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विनायक चतुर्थी का व्रत कथा

इन दो कथाओं के बिना अधूरा है विनायक चतुर्थी का व्रत, इसके पाठ से दूर होंगे सभी कष्ट


हिंदू धर्म में विनायक चतुर्थी सबसे महत्वपूर्ण दिन माना गया है। यह तिथि भगवान गणेश को समर्पित होती है। इस दिन भक्त श्रद्धा पूर्वक पूजा करते हैं और व्रत रखते हैं। इस दिन लोग प्रथम पूजनीय देवता भगवान गणेश को प्रसन्न करने के लिए व्रत कथा का पाठ करते हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार, जो व्यक्ति सच्चे मन से ये व्रत रखता है और व्रत कथा का पाठ करता है उसकी सारी इच्छाएं पूर्ण हो जाती हैं। 

इससे जीवन के सभी संकट भी दूर होते हैं। तो आइए, इस आर्टिकल में विनायक चतुर्थी व्रत कथा को विस्तार पूर्वक जानते हैं। 


विनायक चतुर्थी व्रत कथा का महत्त्व 


धार्मिक मान्यता है कि विनायक चतुर्थी के दिन विधि विधान से पूजा-पाठ के दौरान विनायक चतुर्थी व्रत कथा का पाठ भी भक्तों को अवश्य करना चाहिए। दरअसल, बिना व्रत कथा पाठ के विनायक चतुर्थी का व्रत अधूरा माना जाता है। 


विनायक चतुर्थी व्रत कथा

 

पौराणिक कथा के अनुसार, एक समय में राजा हरिश्चंद्र नाम का राजा एक राज्य पर राज करता था। उस राज्य में एक कुम्हार था जो अपने परिवार का भरण पोषण करने के लिए मिट्टी के बर्तन बनाता था। वह कुम्हार अक्सर परेशान रहता था। क्योंकि, जब भी वो बर्तन बनाता, तो उसके बर्तन कच्चे ही रह जाते थे। अब मिट्टी के कच्चे बर्तनों से उसकी आमदनी कम होने लगी। क्योंकि, लोग उसके मिट्टी के बर्तन नहीं खरीदते थे। अपनी समस्या का समाधान खोजने के लिए वह कुम्हार एक पुजारी से मिला। कुम्हार ने पुजारी को अपने सारी समस्या बताई। 


उसकी बात सुनकर पुजारी ने कुम्हार को उपाय बताते हुए कहा कि जब भी तुम मिट्टी के बर्तन पकाओ, तो उनके साथ आंवा में एक छोटे बालक को डाल देना। पुजारी के कहे अनुसार कुम्हार ने अपने मिट्टी के बर्तनों को पकाने के लिए आंवा रखा और उसके साथ एक बालक को भी रख दिया। जिस दिन कुम्हार ने यह किया, उस दिन संयोग से विनायक चतुर्थी थी। उस बालक की मां बहुत समय से अपने बेटे की तलाश करती रही। लेकिन, जब उसे बालक नहीं मिला तो वह परेशान हो गई। उसने भगवान गणेश से अपने बच्चे की कुशलता के लिए खूब प्रार्थना की। 


अगले दिन सुबह, जब कुम्हार ने अपने मिट्टी के बर्तनों को देखा कि उसके सभी बर्तन सभी अच्छे से पके हैं या नहीं तो उसे बड़ा आश्चर्य हुआ। क्योंकि, बच्चा जो आवां में था, वह बिल्कुल सही सलामत था और उसे कुछ भी नहीं हुआ था। यह देखकर कुम्हार डर गया और राजा के दरबार में गया। 


राजा के दरबार में जाकर कुम्हार ने सारी बात बताई। इसके बाद राजा हरिशचंद्र ने बालक और उसकी माता को दरबार में बुलाया। राजा ने बालक की मां से पूछा कि आखिर तुमने ऐसा क्या किया जो तुम्हारे बालक को आग में भी कुछ नहीं हुआ। 


यह सुनने के बाद उस बालक की मां ने कहा “मैंने विनायक चतुर्थी का व्रत रखा था और गणपति बप्पा की पूजा की थी।” इसके बाद कुम्हार ने भी विनायक चतुर्थी का व्रत रखना शुरू कर दिया और इस व्रत के प्रभाव से उसके जीवन के सभी कष्ट दूर हो गए और वह खुशहाल जीवन व्यतीत करने लगा।


विनायक चतुर्थी की दूसरी व्रत कथा 


महादेव और माता पार्वती एक बार नर्मदा नदी के तट पर चौपड़ खेल रहे थे। खेल में जीत या हार का निर्णय लेने के लिए महादेव ने एक पुतला बनाया और उसमें प्राण डाल दिए। फिर शिवजी ने उस बालक को कहा कि वही इस खेल के विजेता को चुने। महादेव और माता पार्वती ने खेलना शुरू किया और माता पार्वती ने 3 बार जीत हासिल की। खेल खत्म होने पर जब पूछा गया कि कौन विजेता है, तो बालक ने भगवान शिव को विजेता घोषित किया। यह सुनकर माता पार्वती क्रोधित हो गईं और उन्होंने बालक को अपाहिज रहने का श्राप दे दिया। बालक ने माता पार्वती से माफी मांगी और कहा कि ऐसा भूल से हुआ था। 


माता पार्वती ने कहा कि “श्राप वापस नहीं लिया जा सकता, लेकिन इसका एक समाधान है।” तब  माता पार्वती ने बालक को उपाय बताते हुए कहा कि “भगवान गणेश की पूजा करने के लिए नाग कन्याएं आएंगी और तुम्हें उनके कहे अनुसार व्रत करना होगा, जिससे तुम्हें इस श्राप से छुटकारा मिल जाएगा।” वह बालक कई वर्षों तक दुख से जूझता रहा। फिर एक दिन नाग कन्याएं भगवान गणेश की पूजा करने आईं। 


तब बालक ने उनसे पूछा कि कैसे गणेश जी की पूजा की जाती है। नाग कन्याओं के बताए अनुसार उस बालक ने सच्चे मन से भगवान गणेश की पूजा की इससे प्रसन्न होकर भगवान गणेश ने बालक से वरदान मांगने को कहा। बालक ने भगवान गणेश से विनती की कि “हे भगवान, मुझे इतनी शक्ति दें कि मैं पैरों से कैलाश पर्वत पर पहुंच जाऊं।” बालक को भगवान गणेश ने आशीर्वाद दिया और अंतर्ध्यान हो गए। 


इसके बाद वह बालक कैलाश पर्वत पर गया और भगवान महादेव को श्राप से छुटकारा मिलने की कहानी सुनाई। चौपड़ वाले दिन से माता पार्वती भगवान शिव से रुष्ट हो गई थीं। बालक के बताए अनुसार, भगवान शिव ने भी 21 दिनों तक भगवान गणेश का व्रत रखा था। इसके बाद भगवान महादेव के व्रत करने से माता पार्वती की नाराजगी दूर हो गई।


तभी से धार्मिक मान्यता है कि जो भी सच्चे मन से भगवान गणेश की पूजा और आराधना करता है, उसके सभी दुख दूर हो जाते हैं। साथ ही इस कथा का पाठ करने और सुनने से जीवन के सभी विघ्नों से भी छुटकारा मिल जाता है।


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