शीतला अष्टमी व्रत कथा

Shitala Mata Katha: शीतला माता की पौराणिक कथा, दो बहुओं की गलती से जुड़ी है इस व्रत की कहानी 


शीतला अष्टमी का पर्व श्रद्धा और नियमों का पालन करने का दिन होता है। इस दिन विशेष रूप से ठंडे भोजन का सेवन किया जाता है, क्योंकि माता शीतला को बासी भोजन का भोग लगाया जाता है। इस व्रत की कथा हमें माता शीतला के नियमों का पालन करने का महत्व समझाती है।

शीतला माता की पौराणिक कथा


1. ब्राह्मण परिवार और बहुओं की गलती

एक गांव में एक ब्राह्मण दंपति अपने दो बेटों और बहुओं के साथ रहता था। वर्षों बाद उनके घर में संतान सुख प्राप्त हुआ। तभी शीतला अष्टमी का पर्व आया, जिसमें ठंडा भोजन करने की परंपरा थी। लेकिन दोनों बहुओं को लगा कि ठंडा भोजन करने से वे और उनके छोटे बच्चे बीमार पड़ सकते हैं। इसी कारण उन्होंने छिपकर गरम बाटी बना ली और पूजा के बाद उसे खा लिया।

2. माता शीतला का क्रोध और सजा

बहुओं की इस गलती के कारण माता शीतला उनसे रूठ गईं। जब वे अपने बच्चों को उठाने गईं, तो देखा कि वे मृत हो चुके थे। यह देखकर वे विलाप करने लगीं। जब सास को सच्चाई पता चली, तो उसने गुस्से में उन्हें घर से निकाल दिया और कहा कि जब तक वे अपने बच्चों को जीवित नहीं करवा लेतीं, तब तक वापस न आएं।

3. माता शीतला की कृपा और वरदान

दोनों बहुएं अपने मृत बच्चों को लेकर भटकते हुए एक खेजड़ी वृक्ष के पास पहुंचीं, जहां दो देवियां—ओरी और शीतला माता बैठी थीं। बहुओं ने उनकी सेवा की और उनसे क्षमा मांगी। माता शीतला उनकी भक्ति से प्रसन्न हुईं और उनके बच्चों को पुनः जीवित कर दिया। बहुएं अपने बच्चों को लेकर घर लौटीं, और पूरे गांव में इस चमत्कार की चर्चा हुई। शीतला अष्टमी व्रत कथा हमें यह सिखाती है कि माता शीतला के नियमों का पालन करना आवश्यक है। जो भी श्रद्धा और भक्ति से इस व्रत को करता है, उसे माता शीतला की कृपा अवश्य प्राप्त होती है।

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धरती गगन में होती है (Dharti Gagan Mein Hoti Hai)

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गौरी नंदन तेरा वंदन, करता है संसार (Gauri Nandan Tera Vandan Karta Hai Sansar)

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लिङ्गाष्टकम् (Lingashtakam)

ब्रह्ममुरारिसुरार्चितलिङ्गं निर्मलभासितशोभितलिङ्गम् । जन्मजदुःखविनाशकलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥१॥

भगवान श्रीकृष्ण के 108 नाम

श्रीकृष्ण भगवान विष्णु के 8वें अवतार हैं। इन्हें, केशव, कन्हैया, श्याम, गोपाल, द्वारकेश या द्वारकाधीश और वासुदेव इत्यादि नामों से भी जाना है। श्रीकृष्ण का जन्म द्वापरयुग में हुआ था। कृष्ण वासुदेव और देवकी की 8वीं संतान थे।

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