नवीनतम लेख

काशी के कोतवाल काल भैरव

काल भैरव को क्यों कहा जाता है काशी का कोतवाल, कैसे उन पर लगा ब्रह्महत्या का दोष 


काशी के राजा भगवान विश्वनाथ और कोतवाल भगवान काल भैरव की जोड़ी हिंदू पौराणिक कथाओं में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। भगवान काल भैरव का दर्शन किए बिना विश्वनाथ का दर्शन अधूरा माना जाता है। क्योंकि बाबा विश्वनाथ काशी के राजा हैं। वहीं काल भैरव को इस शहर का कोतवाल कहा जाता है। हिंदू मान्यता के अनुसार भगवान शंकर के आदेश पर काल भैरव पूरे शहर की व्यवस्था संभालते हैं। भगवान काल भैरव को भगवान शिव का अवतार माना जाता है। इनका जन्म मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को हुआ था।

इसलिए इस दिन को काल भैरव जयंती के रूप में मनाया जाता है। इस दिन भगवान काल भैरव की पूजा करने से व्यक्ति को शक्ति, सिद्धि, सुख-समृद्धि और आत्मविश्वास प्राप्त होता है। इस साल यानी 2024 में काल भैरव जयंती 22 नवंबर को मनाई जा रही है। काशी के कोतवाल कहे जाने वाले भगवान भैरव का काशी से गहरा संबंध है। ऐसे में आईये जानते हैं काल भैरव को काशी का कोतवाल कहे जाने के पीछे की पौराणिक कथा…



काल भैरव से जुड़ी पौराणिक कथा  


एक बार ब्रह्माजी और विष्णुजी के बीच इस बात को लेकर बहस छिड़ गई की ब्रह्मा, विष्णु और महेश में सबसे महान कौन है। चर्चा के बीच शिवजी का जिक्र आने पर ब्रह्माजी के पांचवें मुख ने शिव की आलोचना कर दी, जिससे शिवजी को गुस्सा आ गया। उसी क्षण भगवान शिव के क्रोध से काल भैरव का जन्म हुआ। काल भैरव ने शिवजी की आलोचना करने वाले ब्रह्माजी के पांचवें मुख को अपने नाखूनों से काट दिया।

ब्रह्मा जी का कटा हुआ मुख काल भैरव के हाथ से चिपक गया। 

तब भगवान शिव ने भैरव से कहा कि तुम्हें ब्रह्महत्या का पाप लग चुका है और इसकी सजा यह है कि तुम्हें एक सामान्‍य व्‍यक्ति की तरह तीनों लोकों का भ्रमण करना होगा। जिस जगह यह मुख तुम्‍हारे हाथ से छूट जाएगा, वहीं पर तुम इस पाप से मुक्त हो जाओगे। शिवजी की आज्ञा से काल भैरव तीनों लोकों की यात्रा पर चल दिए। उनके जाते ही शिवजी की प्रेरणा से एक कन्या प्रकट हुई। यह कन्या कोई और नहीं ब्रह्महत्या थी। इसे शिवजी ने भैरव के पीछे छोड़ दिया था।


भैरव ब्रह्महत्या के दोष से मुक्ति पाने के लिए तीनों लोक की यात्रा कर रहे थे और वह कन्‍या भी उनका पीछा कर रही थी। फिर एक दिन जैसे ही भैरव बाबा ने काशी में प्रवेश किया कन्‍या पीछे छूट गई। शिवजी के आदेशानुसार काशी में इस कन्या का प्रवेश करना मना था। काशी को शिव जी की नगरी माना जाता है जहां वह बाबा विश्वनाथ के रूप में पूजे जाते हैं। यहां गंगा के तट पर पहुंचते ही भैरव बाबा के हाथ से ब्रह्मा जी का शीश अलग हो गया और भैरव बाबा को ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति मिली। तब शिव जी ने काल भैरव को काशी का कोतवाल नियुक्त किया और वहीं रहकर तप करने का आदेश दिया। 


आता रहा है सांवरा, आता ही रहेगा (Aata Raha Hai Sanwara, Aata Hi Rahega)

आता रहा है सांवरा,
आता ही रहेगा,

हनुमान जी मिलेंगे, राम राम बोल (Hanuma Ji Milenge Ram Ram Bol)

हनुमान जी मिलेंगे,
राम राम बोल,

मेरे बालाजी सरकार, के तो रंग निराले (Mere Balaji Sarkar Ke To Rang Nirale Hai)

मेरे बालाजी सरकार,
के तो रंग निराले,

भगत पुकारे आज मावड़ी(Bhagat Pukare Aaj Mawadi)

भादी मावस है आई,
भक्ता मिल ज्योत जगाई,

यह भी जाने