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उठ जाग मुसाफिर भोर भई (Bhajan: Uth Jag Musafir Bhor Bhai)

उठ जाग मुसाफिर भोर भई,

अब रैन कहाँ जो सोवत है ।

जो सोवत है सो खोवत है,

जो जागत है सोई पावत है ॥


उठ नींद से अखियाँ खोल जरा,

और अपने प्रभु में ध्यान लगा ।

यह प्रीत करन की रीत नहीं,

प्रभु जागत है तू सोवत है ॥


उठ जाग मुसाफिर भोर भई,

अब रैन कहाँ जो सोवत है ।

जो सोवत है सो खोवत है,

जो जगत है सोई पावत है ॥


जो कल करना सो आज कर ले,

जो आज करे सो अब कर ले ।

जब चिड़िया ने चुग खेत लिया,

फिर पछताए क्या होवत है ॥


उठ जाग मुसाफिर भोर भई,

अब रैन कहाँ जो सोवत है ।

जो सोवत है सो खोवत है,

जो जगत है सोई पावत है ॥


नादान भुगत अपनी करनी,

ऐ पापी पाप में चैन कहाँ ।

जब पाप की गठड़ी शीश धरी,

अब शीश पकड़ क्यूँ रोवत है ॥


उठ जाग मुसाफिर भोर भई,

अब रैन कहाँ जो सोवत है ।

जो सोवत है सो खोवत है,

जो जगत है सोई पावत है ॥

गुप्त नवरात्रि पर राशि के अनुसार उपाय

सनातन धर्म में साल में आने वाली चारों नवरात्रि का बहुत खास महत्व है। हर साल चार बार नवरात्रि आती है, जिनमें से माघ गुप्त नवरात्रि भी शामिल हैं।

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मेरी मैया तेरे दरबार ये,
दीवाने आए है,

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शरण में आये हैं हम तुम्हारी,
दया करो हे दयालु भगवन ।

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तुम्हीं में ये जीवन जिए जा रहा हूँ
जो कुछ दे रहें हो लिए जा रहा हूँ ॥

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