभैरव अष्टमी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन काशी के कोतवाल कहे जाने वाले भगवान काल भैरव की पूजा का विधान है।

राम नाम के हीरे मोती, मैं बिखराऊँ गली गली(Ram Nam Ke Heere Moti Main Bikhraun Gali Gali)

राम नाम के हीरे मोती,
मैं बिखराऊँ गली गली ।