बिल्वाष्टकम् (Bilvashtakam)

त्रिदलं त्रिगुणाकारं त्रिनेत्रं च त्रियायुधं,

त्रिजन्मपापसंहारं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥1॥


त्रिशाखैर्बिल्वपत्रैश्च ह्यच्छिद्रैः कोमलै: शुभैः,

शिवपूजां करिष्यामि एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥2॥


अखण्ड बिल्वपत्रेण पूजिते नन्दिकेश्वरे,

शुद्ध्यन्ति सर्वपापेभ्यः एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥3॥


शालिग्राम शिलामेकां विप्राणां जातु अर्पयेत ,

सोमयज्ञ महापुण्यं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥4॥


दन्तिकोटि सहस्राणि वाजपेयशतानि च,

कोटिकन्या महादानं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥5॥


लक्ष्म्याः स्तनोत्पन्नं महादेवस्य च प्रियं,

बिल्ववृक्षं प्रयच्छामि एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥6॥


दर्शनं बिल्ववृक्षस्य स्पर्शनं पापनाशनं,

अघोरपापसंहारं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥7॥


मूलतो ब्रह्मरूपाय मध्यतो विष्णुरूपिणे,

अग्रतः शिवरूपाय एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥8॥


बिल्वाष्टकमिदं पुण्यं यः पठेच्छिवसन्निधौ,

सर्वपापविनिर्मुक्तः शिवलोकमवाप्नुयात्,


इतिश्री बिल्वाष्टकं सम्पूर्णम्

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