उत्पन्ना एकादशी व्रत कथा

उत्पन्ना एकादशी व्रत कथा 


उत्पन्ना एकादशी की पौराणिक कथा मां एकादशी के जन्म से संबंधित है। इसमें ये बताया गया है कि उन्होंने भगवान विष्णु को एक राक्षस से कैसे बचाया। दरअसल सतयुग में एक मुरा नाम का एक राक्षस था। उसने भगवान इंद्र और उनके रत्नों को हराकर स्वर्ग पर विजय प्राप्त की। इसके बाद सभी देवगण मदद के लिए भगवान शिव के पास गए। भगवान शिव ने उन्हें भगवान विष्णु के पास जाने और उनकी मदद लेने का सुझाव दिया। देवताओं से सारी बातें सुनने के बाद भगवान विष्णु ने मुरासुर के काले शासन को समाप्त करने का फैसला किया। इसके बाद भगवान विष्णु और मुरासुर के बीच युद्ध शुरू हुआ और ये युद्ध पूरे दस साल तक चलता रहा। युद्ध में अन्य सभी राक्षस मारे गए, लेकिन मुरासुर ही जीवित बच गया। युद्ध के मैदान में मुरासुर को न तो मारा जा सकता था और न ही पराजित किया जा सकता था।


जब भगवन विष्णु युद्ध से थक गए तो वे बद्रीकाश्रम गए। यहां हेमवती नामक गुफा में उन्होंने विश्राम किया और योगनिद्रा में सो गए। जब दैत्य हेमवती के पास पहुंचा तो उसने विष्णु पर आक्रमण कर दिया। उस समय भगवान विष्णु के शरीर से सकारात्मक आभा वाली एक शुभ महिला का जन्म हुआ जिसने मुरासुर को लड़ाई के लिए चुनौती दी। इसके बाद दोनों के बीच युद्ध शुरू हो गया और कई दिन के बाद महिला ने मुरासुर का अंत कर दिया। जब भगवान विष्णु अपने ध्यान से जागे, तो मुरासुर को मृत देखकर उन्हें सुखद आश्चर्य हुआ। इससे प्रसन्न भगवान विष्णु ने उन्हें आशीर्वाद देते हुए उत्पन्ना एकादशी का नाम दिया। भगवान विष्णु के आशीर्वाद के बाद ही उत्तपन्ना एकादशी की पूजा शुरू हो गई।


ज्योतिष में महत्व


उत्पन्ना एकादशी का हिंदू ज्योतिष में बहुत महत्व है। ऐसा माना जाता है कि जो लोग शुद्ध मन और इरादे से इस दिन व्रत रखते हैं उन्हें अपने पिछले पापों से मुक्ति मिल जाती है। इतना ही नहीं यह भी माना जाता है कि जो एकादशी का व्रत करना चाहता है, उसे उत्पन्ना एकादशी के उपवास से ही एकादशी व्रत की शुरूआत करनी चाहिए। इस दिन भगवान विष्णु ने मां एकादशी की सहायता से मुरासुर को पराजित किया था, इस एकादशी को भगवान विष्णु के संबंध में परिभाषित किया गया है। मां एकादशी और भगवान विष्णु की पूजा और व्रत करने की परंपरा एक ही दिन है। इस एकादशी के अनुष्ठान का पालन करने से आपके जीवन के अतीत और वर्तमान दोनों के सभी पाप धुल जाएंगे। आप मोक्ष के करीब पहुंचेंगे। यदि कोई इस दिन व्रत रखता है तो यह व्रत सभी त्रिदेवों का व्रत रखने के समान माना गया है।


।। बोलिए उतपन्ना एकादशी माता की जय ।।

........................................................................................................
मौनी अमावस्या क्यों रखा जाता है मौन व्रत

मौनी अमावस्या पर मौन रहने का नियम है। सनातन धर्म शास्त्रों में इस दिन स्नान और दान की पंरपरा सदियों से चली आ रही है। यह केवल एक धार्मिक परंपरा नहीं है, बल्कि यह मानसिक और आध्यात्मिक शुद्धि का एक महत्वपूर्ण साधन भी है।

खाटू वाले श्याम धणी को, हैलो आयो है(Khatu Wale Shyam Dhani Ko Helo Aayo Hai)

खाटू चालों खाटू चालों,
खाटू वाले श्याम धणी को,

हे जग त्राता विश्व विधाता(He Jag Trata Vishwa Vidhata)

हे जग त्राता विश्व विधाता,
हे सुख शांति निकेतन हे।

मुझ पर भी दया की कर दो नज़र(Mujh Par Bhi Daya Ki Kardo Najar)

मुझ पर भी दया की कर दो नज़र,
ऐ श्याम सुंदर. ऐ मुरलीधर ।

डिसक्लेमर

'इस लेख में दी गई जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। सूचना के विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/धार्मिक मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संकलित करके यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक या उपयोगकर्ता इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह से उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता या पाठक की ही होगी।

यह भी जाने