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दिवाली या दीपावली हिंदू धर्म में सबसे बड़े त्योहारों में से एक है। पांच दिवसीय इस त्योहार को अंधकार पर प्रकाश, बुराई पर अच्छाई और अज्ञानता पर ज्ञान की जीत के प्रतीक के रूप में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। यह त्योहार धनतेरस या धनत्रयोदशी से शुरू होता है जो एक महत्वपूर्ण त्योहार है।
कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी या 13वें चंद्र दिवस पर मनाया जाने वाला धनतेरस, नई शुरुआत, सोना-चांदी, नए बर्तन और अन्य घरेलू सामान खरीदने के साथ साथ नया घर, प्रतिष्ठान आदि लेने के लिए एक शुभ दिन माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस शुभ दिन खरीदी गई वस्तु कई गुना बढ़ जाती है और भविष्य में लाभकारी और शुभकारी होती है। धनतेरस पर धन और समृद्धि के लिए भगवान गणेश और देवी लक्ष्मी के साथ-साथ धन के देवता भगवान कुबेर की पूजा करने का विधान है।
मान्यता है कि समुद्र मंथन के दौरान भगवान धन्वंतरि अपने हाथों में अमृत कलश लेकर बाहर आए थे। यह कलश उन्होंने देवताओं को सौंप दिया और उन्हें देवताओं ने अपना वैद्य या चिकित्सक नियुक्त कर दिया था। इसका कारण यह भी था कि उनके एक हाथ में अमृत कलश और दूसरे हाथ में आयुर्वेद था। यह दिन धनतेरस का था तभी से उत्तम स्वास्थ्य और धन वैभव के लिए धनतेरस मनाते हैं। धनतेरस को राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस के रूप में भी मनाया जाता है। यह भगवान कुबेर के साथ भगवान गणेश, देवी लक्ष्मी और भगवान धन्वंतरि की विशेष पूजा का दिन है।
इस साल त्रयोदशी तिथि की शुरुआत मंगलवार 29 अक्टूबर 2024 की सुबह 10 बजकर 31 मिनट से हो रही है, जो बुधवार 30 अक्टूबर 2024 को दोपहर 1 बजकर 15 मिनट रहेगी। लेकिन धनतेरस की पूजा शाम को ही होती है तो इस हिसाब से 29 अक्टूबर को ही ये त्योहार मनाया जाएगा।
धनतेरस के लिए पूजा का सबसे शुभ मुहूर्त मंगलवार 29 अक्टूबर की शाम 6 बजकर 31 मिनट से लेकर 8 बजकर 13 मिनट तक रहेगा।
धनतेरस पर भगवान कुबेर को सफेद मिठाई का भोग लगाएं। आप भगवान कुबेर को धनिया की पंजीरी का भोग लगाएं। भगवान धन्वंतरि को पीली मिठाई का भोग अत्यंत प्रिय है। वही माता लक्ष्मी को चावल की खीर का भोग लगाएं। महालक्ष्मी को गुड़ और घी से बनी लापसी का भोग भी बहुत प्रिय है।
जय धन्वंतरि देवा, जय धन्वंतरि जी देवा।
जरा-रोग से पीड़ित, जन-जन सुख देवा।। जय धन्वं.।।
तुम समुद्र से निकले, अमृत कलश लिए।
देवासुर के संकट आकर दूर किए।। जय धन्वं.।।
आयुर्वेद बनाया, जग में फैलाया।
सदा स्वस्थ रहने का, साधन बतलाया।। जय धन्वं.।।
भुजा चार अति सुंदर, शंख सुधा धारी।
आयुर्वेद वनस्पति से शोभा भारी।। जय धन्वं.।।
तुम को जो नित ध्यावे, रोग नहीं आवे।
असाध्य रोग भी उसका, निश्चय मिट जावे।। जय धन्वं.।।
हाथ जोड़कर प्रभुजी, दास खड़ा तेरा।
वैद्य-समाज तुम्हारे चरणों का घेरा।। जय धन्वं.।।
धन्वंतरि जी की आरती जो कोई नर गावे।
रोग-शोक न आए, सुख-समृद्धि पावे।। जय धन्वं.।।
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