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छोटी दिवाली का पावन त्योहार कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है। इसे छोटी दिवाली के साथ-साथ रूप चौदस, काली चतुर्दशी और नरक चतुर्दशी के नाम से भी जाना जाता है। जिस तरह छोटी दिवाली के नाम हैं, उसी तरह इस त्योहार से जुड़ी भी अलग-अलग कथाएं प्रचलित हैं। इस लेख में हम आपको छोटी दिवाली से जुड़ी कथाओं के बारे में बताएंगे।
छोटी दिवाली को रूप चौदस कहने के पीछे कई कथाएं प्रचलित है। एक पौराणिक कथा के अनुसार, हिरण्यगर्भ नाम का एक राजा राजपाट छोड़कर तप में विलीन हो गया। कई वर्षों तक तपस्या करने के बाद उसके शरीर में कीड़े पड़ गए। इस बात से दुखी होकर हिरण्यगर्भ ने नारद मुनि को अपनी कष्ट सुनाई। जिसके बाद नारद मुनि ने राजा को कार्तिक मास कृष्ण पक्ष चतुर्दशी के दिन शरीर पर लेप लगाकर सूर्योदय से पहले स्नान करने के बाद श्रीकृष्ण की पूजा करने की सलाह दी। राजा ने मुनि के सलाह पर श्रीकृष्ण की आराधना की और फिर से रूपवान हो गया। तभी से इस दिन को रूप चतुर्दशी भी कहा जाने लगा।
एक अन्य किंवदंती के अनुसार एक बार भौमासुर नाम के राक्षस (जिसे नरकासुर भी कहा जाता है) के अत्याचारों से तीनों लोक में हाहाकार मचा हुआ था। उसने अपनी शक्तियों से कई देवताओं पर भी विजय पा ली थी। राक्षस की मृत्यु केवल किसी स्त्री के हाथ ही हो सकती थी इसलिए उसने हजारों कन्याओं का हरण कर लिया था। इस पर इंद्रदेव भगवान कृष्ण के पास संसार की रक्षा की प्रार्थना लेकर पहुंचते हैं। इंद्र देव की प्रार्थना स्वीकार करते हुए भगवान श्रीकृष्ण अपनी पत्नी सत्यभामा के साथ गरुड़ पर आसीन होकर नरकासुर राक्षस का संहार करने पहुंचे। भगवान श्रीकृष्ण ने सत्यभामा को अपना सारथी बनाया और उनकी सहायता से नरकासुर का वध कर डाला। नरकासुर का वध करने के बाद भगवान श्रीकृष्ण और सत्यभामा ने उसके द्वारा हरण की गई लगभग 16,100 कन्याओं को मुक्त कराया। इस दिन के बाद उन स्त्रियों को भयमुक्त होकर नया जीवन मिला। नई पहचान पाने के बाद खुद को संवारने की परंपरा की शुरुआत हुई। रूप निखारने के लिए सरसों के तेल की मालिश और उबटन लगाया गया। रूप चौदस पर व्रत रखने का भी अपना महत्व है। मान्यता है कि रूप चौदस पर व्रत रखने से भगवान श्रीकृष्ण व्यक्ति को सौंदर्य प्रदान करते हैं।
छोटी दिवाली के दिन तेल का एक चौमुखा दीपक दक्षिण दिशा में यम के नाम से जलाया जाता है। इसके पीछे यमराज और यमदूतों से जुड़ी पौराणिक कथा है। जिसके अनुसार एक दिन यमराज ने यमदूतों से पूछा था कि क्या तुम्हें कभी भी किसी प्राणी के प्राण हरण करते समय दुख हुआ है। यमदूतों ने कहा कि एक बार हमें दुख हुआ था। वे बताते हैं कि हेमराज नाम का एक राजा था। जब उसके यहां एक पुत्र का जन्म हुआ तो ज्योतिषियों ने भविष्यवाणी की थी कि ये बच्चा अल्पायु है। विवाह के बाद इसकी मृत्यु हो जाएगी। ये बात सुनकर राजा ने पुत्र को अपने मित्र राजा हंस के यहां भेज दिया। राजा हंस ने बच्चे का पालन सबसे अलग रखकर किया। जब राजकुमार बड़ा हुआ तो एक दिन एक राजकुमारी उसे दिखाई दी और दोनों ने गंधर्व विवाह कर लिया। विवाह के चार दिन बाद राजकुमार की मृत्यु हो गई। पति की मृत्यु से दुखी होकर राजकुमारी, राजा हेमराज और उनकी रानी रोने लगे और विधाता को कोसने लगे। जब हम उस राजकुमार के प्राण हरण करने पहुंचे तो इन सभी का विलाप देखकर हमें बहुत दुख हुआ था। ये बात बताने के बाद यमदूतों ने यमराज से पूछा कि क्या कोई ऐसा उपाय है, जिससे किसी प्राणी की अकाल यानी असमय मृत्यु न हो। यमराज ने यमदूतों से कहा कि जो लोग कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी की रात दक्षिण दिशा में मेरा या मेरे यमदूतों का ध्यान करते हुए दीपक जलाते हैं, उन्हें अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता है। इसी कथा की वजह से नरक चतुर्दशी की रात यमराज के लिए दीपदान किया जाता है।
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