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सब में कोई ना कोई दोष रहा (Sab Main Koi Na Koi Dosh Raha)

सब में कोई ना कोई दोष रहा ।

एक विधाता बस निर्दोष रहा ॥

सब में कोई ना कोई दोष रहा ।

एक विधाता बस निर्दोष रहा ॥


वेद शास्त्र का महापंडित ज्ञानी,

रावण था पर था अभिमानी,

शिव का भक्त भी सिया चुरा कर,

कर बैठा ऐसी नादानी,

राम से हरदम रोष रहा ।

सब में कोई ना कोई दोष रहा ।

एक विधाता बस निर्दोष रहा ॥


युधिष्टर धर्मपुत्र बलकारी,

उसमें ऐब जुए का भारी,

भरी सभा में द्रोपदी की भी,

चीखें सुनकर धर्म पुजारी,

बेबस और खामोश रहा ।

सब में कोई ना कोई दोष रहा ।

एक विधाता बस निर्दोष रहा ॥


विश्वामित्र ने तब की कमाई,

मेनका अप्सरा पर थी लुटाई,

दुर्वासा थे महा ऋषि पर,

उनमें भी थी एक बुराई,

हरदम क्रोध व जोश रहा ।

सब में कोई ना कोई दोष रहा ।

एक विधाता बस निर्दोष रहा ॥


सारा जग ही मृगतृष्णा है,

कौन यहां पर दोष बिना है,

नत्था सिंह में दोष हजारों,

जिसने सब का दोष गिना है,

फिर यह कहा निर्दोष रहा ।

सब में कोई ना कोई दोष रहा ।

एक विधाता बस निर्दोष रहा ॥

गुरू प्रदोष व्रत की पूजा विधि

प्रदोष व्रत सनातन धर्म में एक महत्वपूर्ण व्रत है, जो भगवान शिव की पूजा के लिए समर्पित है। हर महीने दो प्रदोष व्रत और पूरे साल में 24 व्रत होते हैं।

प्रभु! स्वीकारो मेरे परनाम (Prabhu Sweekaro Mere Paranam)

सुख-वरण प्रभु, नारायण हे!
दु:ख-हरण प्रभु, नारायण हे!

दया कर दान विद्या का(Daya Kar Daan Vidya Ka Hume Parmatma Dena)

दया कर दान विद्या का,
हमें परमात्मा देना,

रुक्मिणी अष्टमी की कथा

पौष मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रुक्मिणी अष्टमी के रूप में मनाया जाता है। यह पर्व भगवान श्रीकृष्ण की पत्नी देवी रुक्मिणी के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है। देवी रुक्मिणी मां लक्ष्मी का अवतार मानी जाती हैं और भगवान श्रीकृष्ण की आठ पटरानियों में से एक थीं।

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