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नवरात्रि के दौरान माता के नौ अलग अलग स्वरूपों की आराधना की जाती है। नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री स्वरूप में पूजी जाती हैं। घटस्थापना के बाद नवरात्रि की शुरुआत में मैय्या के इसी रूप की आराधना होती है। भक्त वत्सल के नवरात्रि विशेषांक की तीसरे लेख में हम आपको मां के प्रथम स्वरूप हिमालय की पुत्री माता शैलपुत्री के बारे में बताने जा रहे हैं। तो चलिए जानते हैं मां के प्रथम स्वरूप शैलपुत्री के बारे में विस्तार से…..
मां का प्रथम स्वरूप शैलपुत्री है जो बहुत शांत और सरल स्वभाव की हैं। मां इस रूप में वृषभ पर विराजमान हैं। दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएँ हाथ में कमल-पुष्प लिए मां का यह स्वरूप बहुत ही सुंदर है। नंदी पर सवार होने के कारण मैय्या शैलपुत्री को वृषोरूढ़ा और उमा के नाम से भी पूजा गया है।
पौराणिक कथा के अनुसार मां शैलपुत्री पिछले जन्म में सती नाम से विख्यात थीं और उनका विवाह भगवान शिव से हुआ था। एक बार प्रजापति दक्ष जो कि सती के पिता थे, उन्होंने यज्ञ का आयोजन किया। जिसमें सभी देवी-देवताओं को निमंत्रण भेजा गया। लेकिन भगवान शिव को यह निमंत्रण नहीं भेजा गया। जब सती को इस आयोजन का पता चला तो उन्होंने यज्ञ में जाने की इच्छा जताई। लेकिन आमंत्रित नहीं किए जाने के कारण भगवान शिव ने सती को न जाने की बात कही।
सती नहीं मानीं और बार-बार यज्ञ में जाने की हठ करने लगी। तब भोलेनाथ ने बिना मन से उन्हें यज्ञ में जाने की इजाजत दे दी। सती जब अपने पिता प्रजापति दक्ष के घर पहुंची तो वहां उनका कोई आदर सम्मान या आवभगत नहीं हुई। उनके पिता-माता और अन्य परिजनों ने उनसे बात तक नहीं की। यहां तक कि वो सभी उनके पति महादेव का अनादर कर रहे थे। प्रजापति दक्ष ने भी उनका और भगवान शिव का अपमान किया। यह सब सती को सहन नहीं हुआ और वो दुखी होकर यज्ञ कुण्ड में कूद गई। सती ने यज्ञ अग्नि में भस्म होकर अपने प्राण त्याग दिए।
यह खबर भगवान शिव तक पहुंची तो वे अत्यंत क्रोधित हो गए। भगवान ने दक्ष प्रजापति के यज्ञ को तहस-नहस कर दिया। इसके बाद सती अगले जन्म में हिमालय की पुत्री के रूप में जन्मीं। शैलराज की बेटी होने के कारण उनका नाम शैलपुत्री रखा गया। मां को पार्वती और हेमवती के नाम से भी देवी भक्तों के द्वारा पूजा जाता है।
नवरात्रि के प्रथम दिन मां शैलपुत्री की पूजा के लिए मैय्या के चित्र या प्रतिमा को एक चौकी पर विराजमान करें।
चौकी पर लाल या सफेद वस्त्र बिछाकर नवग्रह स्थापित करें।
ज्योति जला कर मैय्या की आराधना करें।
वस्त्र सफेद हो तो अति उत्तम क्योंकि मां शैलपुत्री को सफेद वस्तु ज्यादा प्रिय हैं।
एक पान के पत्ते पर लौंग, सुपारी, मिश्री, मां शैलपुत्री को चढ़ाएं।
मां शैलपुत्री को सफेद वस्त्र, सफेद फूल, फल और मिठाई चढ़ाएं।
नवरात्रि के प्रथम दिन उपासना से मूलाधार चक्र जागृत होता है। शैलपुत्री मैय्या अनेक सिद्धियों को देने वाली है। मैय्या की आराधना से जीवन के सभी दुःख, क्लेश और नकारात्मकता खत्म होती है।
वन्दे वंछितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम् |वृषारूढाम् शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम् ।।
भक्तवत्सल की नवरात्रि विशेष सीरीज के तीसरे भाग में आपने माता शैलपुत्री की कहानी को विस्तार से जाना, इसी तरह माता के सभी नौ स्वरूपों के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए बनें रहें भक्तवत्सल के साथ।
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