शिव मृत्युञ्जय स्तोत्रम् (Shiv Mrityunjaya Stotram)

॥ शिव मृत्युञ्जय स्तोत्रम् ॥


विनियोगः - ॐ अस्य श्रीसदाशिवस्तोत्रमन्त्रस्य मार्कण्डेय ऋषिः अनुष्टुप् छन्दः श्रीसदाशिवो देवता गौरीशक्तिः मम समस्तमृत्युशान्त्यर्थे जपे विनियोगः।


रत्नसानुशरासनं रजताद्रिश्रृंगनिकेतनं, शिञ्जिनीकृतपन्नगेश्वरमच्युतानलसायकम्।

क्षिप्रदग्धपुरत्रयं त्रिदशालयैरभिवंदितं, चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यम:॥1॥


पंचपादपपुष्पगन्धिपदाम्बुजद्वयशोभितं, भाललोचनजातपावकदग्धमन्मथविग्रहम्।

भस्मदिग्धकलेवरं भवनाशिनं भवमव्ययं, चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यम:॥2॥


मत्तवारणमुख्यचर्मकृतोत्तरीयमनोहरं, पंकजासनपद्मलोचनपूजितांगघ्रिसरोरुहम्।

देवसिद्धतरंगिणी करसिक्तशीतजटाधरं, चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यम:॥3॥

 

कुण्डलीकृतकुण्डलीश्वरकुण्डलं वृषवाहनं, नारदादिमुनीश्वरस्तुतवैभवं भुवनेश्वरम्।

अंधकान्तकमाश्रितामरपादपं शमनान्तकं, चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यम:॥4॥

 

यक्षराजसखं भगाक्षिहरं भुजंगविभूषणं,  शैलराजसुतापरिष्कृतचारुवामकलेवरम्।

क्ष्वेडनीलगलं परश्वधधारिणं मृगधारिणं, चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यम:॥5॥

 

भेषजं भवरोगिणामखिलापदामपहारिणं, दक्षयज्ञविनाशिनं त्रिगुणात्मकं त्रिविलोचनम्।

भुक्तिमुक्तिफलप्रदं निखिलाघसंघनिबर्हणं, चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यम:॥6॥


 भक्तवत्सलमर्चतां निधिमक्षयं हरिदम्बरं, सर्वभूतपतिं परात्परमप्रमेयमनूपमम्।

भूमिवारिनभोहुताशनसोमपालितस्वाकृतिं, चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यम:॥7॥


विश्वसृष्टिविधायिनं पुनरेव पालनतत्परं, संहरन्तमथ प्रपंचमशेषलोकनिवासिनम्।

क्रीडयन्तमहर्निशं गणनाथयूथसमाव्रतं, चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यम:॥8॥

 

रुद्रं पशुपतिं स्थाणुं नीलकण्ठमुमापतिम्।

नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्यु: करिष्यति॥9॥


कालकण्ठं कलामूर्तिं कालाग्निं कालनाशनम्।

नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्यु: करिष्यति॥10॥

 

नीलकण्ठं विरुपाक्षं निर्मलं निरूपद्रवम्।

नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्यु: करिष्यति॥11॥


 वामदेवं महादेवं लोकनाथं जगद्गुरुम्।

नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्यु: करिष्यति॥12॥


 देवदेवं जगन्नाथं देवेशमृषभध्वजम्।

नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्यु: करिष्यति॥13॥

 

अनन्तमव्ययं शान्तमक्षमालाधरं हरम्।

नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्यु: करिष्यति॥14॥


 आनन्दं परमं नित्यं कैवल्यपदकारणम्।

नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्यु: करिष्यति॥15॥


 स्वर्गापवर्गदातारं सृष्टिस्थित्यन्तकारिणम्।

नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्यु: करिष्यति॥16॥


॥ इति श्रीपद्मपुराणान्तर्गत उत्तरखण्डे श्रीमृत्युञ्जयस्तोत्रं सम्पूर्णम्। ॥

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