नवीनतम लेख

गीता जयंती और मोक्षदा एकादशी का संबंध

एक ही दिन क्यों मनाए जाते हैं गीता जयंती और मोक्षदा एकादशी, जानिए दोनों पर्वों का आपसी संबंध 


मोक्षदा एकादशी और गीता जयंती का विशेष संबंध सनातन धर्म में अत्यधिक महत्व रखता है। मोक्षदा एकादशी, मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष की ग्यारहवीं तिथि को मनाई जाती है। यह दिन श्री हरि विष्णु और श्रीकृष्ण की कृपा पाने का उत्तम अवसर माना गया है। इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को भगवद्गीता का दिव्य ज्ञान दिया था, जिसे 'गीता जयंती' के रूप में मनाया जाता है। मान्यता है कि मोक्षदा एकादशी व्रत करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है और पूर्वजों को मुक्ति मिलती है। इस लेख में हम इन दोनों पर्वों के ऐतिहासिक और आध्यात्मिक महत्व को विस्तार से जानेंगे।


गीता जयंती और मोक्षदा एकादशी का कनेक्शन 


मोक्षदा एकादशी के दिन गीता जयंती मनाई जाती है, जो भगवद्गीता के जन्म का प्रतीक है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, महाभारत के युद्ध के समय, कुरुक्षेत्र की भूमि पर भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी के दिन गीता का ज्ञान दिया था। भगवद्गीता श्रीकृष्ण के श्रीमुख से निकली हुई दिव्य ग्रंथ है, जिसमें जीवन के हर पहलू का समाधान और मोक्ष का मार्ग बताया गया है। इसलिए, मोक्षदा एकादशी और गीता जयंती को एक ही दिन मनाया जाता है।


मोक्षदा एकादशी का महत्व


सनातन धर्म में एकादशी तिथि का विशेष स्थान है। यह तिथि हर महीने दो बार आती है। एक शुक्ल पक्ष में और दूसरी कृष्ण पक्ष में। मार्गशीर्ष माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी को 'मोक्षदा एकादशी' कहा जाता है। मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने से व्यक्ति के समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं और उसे यमराज की यातनाओं से भी मुक्ति मिलती है। इसे मोक्ष प्राप्ति का शुभ दिन माना जाता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, इस दिन व्रत करने से पितृ दोष समाप्त होता है और पूर्वजों को मोक्ष की प्राप्ति होती है।


मोक्षदा एकादशी व्रत कथा


मोक्षदा एकादशी से जुड़ी एक प्राचीन कथा प्रसिद्ध है। गोकुल नगर के राजा वैखानस ने एक बार सपना देखा कि उनके पिता नरक में कष्ट भोग रहे हैं। इस दृश्य से राजा व्याकुल हो गए और समाधान के लिए विद्वान मुनि पर्वत से सलाह ली। पर्वत मुनि ने राजा को बताया कि उनके पिता को पूर्वजन्म के पापों के कारण नरक जाना पड़ा। 


मुनि ने राजा से मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी का व्रत करने और उसका पुण्य अपने पिता को अर्पित करने का सुझाव दिया। राजा ने पूरे परिवार सहित व्रत का पालन किया और अपने पिता को व्रत का पुण्य अर्पित किया। इससे उनके पिता को नरक से मुक्ति मिली और वे स्वर्ग को प्रस्थान करते समय अपने पुत्र को आशीर्वाद देकर गए। इस कथा से यह स्पष्ट होता है कि मोक्षदा एकादशी का व्रत पितरों की मुक्ति और मोक्ष प्राप्ति का निश्चित उपाय है।


जानिए गीता जयंती का महत्व


गीता जयंती सनातन धर्म का एक अत्यंत महत्वपूर्ण पर्व है। इसे भगवद्गीता के जन्म का दिन माना जाता है।

भगवत गीता के उपदेशों में कर्म, भक्ति, और ज्ञान के माध्यम से मोक्ष का मार्ग बताया गया है। यह ग्रंथ न केवल धार्मिक दृष्टि से बल्कि जीवन जीने की कला के रूप में भी अत्यधिक महत्वपूर्ण है। मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी को गीता का पाठ करने और श्रीकृष्ण की पूजा करने से जीवन में सकारात्मकता आती है। यह दिन श्रीकृष्ण के उपदेशों को याद करने और उनके मार्गदर्शन में जीवन जीने का प्रेरणा स्रोत है।


व्रत और पूजा विधि


  • व्रत का संकल्प: व्रत रखने से पहले सुबह स्नान करके व्रत का संकल्प लें।
  • भगवान विष्णु और श्रीकृष्ण की पूजा: भगवान विष्णु को पीले फूल, तुलसी पत्र, और मिष्ठान्न अर्पित करें।
  • गीता पाठ: इस दिन भगवत गीता के श्लोकों का पाठ करें।
  • पितृ तर्पण: पितरों की मुक्ति के लिए तर्पण और दान करें।


ये आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग 


मोक्षदा एकादशी और गीता जयंती सनातन धर्म के दो महत्वपूर्ण पर्व है, जो मार्गशीर्ष माह की शुक्ल एकादशी को मनाए जाते हैं। इनका आपस में गहरा संबंध है। इस दिन ही भगवान श्रीकृष्ण ने गीता के उपदेश देकर अर्जुन को धर्म और मोक्ष का मार्ग दिखाया था। इसलिए, इस दिन व्रत और गीता पाठ से व्यक्ति अपने जीवन के पापों से मुक्ति पाकर मोक्ष की प्राप्ति कर सकता है। इन पावन पर्वों को श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाना जीवन में आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग भी प्रशस्त कर सकता है।


मेरा दिल अटका तेरी मूरत पे (Mera Dil Atka Teri Murat Pe)

मेरा दिल अटका तेरी मूरत पे,
मुझको तो किसी की खबर नही ॥

मत कर तू अभिमान रे बंदे (Mat Kar Tu Abhiman Re Bande)

मत कर तू अभिमान रे बंदे,
जूठी तेरी शान रे ।

कुमार मैने देखे, सुंदर सखी दो कुमार (Kumar Maine Dekhe, Sundar Sakhi Do Kumar)

कुमार मैने देखे,
सुंदर सखी दो कुमार ।

16 सोमवार व्रत कथा (16 Somavaar Vrat Katha)

एक समय श्री महादेवजी पार्वती के साथ भ्रमण करते हुए मृत्युलोक में अमरावती नगरी में आए। वहां के राजा ने शिव मंदिर बनवाया था, जो कि अत्यंत भव्य एवं रमणीक तथा मन को शांति पहुंचाने वाला था। भ्रमण करते सम शिव-पार्वती भी वहां ठहर गए।