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उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में जारी महाकुंभ में अमृत स्नान के बाद अखाड़े अब वापसी करने की तैयारी कर रहे हैं। सभी महाशिवरात्रि तक गंगा घाट पर डेरा डालेंगे। इसके साथ ही काशी में वह प्रमुख तिथियों पर भगवान विश्वनाथ का दर्शन करेंगे। इसके बाद अखाड़े और नागाओं की तरफ से नगर में शोभायात्रा भी निकाली जाएगी, ऐसे में अखाड़े अभी से सजने लगे हैं।
महाकुंभ प्रयागराज में 3 फरवरी को बसंत पंचमी का तीसरा अमृत स्नान संपन्न हो गया है, जिसके बाद अब सभी अखाड़ों ने एक-एक कर कुंभ से प्रस्थान की तैयारियां शुरू कर दी है। माना जा रहा है कि इनमें से कुछ अखाड़े महाकुंभ के बाद काशी विश्वनाथ जाएंगे तो वहीं कुछ राम नगरी अयोध्या की ओर प्रस्थान करेंगे। बसंत पंचमी के शाही स्नान के बाद विभिन्न अखाड़ों के संत और नागा संन्यासी अपने-अपने डेरों की ओर लौटने की तैयारी में जुट गए हैं। अब छह साल बाद 2031 के कुंभ में फिर प्रयागराज आएंगे। ऐसा क्यों होता है आइए विस्तार से जानते हैं…
विभिन्न अखाड़ों के साधु-संत प्रयागराज में कुंभ में पावन संगम में डुबकी लगाने और तीनों अमृत स्नान के बाद सीधे महाशिवरात्रि से पहले वाराणसी पहुंचते हैं। काशी के गंगा घाटों पर पहुंचे साधु-संत अपनी परंपरागत साधना करते हैं। दरअसल,काशी संपूर्ण आध्यात्मिक साधना का केंद्र है और ऐसी मान्यता है कि जब तक यहां प्रवास नहीं किया जाता, तब तक महाकुंभ का महत्व पूरा नहीं होता है। काशी को मोक्षदायिनी नगरी माना जाता है और यहां प्रवास करने से साधना का विशेष फल प्राप्त होता है। हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन और नासिक के कुंभों की तरह काशी भी आध्यात्मिक रूप से उतनी ही महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह भगवान शिव की नगरी है।
काशी पहुंचने के बाद साधु-संत सबसे पहले काशी के कोतवाल भैरव महाकाल जी के दर्शन करते हैं। उसके बाद काशी विश्वनाथ महाराज के दर्शन करते हैं। भगवान शिव के दर्शन करने के बाद संत गंगा किनारे साधना में लीन हो जाते हैं। महाकुंभ के बाद प्रयाग से काशी आना देवलोक से मृत्युलोक में वापस आना माना जाता है। महाशिवरात्रि तक साधु संत गंगा घाट पर ही रुकेंगे। इस दौरान संत गंगा मैया के किनारे तपस्या और साधना करते हैं। इसके बाद महाशिवरात्रि के दिन संत गंगा स्नान करते हैं और बाबा विश्वनाथ के दर्शन करते हैं और इसके पश्चात सभी अखाड़ों के संन्यासी अपने मूल स्थान को लौट जाते हैं।
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