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मन फूला फूला फिरे जगत में(Mann Fula Fula Phire Jagat Mein)

मन फूला फूला फिरे,

जगत में कैसा नाता रे ॥


मन फूला फूला फिरे,

जगत में कैसा नाता रे ॥


माता कहे यह पुत्र हमारा,

बहन कहे बीर मेरा,

भाई कहे यह भुजा हमारी,

नारी कहे नर मेरा,

जगत में कैसा नाता रे ॥


मन फूला फूला फिरे,

जगत में कैसा नाता रे ॥


पेट पकड़ के माता रोवे,

बांह पकड़ के भाई,

लपट झपट के तिरिया रोवे,

हंस अकेला जाए,

जगत में कैसा नाता रे ॥


मन फूला फूला फिरे,

जगत में कैसा नाता रे ॥


जब तक जीवे माता रोवे,

बहन रोवे दस मासा,

तेरह दिन तक तिरिया रोवे,

फेर करे घर वासा,

जगत में कैसा नाता रे ॥


मन फूला फूला फिरे,

जगत में कैसा नाता रे ॥


चार जणा मिल गजी बनाई,

चढ़ा काठ की घोड़ी,

चार कोने आग लगाई,

फूंक दियो जस होरी,

जगत में कैसा नाता रे ॥


मन फूला फूला फिरे,

जगत में कैसा नाता रे ॥


हाड़ जले जस लाकड़ी रे,

केश जले जस घास,

सोना जैसी काया जल गई,

कोइ न आयो पास,

जगत में कैसा नाता रे ॥


मन फूला फूला फिरे,

जगत में कैसा नाता रे ॥


घर की तिरिया ढूंढन लागी,

ढुंडी फिरि चहु देशा,

कहत कबीर सुनो भई साधो,

छोड़ो जगत की आशा,

जगत में कैसा नाता रे ॥


मन फूला फूला फिरे,

जगत में कैसा नाता रे ॥

मन फूला फूला फिरे,

जगत में कैसा नाता रे ॥

ये उत्सव बजरंग बाले का, ये लाल लंगोटे वाले का (Ye Utsav Bajrang Bala Ka Ye Lal Langote Wale Ka)

ये उत्सव बजरंग बाले का,
ये लाल लंगोटे वाले का,

उत्पन्ना एकादशी के नियम

उत्पन्ना एकादशी मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि पर मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण त्योहार है। उत्पन्ना एकादशी की उत्पत्ति का उल्लेख प्राचीन भविष्योत्तर पुराण में मिलता है, जहां भगवान विष्णु और युधिष्ठिर के बीच एक महत्वपूर्ण संवाद में इसका वर्णन किया गया है।

होलाष्टक से जुड़े पौराणिक कथा

होलाष्टक का सबसे महत्वपूर्ण कारण हिरण्यकश्यप और प्रह्लाद की कथा से जुड़ा है। खुद को भगवान मानने वाला हिरण्यकश्यप अपने बेटे प्रह्लाद की भक्ति से नाराज था।

श्री महालक्ष्मी चालीसा

जय जय श्री महालक्ष्मी करूं माता तव ध्यान।
सिद्ध काज मम किजिए निज शिशु सेवक जान।।

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