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गुरु बिन घोर अँधेरा संतो (Guru Bina Ghor Andhera Re Santo)

गुरु बिन घोर अँधेरा संतो,

गुरु बिन घोर अँधेरा जी ।

बिना दीपक मंदरियो सुनो,

अब नहीं वास्तु का वेरा हो जी ॥


जब तक कन्या रेवे कवारी,

नहीं पुरुष का वेरा जी ।

आठो पोहर आलस में खेले,

अब खेले खेल घनेरा हो जी ॥


मिर्गे री नाभि बसे किस्तूरी,

नहीं मिर्गे को वेरा जी ।

रनी वनी में फिरे भटकतो,

अब सूंघे घास घणेरा हो जी ॥


जब तक आग रेवे पत्थर में,

नहीं पत्थर को वेरा जी ।

चकमक छोटा लागे शबद री,

अब फेके आग चोपेरा हो जी ॥


रामानंद मिलिया गुरु पूरा,

दिया शबद तत्सारा जी ।

कहत कबीर सुनो भाई संतो,

अब मिट गया भरम अँधेरा हो जी ॥

ओ शंकरा मेरे शिव शंकरा (O Shankara Mere Shiv Shankara)

ओ शंकरा मेरे शिव शंकरा,
बालक मैं तू पिता है,

यही रात अंतिम यही रात भारी: भजन (Yehi Raat Antim Yehi Raat Bhaari)

यही रात अंतिम यही रात भारी,
बस एक रात की अब कहानी है सारी,

अनमोल तेरा जीवन, यूँ ही गँवा रहा है (Anmol Tera Jeevan Yuhi Ganwa Raha Hai)

अनमोल तेरा जीवन,
यूँ ही गँवा रहा है,

मोहे मिठो मिठो, सरजू जी को पानी लागे(Mohe Mitho Mitho Saryu Ji Ko Pani Lage)

सीता राम जी प्यारी राजधानी लागे,
राजधानी लागे,

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