छोटी होली कथा

Choti Holi Katha: छोटी होली क्यों मनाई जाती है छोटी होली, जानिए इससे जुड़ी पौराणिक कथा 


होली से एक दिन पहले मनाई जाने वाली छोटी होली को होलिका दहन के रूप में जाना जाता है। यह पर्व हिंदू धर्म में विशेष महत्व रखता है और भक्त प्रह्लाद तथा होलिका की कथा से जुड़ा हुआ है। इस दिन अग्नि में होलिका दहन किया जाता है, जो बुराई के अंत और अच्छाई की विजय का प्रतीक माना जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, होलिका दहन करने से नकारात्मक शक्तियां समाप्त होती हैं और जीवन में सुख-समृद्धि आती है।



छोटी होली का पौराणिक महत्व


छोटी होली से जुड़ी पौराणिक कथा राजा हिरण्यकश्यप, भक्त प्रह्लाद और होलिका की कहानी से संबंधित है। हिरण्यकश्यप भगवान विष्णु का विरोधी था और चाहता था कि सभी लोग उसकी पूजा करें। लेकिन उसका पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का परम भक्त था। जब प्रह्लाद को विष्णु भक्ति से रोकने के सभी प्रयास असफल हो गए, तो हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका को आदेश दिया कि वह प्रह्लाद को गोद में लेकर अग्नि में बैठ जाए। होलिका को अग्नि में न जलने का वरदान प्राप्त था, लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से प्रह्लाद बच गए और होलिका जलकर भस्म हो गई। तभी से इस दिन को बुराई के अंत और अच्छाई की जीत के रूप में मनाया जाता है।



शुभ मुहूर्त और होलिका दहन का महत्व


होलिका दहन बुराई पर अच्छाई की जीत का संदेश देता है। इस दिन समाज में नकारात्मकता, अहंकार और बुरी शक्तियों को त्यागने का संकल्प लिया जाता है। होलिका दहन का शुभ मुहूर्त हर वर्ष फाल्गुन पूर्णिमा को होता है।

  • होलिका दहन 2025 की तिथि: 13 मार्च 2025 (गुरुवार)
  • शुभ मुहूर्त: रात 10:45 बजे से 01:30 बजे तक
  • पूर्णिमा तिथि प्रारंभ: 13 मार्च 2025 को सुबह 10:35 बजे
  • पूर्णिमा तिथि समाप्त: 14 मार्च 2025 को दोपहर 12:23 बजे



होलिका दहन की पूजा विधि


  • सुबह स्नान कर शुद्ध वस्त्र धारण करें।
  • गाय के गोबर से होलिका और प्रह्लाद की मूर्ति बनाएं।
  • पूजा में रोली, चावल, हल्दी, बताशे, नारियल, गेहूं, चना और कच्चा सूत चढ़ाएं।
  • होलिका दहन के समय भगवान नरसिंह का ध्यान करें और सात परिक्रमा करें।
  • अग्नि में गेहूं और चने की बालियां भूनकर प्रसाद के रूप में बांटें।



होलिका दहन के भभूत की मान्यता


होलिका दहन के पश्चात भभूत (राख) की मान्यता सभी राज्यों में अलग-अलग है। हालांकि ऐसा माना जाता है कि लोग उस भभूत को पोटलियों में भरकर अपने घर पर ले जाते हैं और उससे तिलक लगाते हैं। मान्यता है कि इससे घर में किसी भी प्रकार का कोई राग-द्वेष नहीं होता और आने वाली बलाएं भी टल जाती हैं।


........................................................................................................
मन में है विश्वास अगर जो श्याम सहारा मिलता है(Man Mein Hai Vishwas Agar Jo Shyam Sahara Milta Hai)

मन में है विश्वास अगर जो,
श्याम सहारा मिलता है,

विसर्जन को चलीं रे, चली रे मोरी मैया (Visarjan Ko Chali Re Chali Mori Maiya)

विसर्जन को चली रे,
चली रे मोरी मैया,

जैसे तुम सीता के राम (Jaise Tum Sita Ke Ram)

जैसे तुम सीता के राम
जैसे लक्ष्मण के सम्मान

भाई दूज की कथा (Bhai Dooj Ki Katha)

भगवान सूर्य की एक पत्नी जिसका नाम संज्ञादेवी था। इनकी दो संतानों में पुत्र यमराज और कन्या यमुना थी।

डिसक्लेमर

'इस लेख में दी गई जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। सूचना के विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/धार्मिक मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संकलित करके यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक या उपयोगकर्ता इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह से उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता या पाठक की ही होगी।