चैत कृष्ण पापमोचनी एकादशी (Chait Krishna Papamochani Ekadashi)

एक समय अयोध्या नरेश महाराज मान्धाता ने प अपने कुल गुरु महर्षि वसिष्ठ जी से पूछा-भगवन् !  कोई अत्यन्त उत्तम और अनुपम फल देने वाले व्रत के इतिहास का वर्णन कीजिए, जिसके सुनने से मेरा कल्याण हो। महर्षि वसिष्ठ ने कहा- राजन् ! हम आपके सम्मुख आमलकी नाम एकादशी के व्रत के माहात्म्य का वर्णन करते हैं ध्यानपूर्वक सुनें।

प्राचीन काल में एक वैदिक नाम का नगर था वहाँ के राजा चन्द्रवंशावतंस महाराज चित्ररथ थे, जो परम वैष्णव नारायण के अनन्य भक्त थे। उनके राज्य  की सारी प्रजा मास-मास की समस्त एकादशियों का व्रत और नियम विधिवत् करती थी। यहाँ तक कि पाशु एवं पक्षी भी एकादशी के दिन आहार नहीं करते थे। इस प्रकार महाराज चित्ररथ धर्म और न्याय युक्त राज्य करके अपनी प्रजा की सेवा करते थे।

एक समय की बात है कि महाराज चित्ररथ अपनी सारी प्रजा सहित फाल्गुन शुक्ल आमलकी नाम एकादशी के व्रत का उद्यापन करने के निमित्त ग्राम के बाहर उपवन में एक सरोवर के किनारे कुम्भ स्थापित कर छत्र, उपानह, पंचरत्न, गंध, धूप, दीप और नैवेद्य से धात्री की पूजन करने लगे कि हे जामदग्नेय ! हे रेणुकानन्दन ! हे आमले की छाया में

उपविष्ट ! हे भुक्ति एवं मुक्तिदाता ! आपको कोटि- कोटि नमस्कार है। हे ब्रह्मा से उत्पन्न धात्री ! हे सर्व पापों को नाश करनेवाली धात्री ! तुमको नमस्कार है। हे देवि ! तुम मेरे अर्घ्य को ग्रहण करो और मेरे पापों को नष्ट करो। इस प्रकार राजा अपनी प्रजा सहित जागरण करता रहा।

दैव संयोग से एक महा अधम व्याध भी जो बन में मार्ग भूल गया था दिन भर का प्यासा एवं थका हुआ वहाँ आ पहुँचा और वह भी आश्चर्य चकित दृष्टि से वहाँ का प्रत्येक दृश्य देखने लगा और उस रात वह भी अपनी भूख-प्यास को भूल भगवान् की कथा सुनता रहा। यद्यपि उस व्याध का कार्य पाप कर्म एवं हिंसा करना ही था, तथापि उस दिन उसने प्रेम पूर्वक भगवान् की पूजा देखी।

दूसरे दिन प्रातःकाल व्रत का पारण कर सभी लोग अपने-अपने घर गये। वह व्याध भी प्रसन्नतापूर्वक घर गया। कुछ दिन बाद जब वह व्याध मरा तो उस अज्ञात व्रत के पुण्य-प्रभाव से वह जयन्ती नगरी में राजा विदूरथ के घर पुत्र होकर जन्म लिया और उसका नाम वसुरथ पड़ा। पिता के मरने के बाद वसुरथ ही उस नगरी का स्वामी हुआ और अत्यन्त न्यायपूर्वक धर्म संयुक्त राज्य करने लगा। उसके राज्य में समस्त प्रजा अत्यन्त सुखी और समृद्ध थी। कर्मशील और धनवान् तथा निरालस राजा सदैव ही अपनी प्रजा का पालन करता था।

एक दिन वह राजा मृगया करने के विचार से अपनी सेना और सेनापतियों के साथ वन में गया संयोगवश एक मृग का पीछा करते हुए वह अपने सभी साथियों से अलग होकर एक महा भयानक जंगल में जा फँसा। भूख और प्यास से व्याकुल हो एक वट-वृक्ष के नीचे बैठ कर विश्राम करने लगा। सुन्दर, शीतल और स्वच्छ वायु के झकोरों ने शीघ्र ही उसको निद्रा देवी की गोद में डाल दिया। राजा सभी सुध-बुध भूल अचेत हो गया।

उसी समय वहाँ पर बहुत से जंगली दस्युओं का दल आ पहुँचा और राजा को सोता देख नाना प्रकार के दुर्वाक्यों को कहता हुआ राजा को मारने के लिये झपटा और एक साथ ही राजा पर अनेकों प्रकार के सहस्रों अस्त्रों का प्रहार कर दिया। परन्तु आश्चर्य का -विषय तो यह था कि राजा के शरीर पर किसी भी - अस्त्र का घाव नहीं हुआ और न राजा को कुछ मालूम ही हुआ। तब दुष्ट और भी कुपित हुए और हजारों की संख्या में राजा पर टूट पड़े। उसी समय राजा के शरीर हे एक अत्यन्त तेजोमयी सुन्दरी हाथ में कृपाण लिये हृये निकली। उसको देखते ही दुष्टों के हाथ-पैर ढीले हो गये। जो जहाँ था वह वहीं खड़ा रह गया और वह सुन्दरी पैंतरे बदलती भगवती चण्डी के समान समस्त दृष्ट मण्डली को समाप्त कर दी और अन्तर्धान हो गई।

दुष्टों के कोलाहल एवं आर्तनाद से राजा की निद्रा भंग हुई। उसने ज्योंही आँख खोलकर देखा त्योंही चारों ओर लाशों की ढेर ही ढेर दिखाई पड़ी। तब राजा ने कहा, किसने मेरी रक्षा की इन दुष्टों को किसने मारा? उसी समय आकाशवाणी हुई कि भगवान् के सिवा कौन किसकी रक्षा करता है? ऐसी आकाशवाणी सुन राजा अत्यन्त ही प्रसन्न हुआ और घोड़े पर सवार हो अपने नगर को लौटा। सो हे राजन् ! यह आमलकी नामक एकादशी अपने भक्तोंकी रक्षा कर अवश्य वैष्णव लोक की अधिकारिणी बनाती है।

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जय जय शिव ओंकारा, हर हर शिव ओंकारा (Jay Jay Shiv Omkara Har Har Shiv Omkara)

ओम जय शिव ओंकारा,
हर हर शिव ओंकारा,

यह तो प्रेम की बात है उधो (Ye Too Prem Ki Baat Hai Udho)

यह तो प्रेम की बात है उधो,
बंदगी तेरे बस की नहीं है।

बुध प्रदोष व्रत, नवंबर 2024

सनातन धर्म में प्रत्येक तिथि का अपना विशेष महत्व है, जैसे एकादशी तिथि भगवान विष्णु को समर्पित है, वैसे ही त्रयोदशी तिथि महादेव भगवान शिव की प्रिय तिथि मानी जाती है।

जय बजरंगी बोले, वो कभी ना डोले (Jay Bajrangi Bole Vo Kabhi Na Dole)

बोले बोले रे जयकारा,
जो बाबा का बोले,

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