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क्या है कालाष्टमी कथा

भगवान शिव का रूद्र अवतार हैं काल भैरव, ब्रह्मा जी से जुड़ी है उत्पत्ति कथा 


हिंदू धर्म में हर माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को कालाष्टमी का पर्व मनाया जाता है। इसे भैरव अष्टमी के रूप में भी जाना जाता है। इस दिन भगवान शिव के भैरव रूप की उपासना करने से जीवन के सभी कष्ट मिट जाते हैं और व्यक्ति के जीवन में उन्नति के रास्ते खुल जाते हैं। इस वर्ष कालाष्टमी 22 नवंबर 2024 मंगलवार को मनाई जाएगी।

कालाष्टमी के दिन भगवान काल भैरव की पूजा और व्रत करने से व्यक्ति को महादेव भगवान का आशीर्वाद प्राप्त होता है। इस दिन विशेष पूजा और अनुष्ठान करने से व्यक्ति के जीवन में सुख-समृद्धि और शांति आती है। भगवान शिव ने भैरव अवतार लेने की कथा बहुत प्रसिद्ध है। मान्यता है कि भगवान शिव ने अपने भैरव रूप में अवतार लेकर ब्रह्मा के अहंकार को तोड़ा था। इस अवतार में भगवान शिव ने ब्रह्मा के पांचवें सिर को काट दिया था, जिससे ब्रह्मा का अहंकार दूर हुआ। इस खास अवसर पर कालाष्टमी मनाए जाने के पीछे की पौराणिक कथा को विस्तार से जानते है। 


कालाष्टमी का महत्व 


हर माह आने वाली कालाष्टमी का विशेष महत्व होता है, क्योंकि इसे भगवान शंकर के सबसे शक्तिशाली और दंडाधिकारी रूप की उपासना के दिन के रूप में माना जाता है। मार्गशीर्ष माह में आने वाली कालाष्टमी को "कालभैरव जयंती" के रूप में मनाया जाता है, जो भगवान काल भैरव के प्रकट होने का दिन है। इस दिन भगवान काल भैरव की पूजा और व्रत करने से व्यक्ति को सुख-समृद्धि और शांति प्राप्त होती है।


कालाष्टमी मनाने से जुड़ी पौराणिक कथा 


कालाष्टमी की उत्पत्ति की कथा शिव पुराण से जुड़ी हुई है। धार्मिक मान्यता है कि भगवान शिव ने काल भैरव का अवतार अधर्म का नाश करने के लिए लिया था। कथा के अनुसार यह कहा जाता है कि एक बार सुमेरु पर्वत पर देवताओं ने ब्रह्मा जी से प्रश्न किया कि, परमपिता इस चराचर जगत में अविनाशी तत्व कौन है जिनका आदि-अंत किसी को भी पता न हो ऐसे देव के बारे में बताने का हमें कष्ट करें। इस पर ब्रह्माजी ने कहा कि इस जगत में अविनाशी तत्व तो केवल मैं ही हूं क्योंकि यह सृष्टि मेरे द्वारा ही सृजित हुई है। मेरे बिना संसार की कल्पना भी नहीं की जा सकती। 


जब देवताओं ने यही प्रश्न विष्णुजी से किया तो उन्होंने कहा कि मैं इस चराचर जगत का भरण-पोषण करता हूं,अतः अविनाशी तत्व तो मैं ही हूं। ऐसे में त्रिदेव यानी ब्रह्मा, विष्णु और भगवान शंकर में सर्वश्रेष्ठ को लेकर बहस होने लगी। हर कोई स्वयं को दूसरे से महान और श्रेष्ठ बताने लगा। जब तीनों में से कोई इस बात का निर्णय नहीं कर पाया कि सर्वश्रेष्ठ कौन है? तो इसे सत्यता की कसौटी पर परखने के लिए चारों वेदों को बुलाया गया। चारों वेदों ने एक ही स्वर में कहा कि जिनके भीतर चराचर जगत, भूत, भविष्य और वर्तमान समाया हुआ है, जिसका कोई आदि-अंत नहीं है,जो अजन्मा है,जो जीवन-मरण सुख-दुःख से परे है,देवता-दानव जिनका समान रूप से पूजन करते हैं,वे अविनाशी तो भगवान रूद्र ही हैं। 


वेदों के द्वारा शिव के बारे में इस तरह की वाणी सुनकर ब्रह्मा जी का पांचवे मुख से भगवान ​शंकर के लिए अपमानजनक शब्द निकलने लगे। इससे भगवान शंकर भी अत्यंत क्रोधित हो गए और उसी समय एक दिव्य ज्योति के रूप में भगवान रूद्र प्रकट हुए, ब्रह्मा जी ने कहा कि हे रूद्र! तुम मेरे ही शरीर से पैदा हुए हो अधिक रुदन करने के कारण मैंने ही तुम्हारा नाम 'रूद्र' रखा है अतः तुम मेरी सेवा में आ जाओ, ब्रह्मा के इस आचरण पर शिव को भयानक क्रोध आया और उन्होंने भैरव नामक पुरुष को उत्पन्न किया और कहा कि तुम ब्रह्म पर शासन करो। 


उस दिव्य शक्ति संपन्न भैरव ने अपने बाएं हाथ की सबसे छोटी अंगुली के नाखून से शिव के प्रति अपमानजनक शब्द कहने वाले ब्रह्मा के पांचवे सिर को ही काट दिया जिसके परिणामस्वरूप इन्हें ब्रह्महत्या का पाप लगा। शिव के कहने पर भैरव ने काशी प्रस्थान किया जहां उन्हें ब्रह्महत्या से मुक्ति मिली। रूद्र ने इन्हें काशी का कोतवाल नियुक्त किया। आज भी ये यहां काशी के कोतवाल के रूप में पूजे जाते हैं। इनके दर्शन किए बिना विश्वनाथ के दर्शन अधूरे रहते हैं। 


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