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प्रयागराज में आयोजित हो रहा महाकुंभ इन दिनों सभी का ध्यान अपनी ओर खींच रहा है। यहां दुनियाभर से लाखों श्रद्धालु गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम पर पवित्र स्नान के लिए एकत्रित हुए हैं। इस महाकुंभ में विशेष आकर्षण का केंद्र एक अमेरिकी संत भी हैं जो ‘सनातन धर्म’ का संदेश फैला रहे हैं। महाकुंभ 2025 में वो अपने ज्ञान और अनुभव को साझा कर रहे हैं। और सनातन धर्म के शाश्वत संदेश को फैला रहे हैं। तो आइए, इस आर्टिकल में पूर्व में सैनिक रह चुके अमेरिकी बाबा के बारे में विस्तार से जानते हैं।
महाकुम्भ 2025, भारत ही नहीं बल्कि दुनियाभर के संतों और आध्यात्मिक गुरुओं को आकर्षित किया है। इनमें से एक नाम है अमेरिका के न्यू मैक्सिको में जन्मे बाबा मोक्षपुरी का, जिन्होंने प्रयागराज के पवित्र संगम पर अपनी उपस्थिति से सभी का ध्यान खींचा है। वेदों, उपनिषदों और भगवद गीता के उनके गहन ज्ञान ने उन्हें कई लोगों का प्रिय बना दिया है। संगम तट पर इनकी उपस्थिति और उनके प्रवचनों को सुनने एवं उनसे मार्गदर्शन प्राप्त करने के लिए लोग उत्सुक दिख रहे हैं। कभी अमेरिकी सेना में सैनिक रहे माइकल अब बाबा मोक्षपुरी बन चुके हैं। उन्होंने आध्यात्मिक यात्रा और सनातन धर्म से जुड़ने की कहानी महाकुंभ में साझा की है।
सैनिक से आध्यात्मिक संत बनने का सफर पर बाबा मोक्षपुरी कहते हैं, "मैं भी कभी साधारण व्यक्ति था। परिवार और पत्नी के साथ समय बिताना और घूमना मुझे पसंद था। सेना में भी शामिल हुआ। लेकिन एक समय ऐसा आया जब मैंने महसूस किया कि जीवन में कुछ भी स्थायी नहीं है। तभी मैंने मोक्ष की तलाश में इस अनंत यात्रा की शुरुआत की।" आज वे जूना अखाड़े से जुड़े हैं और अपना पूरा जीवन सनातन धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए समर्पित कर चुके हैं।
अमेरिका में जन्मे बाबा मोक्षपुरी ने साल 2000 में पहली बार अपने परिवार पत्नी और बेटे के साथ भारत यात्रा की। वह बताते हैं, "वह यात्रा मेरे जीवन की सबसे यादगार घटना थी। इसी दौरान मैंने ध्यान और योग को जाना और पहली बार सनातन धर्म के बारे में समझा। भारतीय संस्कृति और परंपराओं ने मुझे गहराई से प्रभावित किया। यह मेरी आध्यात्मिक जागृति का प्रारंभ था, जिसे मैं अब ईश्वर का आह्वान मानता हूं।”
बाबा मोक्षपुरी के जीवन में बड़ा बदलाव तब आया जब उनके बेटे का असमय देहांत हो गया। उन्होंने कहा, "इस दुखद घटना ने मुझे यह समझने में मदद की कि जीवन में कुछ भी स्थायी नहीं है। इसी दौरान मैंने ध्यान और योग को अपनाया। इसी ने मुझे उस कठिन समय से बाहर निकाला। ”उसके बाद बाबा मोक्षपुरी ने योग, ध्यान और अपने अनुभवों से मिली आध्यात्मिक समझ को लोगों को समर्पित कर दिया। वे अब दुनिया भर में घूम-घूम कर भारतीय संस्कृति और सनातन धर्म की शिक्षाओं का प्रचार-प्रसार करते हैं।
2016 में उज्जैन कुंभ के बाद से उन्होंने हर महाकुंभ में भाग लेने का संकल्प लिया है। उनका मानना है कि इतनी भव्य परंपरा सिर्फ भारत में ही संभव है। भारत की आध्यात्मिक परंपराओं से गहराई से जुड़ चुके बाबा मोक्षपुरी ने अपनी पश्चिमी जीवनशैली को त्यागकर ध्यान और आत्मज्ञान के मार्ग को चुना है। अब वे न्यू मैक्सिको में एक आश्रम खोलने की योजना बना रहे हैं। जहां से वे भारतीय दर्शन और योग का प्रचार प्रसार करेंगे।
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