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दुर्गा पूजा के लिए पंडालों में नवरात्रि के पहले दिन घटस्थापना की जाती है। इसी के साथ शुरू होता है देवी आराधना का महा महोत्सव। नवरात्रि नौ दिनों का त्यौहार है। इस दौरान देश ही नहीं दुनियाभर में मां दुर्गा के भक्त बड़े हर्षोल्लास के साथ उनकी पूजा-अर्चना करते हैं। मैया की एक से बढ़कर एक सुंदर प्रतिमाएं गांव-गांव और शहर-शहर पंडालों में स्थापित की जाती हैं। पांडालों को खूब रोशनी और विद्युत सज्जा के साथ सजाया जाता है।
लेकिन फिर भी हर पांडाल या उत्सव स्थल का मुख्य आकर्षण तो मां की मूर्ति ही होती है। भक्तों की पहली नजर मां के स्वरूप पर ही पड़ती है। ऐसे में एक प्रश्न भी उठता है कि आखिर मां की ये सुंदर प्रतिमाएं बनती कैसे हैं और यह विलक्षण मिट्टी कहां मिलती है। आपकी इसी जिज्ञासा को शांत करने के लिए भक्त वत्सल के नवरात्रि विशेषांक में हम आपको इस लेख में मैया की मूर्ति बनाने के लिए उपयुक्त मिट्टी की रहस्यमयी और दिलचस्प कहानी बताने जा रहे हैं।
पश्चिम बंगाल की दुर्गा पूजा विश्वभर में प्रसिद्ध है। लेकिन यहां एक अनोखा रिवाज भी है। यहां मां दुर्गा की प्रतिमा बनाने में राजमहल, वेश्यालय, वाल्मीकि के घर समेत 10 जगहों की मिट्टी का उपयोग होता है। 8 तरह के जल का उपयोग होता है। इसी तर्ज पर दिल्ली में यही काम किया जाने लगा है। यहां तक कि इतनी चीजें दिल्ली में न मिलने पर कोलकाता से इन्हें मंगवाया जाता है। मतलब कलकत्ता के मिट्टी और पानी से दिल्ली में मैया की मूर्ति बनाई जाती है। जिन जगहों पर यह सामग्री मिलती है उन खास दुकानों को दशकर्मा स्टोर कहते हैं।
1. गंगा की मिट्टी जो गंगा नदी के किनारे से लाई जाती हैं।
2. गजदंत मिट्टी मतलब हाथी के दांत से छुई मिट्टी।
3. वाराह दंत मिट्टी मतलब सूअर के दांत से छुई मिट्टी।
4. चतुष्पद मिट्टी का मतलब है ऐसी जगह की मिट्टी जहां से 4 रास्ते निकल रहे हो।
5. वेश्यालय की मिट्टी किसी वेश्या के घर से लाई जाती है।
6. राजदार मिट्टी यानी राजा के दरबार से लाई गई मिट्टी।
7. उभयकुल मिट्टी नदी के दोनों किनारों की मिट्टी को कहा जाता है।
8. वाल्मीकि मिट्टी के लिए किसी दलित के घर की मिट्टी को लाया जाता है।
9. नौदीप मिट्टी झील की मिट्टी को कहा गया है।
10. पर्वत की मिट्टी के रूप में किसी भी पर्वत से लाई गई मिट्टी का उपयोग करते हैं।
दस तरह की मिट्टी लेने के पीछे सबसे बड़ा कारण यह बताया गया है कि मैया की प्रतिमा हर वर्ग की हिस्सेदारी से बनी है। यह एक तरह से समानता का संदेश भी हैं।
बंगालियों के लिए दुर्गा सबसे बड़े त्योहारों में से एक है। उनका पूजन करने का तरीका भी बहुत अलग है। वे जानवर की बलि की जगह कद्दू को बलि स्वरूप क्रिया में काटते हैं। मां को जब पंडाल में लाते हैं तो उनकी खास पूजा करते है।
बंगाली लोग मुख्य पूजा नवरात्रि के छठे दिन से शुरू करते है। उस दिन मूर्ति के पास 9 तरह के पौधे हल्दी, जयंती, केला, जोड़ा बेल, अशोक, मान, धान, अर्बी, दारिम्बो रखते हैं। 7वें दिन केले के पौधे को नहलाने का विधान है। मां दुर्गा के साथ कार्तिक, गणेश, मां लक्ष्मी और सरस्वती और शिव की भी मूर्ति भी रखी जाती है। अष्टमी की पूजा के दौरान कन्या भोज आयोजित किया जाता है। इस दिन संधि पूजा भी होती है, जिसमें 108 दीये जलाते हैं। नवमी को कद्दू की बलि चढ़ाई जाती है।
10वें दिन मां का विसर्जन करते हैं। बंगाली मान्यताओं के अनुसार इस दिन मां अपनी ससुराल जा रही होती हैं। इसलिए कोलकाता में रिवाज के अनुसार मायके से ससुराल जाने वाली लड़की की भांति मां को नए और सुंदर कपड़े पहनाकर विदा करते हैं। 5 तरह की सब्जी और मिठाई की दावत या भोज आयोजित किया जाता है।
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