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जब जब धरती पर पाप और अनाचार बढ़ता है, भगवान अपने भक्तों की पीड़ा हरने के लिए अवतार लेते हैं। लेकिन भगवान विष्णु का एक अवतार ऐसा भी है, जिसका जन्म किसी राक्षस से लड़ने या उसका वध करने के लिए नहीं बल्कि समाज में ज्ञान का प्रचार-प्रसार करने के लिए लिया था। यहां बात भगवान विष्णु के नौंवे अवतार बुद्ध की बात की जा रही है।
भगवान विष्णु के अवतार को कुछ लोग गौतम बुद्ध का अवतार समझ लेते हैं लेकिन ये दोनों एक दम अलग हैं और ये धरती पर अलग काल में रहे हैं। नाम में समानता के कारण ज्यादातर लोगों को यह भ्रम है कि दोनों एक ही है। जबकि भगवान बुद्ध विष्णु के अवतार हैं और गौतम बुद्ध एक महान संत और ज्ञानी व्यक्ति थे जो अपने सदकर्मों और कठिन तपस्या के दम पर ईश्वर तुल्य हो गए।
असमंजस की स्थिति को एक संयोग भी प्रबलता देता है जिसके अनुसार गौतम बुद्ध ने भी उसी स्थान पर तपस्या की जो पूर्व में भगवान बुद्ध की तपस्थली थी। इस बात के प्रमाण अमरकोश, ललित विस्तार ग्रन्थ के 21वें अध्याय के 178वें पन्ने सहित कई पौराणिक ग्रंथों में मौजूद हैं। तो आइए "भक्त वत्सल" के साथ जानते हैं श्रीहरि विष्णु के नौवें अवतार भगवान बुद्ध के अवतार की कथा।
भगवान बुद्ध ने भगवान विष्णु के नौवें अवतार के रूप में बिहार के गया में जन्म लिया जो आज भी हिन्दुओं का बड़ा तीर्थ धाम है। भगवान बुद्ध ब्राह्मण कुल में उत्पन्न हुए थे। इस अवतार में उनकी माता का नाम अंजना और पिता का नाम हेमसदन था। श्रीमद् भागवत महापुराण तथा श्री नरसिंह पुराण में भगवान बुद्ध के जन्म और विभिन्न लीलाओं का वर्णन है।
मान्यता है कि कलयुग में एक समय ऐसा भी आया जब दैत्यों ने वेद पाठ और यज्ञ हवन कर शक्ति संचय करना आरंभ कर दिया था। वे देवताओं को प्रसन्न करने के लिए पूजन करने लगे और जनेऊ धारण कर स्वयं को ब्राह्मण बताने लगे। दैत्यों की बढ़ती शक्ति देख देवताओं में भय व्याप्त हो गया और वे भगवान विष्णु के पास गए। तब भगवान विष्णु ने दैत्यों को रोकने के लिए कीकट क्षेत्र में बुद्ध के रूप में अवतार लिया। भगवान विष्णु ने बुद्ध अवतार धारण कर दैत्यों की बढ़ती शक्ति को रोका और देवताओं के सम्मान को कायम रखा। भागवत के पहले स्कंध के अध्याय 6 में इसका वर्णन एक श्लोक में है -
"ततः कलौ सम्प्रवृत्ते सम्मोहाय सुरद्विषाम्।बुद्धोनाम्नाजनसुतः कीकटेषु भविष्यति॥"
इसका मतलब है कि कलयुग में दैत्यों को मोहित करने के लिए विष्णु जी कीकट प्रदेश में माता अंजना के पुत्र के रूप में अवतार लेंगे।
कीकट उस समय मगध का मध्य क्षेत्र था जो आज गया के नाम से प्रसिद्ध तीर्थस्थल है। अपने इस अवतार के बारे में विष्णु धर्मेत्तर पुराण में स्वयं भगवान विष्णु कहते हैं कि कलियुग में बुद्ध के रूप में धर्म प्रवचन के माध्यम से धर्म की स्थापना के प्रयासों के बाद कलयुग के अंत में कल्कि अवतार में मलेच्छ राजाओं का वध करने के बाद मैं स्वयं सतयुग की स्थापना करुंगा। इस अवतार का वर्णन स्कंद पुराण में महर्षि मारकंडे ने भी किया है। युधिष्ठिर को भगवान के दस अवतारों की कथा सुनाते समय मुनि ने विष्णुजी के बुद्ध अवतार का वर्णन भी किया है। इसके अनुसार बुद्ध अवतार में भगवान शांत स्वभाव से संसार को मोहित करने का कार्य करेंगे।
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