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गोवर्धन पूजा के दिन भक्त गोवर्धन महाराज की नाभि पर दीपक जलाते हैं। इस प्रथा के पीछे भगवान कृष्ण से जुड़ी एक रोचक कथा है। द्वापर युग में भगवान ने इंद्र देव के अहंकार को चूर करने के लिए गोवर्धन पर्वत को श्री कृष्ण ने अपनी छोटी उंगली पर उठा लिया था। तब से इस दिन गोवर्धन की नाभि में दीपक जलाकर भक्त भगवान की कृपा और प्रकृति के प्रति आभार अपना प्रकट करते हैं। इसके अन्य लाभ भी हैं, आइए इस लेख ने विस्तार से जानते हैं।
गोवर्धन पूजा को अन्नकूट पूजा भी कहा जाता है। हर साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को यह मनाई जाती है। साल 2024 में यह पावन दिन 2 नवंबर को मनाया जाएगा। 1 नवंबर की शाम 6 बजकर 16 मिनट से प्रतिपदा तिथि शुरू होगी और 2 नवंबर की रात 8 बजकर 21 मिनट तक रहेगी। इसलिए, उदयातिथि के अनुसार गोवर्धन पूजा 2 नवंबर को ही होगी। इस दिन भक्त गिरिराज गोवर्धन की पूजा करते हैं और साथ ही भगवान कृष्ण का पूजन कर उनसे अपने जीवन में सुख-समृद्धि और शांति का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
गोवर्धन महाराज की नाभि में दीपक जलाने की परंपरा के पीछे एक पौराणिक कथा है जो भगवान कृष्ण और इंद्र देव से जुड़ी है। धार्मिक मान्यता के अनुसार एक बार इंद्र देव ने अपने अहंकार में ब्रज वासियों पर भयंकर वर्षा कर दी थी। दरअसल, ब्रज वासियों ने भगवान कृष्ण के कहने पर इंद्र देव की पूजा छोड़ दी थी। जब बाढ़ जैसे हालात उत्पन्न हो गए, तो भगवान कृष्ण ने ब्रज वासियों को बचाने के लिए अपनी छोटी उंगली पर गोवर्धन पर्वत को उठा लिया। इस घटना ने इंद्र का घमंड चूर-चूर कर दिया और उन्होंने भगवान कृष्ण से क्षमा मांगी।
कहा जाता है कि भगवान ने गोवर्धन पर्वत को इसके मध्य भाग से अपनी उंगली पर उठाया था। जब ब्रज वासियों ने देखा कि भगवान की उंगली पर लालिमा आ गई है तो उन्होंने वहां मक्खन, घी, शहद, तेल आदि अर्पित किया। चूंकि गोवर्धन पर्वत को मध्य भाग से उठाया गया था और मानव शरीर में मध्य भाग को नाभि का प्रतीक माना जाता है, इसलिए गोवर्धन पूजा के दिन गिरिराज की नाभि पर दीपक जलाना अत्यंत शुभ माना गया।
गोवर्धन की नाभि में दीपक जलाने और घी, तेल, शहद, मक्खन अर्पित करने का धार्मिक महत्व है। मान्यता है कि ऐसा करने से घर में धन-धान्य की कमी नहीं होती और परिवार में सुख-समृद्धि हमेशा बनी रहती है। गोवर्धन पूजा के दौरान दीपक जलाकर भक्त भगवान की दिव्यता और प्रकृति के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त की जाती है।
गोवर्धन पूजा प्रकृति के प्रति आदर प्रकट करने और समाज में एकता की भावना को प्रबल करने का पर्व है। यह पूजा हमें याद दिलाती है कि हमें प्रकृति का संरक्षण और उसका सम्मान करना चाहिए। क्योंकि, भगवान कृष्ण ने भी गोवर्धन पर्वत की पूजा करके यह संदेश दिया था कि हमें पृथ्वी, पर्वत, और वनस्पतियों का सम्मान करना चाहिए।
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