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महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को निर्जला उपवास रखती हैं। इसे करवा चौथ कहा जाता है। इस दिन महिला दिन भर बिन कुछ खाए पिए रहती हैं और शाम ढलते ही चांद की और अपने पति की पूजा करके व्रत खोलती हैं। इस दौरान करवा से चंद्रमा को जल चढ़ाया जाता है, वहीं छलनी से चांद और पति को निहारा जाता है। आखिर करवा और छलनी कैसे इस व्रत से जुड़े भक्तवत्सल इस आर्टिकल में जानेंगे।
करवा चौथ के व्रत की शुरूआत सुबह-सवेरे की सरगी के साथ होती है। सरगी ससुराल की तरफ से महिलाओं को भेंट की जाती है। महिलाएं सुबह सूर्योदय से पहले उठकर नहा-धोकर सरगी का सेवन करके व्रत की शुरूआत करती हैं। सरगी में आम तौर पर ताजे फल, मेवे, मिठाई, हलवा या खीर, पका हुआ भोजन और पानी दिया जाता है। महिलाओं को सरगी में चटपटा या मसालेदार खाने से बचना चाहिए। क्योंकि ये खाना दिन-भर के उपवास पर असर डाल सकता हैं। ऐसे में जहां तक हो सके महिलाओं को पेय पदार्थों को सेवन करना चाहिए जिससे पानी की कमी की परेशानी से बचा जा सकता है।
करवा मुख्य रूप से मिट्टी का लोटा या कलश होता है। इसमें पानी भरा जाता है। करवा को पति की उम्र के प्रतीक माना जाता है। मान्यता है कि करवा में भरकर चंद्रमा को जल देने से पति की आयु लंबी होती है। करवा में रखा जल पति को पिलाने से घर में सुख-समृद्धि आती है। करवा को लेकर यह भी मान्यता है कि अगर यह टूट जाए तो कभी जुड़ नहीं सकता। इसी प्रकार यदि पति-पत्नी का रिश्ता टूट जाए तो इसे जोड़ा नहीं जा सकता। इसलिए इस रिश्ते को मजबूती से स्नेह के साथ निभाना चाहिए।
छलनी को अशुभ शक्तियों से रक्षा करने वाला माना जाता है। मान्यता है कि छलनी से चंद्रमा को देखने से पति पर आने वाली सभी बुरी नजरें दूर हो जाती हैं। छलनी को सुहाग की रक्षा करने वाला भी माना जाता है। इससे चंद्रमा को देखकर महिलाएं अपने पति से आशीर्वाद प्राप्त करती हैं। करवा चौथ में छलनी लेकर चांद को देखना यह भी सिखाता है कि पतिव्रत का पालन करते हुए किसी प्रकार का छल उसे पतिव्रत से डिगा न सके।
करवा चौथ के व्रत में छलनी और करवा के अलावा करवा चौथ व्रत कथा, मौली, अक्षत, कुमकुम, रोली, चन्दन, फूल, कलश भर जल, हल्दी, चावल, मिठाई, कच्चा दूध, पान, दही, देसी घी, शक्कर, शहद, नारियल, करवा माता की तस्वीर आदि सामग्री शामिल की जाती है।
करवा चौथ में सोलह श्रृंगार की सामग्री जैसे सिंदूर, मेंहदी, महावर, नेल पॉलिश, चूड़ी, चुनरी, बिंदिया, कंघा, बिछिया, मंगलसूत्र भी पूजा का हिस्सा होती हैं। इसके अलावा दीपक, अगरबत्ती, दीपक, अगरबत्ती, दक्षिणा के पैस, मिट्टी की डेलियां और मिठाई भी थाल में सजाई जाती है।
मान्यता है शरद पूर्णिमा के बाद से चंद्रमा की किरणों में औषधीय गुण समाहित होते हैं। चूंकि करवा चौथ इसके चार दिन बाद पड़ता है। ऐसे में चंद्रमा के संपर्क में आने से औषधीय गुणों का संचार होता है। जो शरीर को निरोगी बनाता है।
वहीं पूरे दिन का उपवास शरीर को आराम देने का एक तरीका हो सकता है। लगातार भोजन करने से पाचन तंत्र पर बोझ पड़ता है। उपवास के दौरान पाचन तंत्र को आराम मिलता है और यह खुद को ठीक करने का मौका पाता है। उपवास के दौरान शरीर में जमा बैक्टीरिया पदार्थों को निकालने में मदद मिल सकती है। समय-समय पर उपवास करने से रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है, साथ ही मेटाबॉलिज्म बेहतर होता है।
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