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महाकुंभ के तट पर श्रद्धालुओं का जमावड़ा लगा हुआ है। हर बार की तरह इस बार भी नागा साधु महाकुंभ में आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं। नागा साधु के बारे में तो आपने सुना ही होगा, लेकिन क्या आप नागिन साध्वी के बारे में जानते हैं? नागिन साध्वी, यानी महिला नागा साधु, गृहस्थ जीवन से पूर्णतः दूर हो चुकी होती हैं। इनके दिन का आरंभ और अंत पूजा-पाठ और साधना में ही होता है। आइए, इस लेख में नागिन साध्वी के जीवन और उनकी परंपराओं के बारे में विस्तार से जानते हैं।
महाकुंभ में पुरुषों के समान ही महिला नागा साधु भी अपनी सहभागिता निभाती हैं। हालांकि, इनका जीवन अत्यंत कठिन होता है। महिला नागा साधु पुरुष नागा साधुओं से भिन्न होती हैं। वे दिगंबर (निर्वस्त्र) नहीं होतीं और गेरुए रंग का वस्त्र पहनती हैं, जो सिला हुआ नहीं होता।
नागिन साध्वी बनने की प्रक्रिया अत्यंत कठिन और लंबी होती है। महिला साध्वियों को 10 से 15 वर्षों तक कठोर ब्रह्मचर्य का पालन करना पड़ता है। इस दौरान उनकी मानसिक और शारीरिक सहनशक्ति की परीक्षा ली जाती है।
महाकुंभ में भाग लेने वाली नागा साध्वियां, यदि मासिक धर्म में हों, तो वे गंगा स्नान नहीं करतीं। वे केवल गंगाजल अपने शरीर पर छिड़कती हैं।
महिला नागा साधु बनने के बाद सभी साधु और साध्वियां उन्हें "माता" कहकर संबोधित करते हैं। महिला नागा साध्वियां दशनाम संन्यासिनी अखाड़े में होती हैं, जिसे पहले "माई बड़ा" कहा जाता था।
पुरुष नागा साधुओं की तरह महिला नागा साधु नग्न नहीं रहतीं। वे गेरुए रंग का एक वस्त्र पहनती हैं, जिसे "गंती" कहा जाता है। यह वस्त्र सिला हुआ नहीं होता, और वे इसे पूरी जिंदगी धारण करती हैं।
महिला नागा साधुओं के लिए तिलक लगाना अनिवार्य होता है। यह उनकी धार्मिक पहचान का हिस्सा है।
महिला नागा साधु दिन में केवल एक बार भोजन करती हैं। उनका पूरा जीवन तपस्या, साधना और सेवा को समर्पित होता है। महाकुंभ के समापन के बाद वे पर्वतीय क्षेत्रों में चली जाती हैं और वहां साधना करती हैं।
महिला नागा साधु, पुरुष नागा साधुओं के गंगा स्नान के बाद ही स्नान करती हैं। इसके पीछे धार्मिक और परंपरागत मान्यताएं हैं।
महिला नागा साधुओं को अखाड़े में "माई," "अवधूतानी," या "नागिन" कहा जाता है। नागा साधु बनने के लिए, उन्हें भी पुरुष नागा साधुओं की तरह जीवित रहते हुए अपना पिंडदान और मुंडन कराना पड़ता है।
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