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नवरात्रि का पाँचवें दिन स्कंदमाता की उपासना की जाती है। मैय्या इस रूप में मोक्ष और सुख देने वाली है। साथ ही मां मनोकामनाएं भी पूर्ण करती है। भक्तों की इच्छाओं को पूरा करने वाली स्कन्द माता के बारे में हम आपको भक्त वत्सल के नवरात्रि विशेषांक में वो सभी जानकारी देने की कोशिश कर रहे हैं जो शायद आप नहीं जानते हैं। नवरात्रि विशेषांक के सांतवे लेख में हम आपको मैय्या के स्वरूप, पूजन विधि, मंत्र और पौराणिक मान्यताओं के बारे में बताएंगे।
भगवान शिव के ज्येष्ठ पुत्र कुमार कार्तिकेय को स्कंद नाम से भी पूजा गया है। देवासुर संग्राम में देवताओं के सेनापति के रूप में उन्होंने देवताओं की सेना का प्रतिनिधित्व किया था। भगवान स्कंद की माता होने के कारण माँ दुर्गा के इस स्वरूप को स्कंदमाता के नाम से पूजा जाता है।
इस स्वरूप में चार भुजाओं वाली माता के दाहिनी तरफ की नीचे वाली भुजा में कमल पुष्प, बाईं तरफ की ऊपर वाली भुजा वरमुद्रा में तथा नीचे वाली भुजा में भी कमल पुष्प है। मैय्या के इस स्वरूप में भगवान स्कंद बालरूप में मां गोद में विराजित हैं। शुभ्र वर्ण वाली मैय्या कमल के आसन पर विराजमान हैं। इस कारण इन्हें पद्मासना देवी भी कहा गया है। मैय्या इस रूप में सिंह पर सवार होकर नवरात्रि के पाँचवें दिन भक्तों को दर्शन देती है।
शास्त्रों के अनुसार मैय्या का यह रूप पुष्कल चक्र में अवस्थित मन वाले साधक को शांत मन का स्वामी बनाता है। स्कंदमाता को पद्मासना देवी और विद्यावाहिनी दुर्गा देवी के नाम से भी पूजा जाता है। स्कंदमाता सूर्यमंडल की अधिष्ठात्री देवी हैं और साधक को अलौकिक तेज देने वाली हैं। साधना के जरिए कुण्डलिनी जागरण के उद्देश्य से इस दिन विशुद्ध चक्र की साधना करने का विधान है।
सबसे पहले चौकी (बाजोट) पर स्कंदमाता की प्रतिमा या तस्वीर रखें।
फिर गंगा जल या गोमूत्र से भूमि शुद्धिकरण करें।
चांदी, तांबे या मिट्टी के घड़े में जल भरकर उस पर कलश की स्थापना करें।
फिर श्रीगणेश, वरुण, नवग्रह की स्थापना चौकी पर करें।
मां की प्रतिमा को चुनरी चढ़ाएं।
व्रत, पूजन का संकल्प लेकर वैदिक एवं सप्तशती मंत्रों द्वारा स्कंदमाता सहित सभी देवताओं का आह्वान करें।
अर्घ्य, आचमन के साथ, सौभाग्य सूत्र, चंदन, रोली, हल्दी, सिंदूर, दुर्वा, बिल्वपत्र, आभूषण, पुष्प-हार, सुगंधित द्रव्य, धूप-दीप, नैवेद्य, फल, पान, दक्षिणा करते हुए पूजन सामग्री से मैय्या को प्रसन्न करें।
मां की आरती, प्रदक्षिणा के बाद मंत्र पुष्पांजलि समर्पित कर नेवेद्य लगाकर प्रसाद ग्रहण करें। प्रसाद में पांच प्रकार के फल और मिठाइयां रखें।
घर में शांति के लिए स्कंदमाता को केले का भोग लगाएं और केले का दान किसी ब्राह्मण को दें।
सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया |शुभदाऽस्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी ||या देवी सर्वभूतेषु माँ स्कन्दमाता रूपेण संस्थिता।नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
मैय्या का यह रूप एकाग्र और ऐश्वर्य की प्रतिमूर्ति हैं
नवरात्रि के पांचवे दिन देवी स्कंदमाता की पूजा करने से सुख, ऐश्वर्य और मोक्ष प्राप्त होता है।
देवी स्कंदमाता को सफेद रंग पसंद है जो शांति और सुख का प्रतीक है।
ज्योतिषीय मान्यताओं के अनुसार देवी स्कंदमाता बुध ग्रह की स्वामिनी है।
स्कंदमाता हमें एकाग्र रहना सिखाती है।
'इस लेख में दी गई जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। सूचना के विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/धार्मिक मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संकलित करके यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक या उपयोगकर्ता इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह से उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता या पाठक की ही होगी।
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