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जब भी हम माता रानी के विषय में बात करते हैं तो दस महाविद्याओं के बारे में जरूर बात की जाती है। इन दस महाविद्याओं में छिन्नमस्ता या छिन्नमस्तिका या प्रचण्ड चण्डिका भी एक हैं। देवी छिन्नमस्ता का स्वरूप बड़ा अलग है क्योंकि इस रूप में मैया के हाथ में अपना ही कटा हुआ सिर है और दूसरे हाथ में खड्ग है। इस कटे हुए सिर के कारण ही मैया का नाम छिन्नमस्तिका है। छिन्नमस्ता महाविद्या सभी चिंताओं को दूर कर मन को शांति देने वाली है। चिंताओं को हरने वाली मैया को इसलिए चिंतपुरणी भी कहा जाता है।
देवी भागवत में मां स्वयं अपने स्वरूप का वर्णन करते हुए कहती हैं कि मेरा शीश छिन्न है लेकिन मैं सदैव यज्ञ के रूप में सिर के साथ प्रतिष्ठित हूं। महाप्रलय का ज्ञान कराने वाली माता महाविद्या भगवती पार्वती का क्रोध स्वरूप है। मैया के एक हाथ में खड्ग और दूसरे हाथ में मस्तक धारण किए हुए जिससे रक्त की जो धाराएं निकलती हैं। इन रक्त धाराओं में से एक को स्वयं मां पीती हैं। अन्य दो धाराओं का पान मैय्या की सखियां जया और विजया अपनी भूख मिटाती है। देवी के गले में हड्डियों की माला तथा कंधे पर यज्ञोपवीत है।
माता चिंतपुरणी का प्रसिद्ध मंदिर हिमाचल प्रदेश में है। वहीं देवी छिन्नमस्ता का एक प्रसिद्ध मंदिर रजरप्पा में है। सहारनपुर की शिवालिक पहाड़ियों के मध्य प्राचीन शाकम्भरी देवी शक्तिपीठ भी छिन्नमस्ता देवी का एक दिव्य मंदिर है।
शांत भाव से उपासना करने पर मां अपने शांत स्वरूप में दर्शन देती हैं।
उग्र रूप में उपासना करने पर मां उग्र रूप में प्रकट होती हैं।
मान्यता है कि दिशाएं माता के वस्त्र हैं। उनकी नाभि में योनि चक्र है।
छिन्नमस्ता की साधना दीपावली से शुरू करनी चाहिए।
देवी का जप करने, दशांश हवन, हवन का तर्पण करते हुए ब्राह्मण और कन्या भोजन करवाने से बहुत लाभ मिलता है।
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TH 75A, New Town Heights, Sector 86 Gurgaon, Haryana 122004
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