नवीनतम लेख

मत्स्य द्वादशी कब है

दिसंबर माह में कब है मत्स्य द्वादशी? जानें सही तारीख, शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और महत्व 


भगवान विष्णु के 24 अवतारों में से एक मत्स्य अवतार की जयंती के रूप में मनाया जाने वाला मत्स्य द्वादशी पर्व इस साल दिसंबर में मनाया जाएगा। यह पर्व मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को मनाया जाता है । इस दिन भगवान विष्णु की कृपा पाने के लिए व्रत भी रखा जाता है। मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु और उनके मत्स्य अवतार की सच्चे मन से पूजा करने से घर-परिवार में सदा खुशहाली, सुख, समृद्धि और शांति रहती है। आइए जानते हैं मत्स्य द्वादशी की तिथि, शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और महत्व।


कब है मत्स्य द्वादशी 2024? 


पंचांग के अनुसार, इस बार मार्गशीर्ष मास में आने वाली शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि का आरंभ 12 दिसंबर 2024 को प्रात: काल 1 बजकर 09 मिनट से हो रहा है जो अगले दिन 12 दिसंबर 2024 को सुबह 10 बजकर 26 मिनट तक जारी रहेगी। उदयातिथि के अनुसार साल 2024 में 12 दिसंबर को मत्स्य द्वादशी मनाई जाएगी और इसी दिन व्रत भी रखा जाएगा। वहीं व्रत का पारण 13 दिसंबर को किया जाएगा। 


मत्स्य द्वादशी 2024 पूजा के शुभ मुहूर्त 


मत्स्य द्वादशी पर आप नीचे दिए शुभ मुहूर्त में पूजा कर सकते हैं- 


  • ब्रह्म मुहूर्त- प्रात: काल 05:27 से लेकर सुबह 06:15 मिनट तक
  • अभिजीत मुहूर्त- सुबह 11:59 से लेकर दोपहर 12:41 मिनट तक


मत्स्य द्वादशी का महत्व 


मत्स्य द्वादशी एक महत्वपूर्ण हिंदू त्योहार है, जो भगवान विष्णु के मत्स्य अवतार की जयंती के रूप में मनाया जाता है। मत्स्य अवतार भगवान विष्णु के दशावतारों में से पहला अवतार है। यह दिन इस बात का प्रतीक है कि जब भी धरती पर पापों का बोझ बढ़ेगा, भगवान विष्णु समस्त मानव जाति का कल्याण करेंगे। इस दिन भक्त भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना करते हैं, जिससे कि भगवान विष्णु अपनी कृपादृष्टि उनपर बनाएं रखें। मत्स्य द्वादशी के दिन उपवास और पूजा-अर्चना से व्यक्ति को सुख-समृद्धि एवं पुण्य की प्राप्ति होती है। भगवान विष्णु की पूजा करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है और सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। इस दिन व्रत रखने से भगवान की कृपा-दृष्टि बनी रहती है और घर में सुख-समृद्धि का आगमन होता है।


मत्स्य द्वादशी की पूजा विधि


सामग्री:


  • भगवान विष्णु की प्रतिमा या चित्र
  • गंगाजल
  • दीप
  • धूप
  • अक्षत
  • पीले पुष्प
  • पुष्प माला
  • भोग
  • पंचामृत
  • तुलसीदल
  • दक्षिणा
  • पीले वस्त्र


पूजा विधि:


  • प्रातः काल उठकर स्नानादि कार्यों से निवृत हो जाएं।
  • स्वच्छ वस्त्र धारण कर लें और घर के मंदिर को भी स्वच्छ कर लें।
  • मंदिर में गंगाजल का छिड़काव करें और दीप प्रज्वलित करें।
  • भगवान विष्णु की प्रतिमा या चित्र को चंदन से तिलक करें।
  • अक्षत, पीले पुष्प, पुष्प माला, भोग, पंचामृत, तुलसीदल, दक्षिणा आदि भगवान विष्णु को अर्पित करें।
  • विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें।
  • धूप, दीप दिखाते हुए भगवान विष्णु की आरती करें।
  • अंत में पूजा में हुई किसी गलती के लिए भगवान से क्षमायाचना करें और फिर प्रसाद वितरित करें।


मंत्र:


"ॐ नमो भगवते वासुदेवाय"
"ॐ श्री विष्णवे नमः"
"ॐ श्री लक्ष्मी नारायणाय नमः"

"विष्णु सहस्रनाम" का पाठ करें।


गणेश जी के नाम से भक्तो का, कल्याण होता है (Ganesh Ji Ke Naam Se Bhakto Ka Kalyan Hota Hai)

गणेश जी के नाम से भक्तो का,
कल्याण हमेशा होता है,

ऐ मुरली वाले मेरे कन्हैया, बिना तुम्हारे (Ae Murliwale Mere Kanhaiya, Bina Tumhare )

ऐ मुरली वाले मेरे कन्हैया,
बिना तुम्हारे तड़प रहे हैं,

ऐसी भक्ति महादेव दे दो हमें (Aisi Bhakti Mahadev De Do Hame)

ऐसी भक्ति हे शम्भू दे दो मुझे,
रात दिन मैं भजन तेरे गाता रहूं,

गणपति गजवदन वीनायक (Ganpati Gajvadan Vinayak)

गणपति गजवदन विनायक,
थाने प्रथम मनावा जी,

यह भी जाने